चैनलों को चाहिए था कि लिखते: ‘आइए अलगाववादियों के दर्शन कर लीजिए! पिछले साल कराए थे, इस बार उस याद को ताजा करने के लिए करा रहे हैं! अवश्य देखिए!’ और हम देखते हैं कि वे पहले से भी ज्यादा हृष्टपुष्ट, सुसज्जित होकर आए हैं! वे जानते हैं कि ऐसे अवसर पर आपकी बॉडी लैंग्वेज ही बात करती है! अलगाववादी आशिया अंद्राबी को मालूम है कि चैनलों में लिए वह खुद एक चलती-फिरती खबर है। उसने श्रीनगर में ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ नारा देकर और ‘पाकिस्तानी झंडा फहरा कर राष्ट्रद्रोह कानून को चुनौती दी कि कर लो क्या कर लोगे?
कनफ्यूजन न हो, इस कारण भाजपा के प्रवक्ता सिद्धार्थनाथ सिंह एक चैनल पर आकर समझाते रहे कि एक मुद्दा पाकिस्तान दिवस मनाने का है, जिसमें एक मंत्री जाया करते हैं। दूसरा आतंकवाद का है, जिस पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता! इसके बाद कांग्रेस के टाम वडक्कन सरकार की कूटनीति को कूटने लगे कि स्पष्ट विदेशनीति के अभाव में मंत्री का जाना अलगाववादियों को वैधता प्रदान करता है! टाइम्स नाउ का एंकर परेशान था कि अलगाववादियों का एजंडा क्या है?
पूरे बुधवार हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के गेट पर कैमरों की भीड़ दिखती रही। खबर थी कि कन्हैयाजी को आना है!
एनडीटीवी ने ‘माई सिटी माई न्यूज’ के अंतर्गत देर तक लाइव किया, बाकी चैनलों ने ‘नेशन’ से उधार लिया! फिर अचानक एक बड़ी गाड़ी में कन्हैयाजी बैठे बताए गए। देर तक वे भीड़ से घिरे बैठे रहे। बेहद उम्दा क्वालिटी की खाकी रंग की टीशर्ट पहने कन्हैयाजी स्मार्ट नजर आते थे। कुछ देर बाद वे किसी सुपर हीरो की तरह निकले और एक जगह खड़े होकर बिना माइक के भाषण देने लगे कि आज शहीद भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव के शहादत के दिन यहां आए हैं। हमें वेमुला के सपनों को सच करना पड़ेगा। उसके कुछ देर बाद नारे लगाए: जय भीम जय रोहित। रोहित एक्ट लागू करो, तुम जितने रोहित मारोगे हर घर से रोहित निकलेगा… वृहस्पतिवार को अचानक बिना चित्र की खबर आई कि एक मीटिंग के दौरान कन्हैयाजी पर किसी ने जूता फेंका! महानता की मीडिया-यात्रा में जयकार के साथ जूते भी मिला करते हैं!
‘भारत माता की जय’ बोलने या न बोलने पर कनफ्यूजन जारी है। करन थापर ने कुछ कनफ्यूजन यह कह कर साफ किया कि यह भाजपा का एक राजनीतिक प्रस्ताव भर है, कोई कानून नहीं है। फिर भी वे भाजपा के प्रवक्ता से ही पूरी ‘व्यवस्था’ लेना चाहते थे। सो, पूछा कि ‘राष्ट्र की आलोचना करने का हक है कि नहीं’। जवाब में जीवीएल नरसिंह राव ने ‘व्यवस्था’ दी कि ‘रीजनेबल क्रिटीसिज्म अलाउड’ है! यह क्या होता है राव साहब? कौन बताएगा कि क्या रीजनेबल है?
करन थापर इस पर नहीं उलझे। वे ‘भारत माता की जय’ न बोलना कहीं असंवैधानिक तो नहीं है, इसी सवाल पर लगे रहे। जवाब में राव साहब का कहना था कि भाजपा हमेशा से भारत माता की जय बोलती आई है!
