जैव ईंधन ऐसा नवीकरणीय ऊर्जा भंडार है, जो जैविक सामग्री, जैसे कृषि फसलों के अवशेष, पशु वसा और कचरे से बनता है। विशेषज्ञ बताते हैं कि जैव ईंधन कई श्रेणियों में मिलते हैं, मगर एथेनाल जिसका उत्पादन गन्ना, मक्का या अन्य स्टार्चयुक्त फसलों से किया जाता है और बायोडीजल, जिसको पशुवसा, वनस्पति तेलों या शैवालों से बनाया जाता है, सबसे आम जैव ईंधन हैं। पिछले कुछ वर्षों में इनका उत्पादन और उपयोग वैश्विक स्तर पर तेजी से बढ़ा है।
2030 तक जैव ईंधन की बढ़ती मांग: भारत की नीति और आर्थिक लाभ
अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा फोरम के आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2030 तक वैश्विक स्तर पर जैव ईंधन की मांग दो सौ अरब लीटर तक हो जाएगी। अनुसंधान से ज्ञात हुआ है कि जैव ईंधन को पारंपरिक जीवाश्म ईंधन जैसे पेट्रोल और डीजल के साथ मिला कर प्रयोग करने से कार्बन उत्सर्जन कम होता है। यह बढ़ते वैश्विक तापमान और जलवायु परिवर्तन को रोकने का अच्छा साधन है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने 2018 में राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति बनाई, जिसमें 2025-26 तक पेट्रोल में बीस फीसद एथेनाल मिश्रण का और डीजल में वर्ष 2030 तक पांच फीसद बायोडीजल मिश्रण का लक्ष्य रखा। सरकार का अनुमान है कि इससे जीवाश्म ईंधन का आयात कम होगा और विदेशी मुद्रा का संचय भी होगा। वर्ष 2013-14 में भारत 38 करोड़ लीटर एथेनाल की आपूर्ति तेल कंपनियों को करता था, जो वर्ष 2023 तक आते-आते तेरह गुना बढ़ गया और वर्ष 2022-23 में 502 करोड़ लीटर एथेनाल की आपूर्ति तेल कंपनियों को की, जिससे तेल के आयात पर होने वाले लगभग 24,300 करोड़ की विदेशी मुद्रा बचाई जा सकी।
भारत की बिजली मांग में वृद्धि: जैव ईंधन को नवीकरणीय ऊर्जा का प्रमुख विकल्प
फरवरी 2024 में अंतराष्ट्रीय ऊर्जा एजंसी ने ‘इलेक्ट्रिसिटी 2025’ नाम से एक रपट प्रकाशित की, जिसमें कहा गया कि वर्ष 2023 तक भारत की बिजली की मांग सात फीसद बढ़ चुकी है और यह इसी तरह बढ़ते हुए वर्ष 2026 तक चीन को पार कर जाएगी। ऐसी स्थिति में ऊर्जा के और विशेष रूप से नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की तलाश जरूरी है। विशेषज्ञ ऐसी स्थिति में जैव ईंधन को एक बेहतर विकल्प के रूप में देखते हैं। जानकारों का मत है कि भारत जैसे कृषि प्रधान और पर्यावरण के प्रति चिंतित देश के लिए जैव ईंधन प्रयोग के कई लाभ होंगे। पहला तो यह ग्रीन हाऊस गैस उत्सर्जन को कम कर देगा। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के एक अध्ययन से पता चला है कि जैव ईंधन पारंपरिक जीवश्म ईंधनों की तुलना में ग्रीन हाऊस गैस उत्सर्जन को नब्बे फीसद तक कम कर सकते हैं। कार्बन डाई आक्साइड के उत्सर्जन में निरंतर गिरावट होने से भारत वर्ष 2070 तक शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल कर सकेगा।
जैव ईंधन प्रयोग से किसानों की आय में बढ़ोतरी होगी और सरकार को किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य को पूरा करने में सफलता मिलेगी। वनरोपण में इजाफा होगा और सतत कृषि की शुरुआत होगी, जिससे जैव विविधता का संरक्षण होगा। जैव ईंधन के प्रयोग से वायु प्रदूषण में भी कमी आएगी। अनुसंधान बताता है कि जैव ईंधन के दहन से कई प्रदूषकों का उत्सर्जन बहुत कम होता है। इससे शहरी क्षेत्रों की वायु गुणवत्ता सुधारी जा सकती है।
जैव ईंधन भारत के सतत विकास लक्ष्य नंबर-सात (जो सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा से संबंधित है) को प्राप्त करने का एक उपयुक्त माध्यम है। मगर विशेषज्ञों की राय में यह इतना आसान नहीं है। भारत को इसके लिए तमाम चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। इसमें सबसे बड़ी चुनौती भूमि और जल संसाधनों की मात्रा को लेकर है। वैश्वीकरण, निजीकरण और उदारीकरण के बाद से भारत में तेजी से शहरीकरण बढ़ा है। इसने कृषि भूमि को पहले ही संकुचित कर दिया है। ऐसे में अगर बची हुई कृषि भूमि के बड़े हिस्से पर जैव ईंधन देने वाली फसलों, जैसे जेट्रोपा आदि की खेती की जाएगी, तो भारत में कुपोषण बढ़ सकता है। एथेनाल का उत्पादन मक्का और गन्ने जैसी खाद्य फसलों से होता है। ऐसे में इन फसलों की मांग बढ़ेगी, जिससे इनके दाम बढ़ जाएंगे। इनसे बनने वाले खाद्य पदार्थ महंगे हो जाएंगे।
ऐसे में दूसरी और तीसरी पीढ़ी के जैव ईंधन के प्रयोग की सलाह दी जाती है और इनका उत्पादन एल्गी शैवाल से किया जाता है, लेकिन अभी इस पीढ़ी के जैव ईंधन व्यापारिक दृष्टि से सीमित मात्रा में ही उपलब्ध हैं। इनके उत्पादन में सीमित प्रौद्योगिकी विकास भी एक बाधा है। अभी बाजार में तेल के दाम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इनकी मांग एवं आपूर्ति से तय होते हैं। ऐसी स्थिति में जब तेल के दाम कम होंगे तब जैव ईंधन उत्पादन अधिक महंगा हो सकता है। इसलिए जैव ईंधनों को आर्थिक रूप से व्यवहार्य बनाना बड़ी चुनौती है।
पर्यावरणविदों का मत है कि जैव ईंधन का अधिक उपयोग वन कटान को बढ़ावा देगा। इससे जैव विविधता में कमी, मिट्टी के कटाव में बढ़ोतरी और पानी की कमी का खतरा भी हो सकता है। जैव ईंधन के प्रयोग में तमाम चुनौतियों को देखते हुए विश्व की सभी सरकारें अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर नई नीतियां ला रही हैं। इसके अलावा कार्यक्रमों का भी आयोजन कर रही हैं। इनमें वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन (जीबीए) उल्लेखनीय है, जिसे भारत की जी-20 अध्यक्षता के दौरान बनाया गया था। इस गठबंधन ने अमेरिका, ब्राजील और भारत जैसे प्रमुख जैव ईंधन उत्पादक एवं उपभोक्त्ता देशों को एक साथ जोड़ा है। उन्नीस देश और बारह अंतरराष्ट्रीय संगठन जीबीए में शामिल होने की सहमति जता चुके हैं। अब देखना है कि यह संगठन चुनौतियों को हल करके जैव ईंधन को सतत ऊर्जा का खजाना बना पाएगा या नहीं!