कांग्रेस के अभिषेक मनु सिंघवीजी का कहना था कि भारत माता की जय बोलने की कोई संवैधानिक व्यवस्था नहीं है, किसी की भावना है तो बोल सकता है। एक ने भारत माता के संघी संस्करण को डिकंस्ट्रक्ट करके बताया कि संघ की भारत माता के हाथ में तिरंगे की जगह भगवा झंडा है, दूसरे वह शेर पर बैठी है… सीपीआइ के डी. राजा ने कहा कि यह एक धर्म की भारत माता की व्याख्या है, जो संघ के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद से निकलती है और फासिज्म पैदा करती है!
सुधांशु मित्तलजी जब-जब किसी चैनल पर भाजपा का पक्ष लेने आते हैं, अपनी हंसती हुई मूंछों से तर्क को मसालेदार बना डालते हैं। इंडिया टुडे ने राष्ट्रीय उर्दू प्रमोशन परिषद की उस व्यवस्था पर सवाल किया, जिसमें लेखकों को यह लिखित घोषणा देनी होगी कि वे राष्ट्र/ सरकार की आलोचना नहीं करेंगे। इसके जवाब में मित्तलजी का कहना था कि यह तो लेखक की अपनी घोषणा होगी, यह सरकार की ओर से सेंसर करना कैसे हुआ? और सिर्फ उर्दू के लिए है, बाकी के लिए नहीं!
अपने अनुपम खेर ने जेएनयू में अपनी वाली पिक्चर दिखाई और बहस कराई, लेकिन उनको हूटिंग का सामना करना पड़ा! उस शाम हूटिंग से जेएनयू के अति समारोहित जनतंत्र की पोल तो खुली ही, पिक्चर दिखाने की जिद से अनुपम का जनतंत्र भी खुल गया! ‘आ बैल मुझे मार’ की क्या जरूरत थी?
एक तो जेएनयू का क्रांतिकारी कैंपस, उसमें क्रांतिकारी जनसभा वाला सीन, उसमें थरूरजी का भाषण और उसी झोंक में भगत सिंह की कन्हैया से तुलना कर डालना क्षणिक जलजले से कम नहीं था। थरूरजी को कौन समझा सकता है कि कहां भगत सिंह और कहां कन्हैया! दोनों के बीच कुछ तो तुल्य होता? उपमा को तो बख्श देते सर जी!
भाजपा के प्रवक्ता कृष्णसागर रावजी ने थरूर के इस कथन को भाजपा के लिए ‘इंसल्ट’ माना और पूछा कि भगत सिंह और कन्हैया के बीच यह कैसी समानता है? एक चौबीस की उम्र में हंसते-हंसते फांसी पर झूल गया, दूसरा तीस साल का है और सरकारी वजीफा ले रहा है। न्यूज एक्स के ऋषभ चकित होकर कहने लगे कि यह तो नेशनल आइकन के कद को छोटा करना हुआ! कितनी सही बात कही!
टाइम्स नाउ ने पाकिस्तान का पीछा आखिरी दम तक नहीं छोड़ा। एक से एक एक्सपर्ट बिठा दिए। ऐसा लगा, जब तक अपने मारूफ रजा ऐसे अवसरों पर कमेंट्री देते रहेंगे, तब तक पाकिस्तान कोई बदमाशी नहीं कर सकेगा और सरकार भी कोई छूट नहीं दे पाएगी! लेकिन कूटनीति कूटनीति है। पिछली बार पाकिस्तान दिवस पर वीके सिंह की फजीहत हुई थी, इस बार किसकी होगी? चैनल इंतजार में थे कि अचानक मालूम पड़ा कि इस बार जावडेकर शामिल होंगे! अब एक फ्रेम में जावडेकर साहब बासित के साथ दम साधे एकदम निर्भाव से खड़े थे। वे उस क्षणिक फ्रेम में इस कदर सावधान दिखते थे मानों ‘सावधनी हटी और दुर्घटना घटी!’ ऐसी भी क्या कूटनीति कि अपने ही मुल्क में अपने ही मंत्री को पाकिस्तान दिवस के समारोह में तनाव से गुजरना पड़े! और चैनल ताक-झांक में लगे हैं कि कुछ मसालेदार खबर मिले और विदेशनीति को लेकर ले-दे की जाय!

