इधर किसान धरने पर, उधर पीएम की रकाबगंज गुरुद्वारे में गुरु तेगबहादुर जी की शरण! बिना पूर्वसूचना, बिना पूरी सुरक्षा के औचक दौरा!
एक रिपोर्टर : यह प्रतीकात्मक दौरा है!
गुरुद्वारे से ही एक व्यक्ति : इधर तो राजा-रंक सब आते हैं, लेकिन ये जहां किसान बैठे हैं, वहां क्यों नहीं जाते?
लेकिन यह पहली बार हुआ कि पीएम के प्रतीकात्मक दौरे को भक्त चैनलों तक ने अर्चनीय-चर्चनीय न समझा!
यह क्या हो रहा है सर जी?

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कड़ाके की ठंड में किसानों को बैठे देख बर्बरी जैकेट पहने एक रिपोर्टर हमदर्दी जताते हुए पूछता है कि इस कड़ाके की ठंड में आप यहां बैठे हुए हैं…
किसान टके-सा जवाब देता है : हम तो ऐसी रातों में खेतों में काम करते हैं, यहां न होते तो इस वक्त आलू के खेतों में पानी दे रहे होते।
रिपोर्टर तुरंत कट लेता है!

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कुछ भक्त चैनल लाइन लगाते हैं : किसानों का आंदोलन ‘दो फाड़’! गाजियाबाद में हजारों किसान कानूनों के समर्थन में प्रदर्शन कर रहे हैं। एक कहता है : जो वहां बैठे हैं, वे देश के खिलाफ हैं। पहले हमें भी संशय था, जब पीएम ने एमएसपी और मंडी की गारंटी दे दी, तो हमने समर्थन देने की सोची!
एक चैनल ने तो कहीं से एक आंकड़ा भी जड़ दिया कि देश के सड़सठ प्रतिशत किसान नहीं चाहते कि कानून वापस हों। राकेश टिकैत ‘समर्थन’ की कहानी को एक लाइन में काट देते हैं : ये सब बीजेपी करवा रही है!

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भाजपा के लिए राहत की खबर सिर्फ जम्मू-कश्मीर की जिला परिषदों के चुनावों के परिणामों से आती है। चर्चाओं में एक भाजपा प्रवक्ता बताता है कि इस बार भाजपा को ‘गुपकार’ और का कांग्रेस मिले कुल वोटों से भी अधिक वोट मिले हैं। यह हमारी कश्मीर नीति की सफलता है।

इस सप्ताह की बड़ी खबर ममता के चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर बरक्स भाजपा की तू तू मैं मैं के बीच बनी। प्रशांत किशोर ने अमित शाह के दो सौ सीट लेने के दावे के खिलाफ ट्वीट करके मनावैज्ञानिक युद्ध शुरू कर दिया कि भाजपा दहाई से आगे गई, तो वे ‘इस जगह को’ यानी ‘ट्विटर’ को छोड़ देंगे!
कई एंकरों ने समझा कि वे राजनीति छोड़ देंगे!
भाजपा के विजयवर्गीय ने तुरंत कटाक्ष मारा कि एक और ‘रणनीतिकार’ बेकार हो जाएगा!
बहरहाल, बंगाल के चुनावों की राजनीति ने नया शब्दकोश बनाना शुरू कर दिया है, जिसके मंगलाचरणीय शब्द हैं : सिंडीकेट, हरमद सेना, तोलाबाजी, चीटरबाजी!

इस बीच एक दिन एएमयू के शताब्दी समारोह पर पीएम के वर्चुअल संबोधन ने खबर बनाई। फिर एक दिन शांतिनिकेतन के संबोधन ने खबर बनाई, लेकिन वैसी विभक्तिमूलक चर्चाएं नहीं होती दिखीं, जैसी कि एमएमयू का नाम आते ही पहले दिखा करती थीं।

वृहस्पतिवार को कृषि कानूनों के विरोध में दो करोड़ किसानोें के हस्ताक्षर लेकर राहुल जी राष्ट्रपति के पास क्या गए कि एक परम कृपालु एंकर के हत्थे चढ़ गए और इस दस्तखत अभियान के ऐसे धुर्रे उड़ाए कि हंसते-हंसते पेट में बल पड़ गए कि अगर एक दस्तखत लेने में एक मिनट लगता है, तो दो करोड़ हस्ताक्षर लेने में कम से कम 3.3 लाख घंटे लगेंगे यानी चौदह हजार दिन, यानी अड़तीस साल लगेंगे, लेकिन राहुल ने चटपट करा लिए! है न कमाल की बात! ये देखिए अंगूठे पर अंगूठे लगे हैं… एक ओर राहुल का गणित, दूसरी ओर उनके प्रति परम कृपालु एंकर का गणित! खुदा खैर करे!

इस बार का शुक्रवार ‘थ्री इन वन’ रहा। यही बड़ा दिन और यही अटल जी का जन्मदिन और यही पीएम द्वारा किसान सम्मान निधि वर्चुअली घोषित कर किसानों को सीधे पहुंचाने का दिन!
किसान सम्मान निधि की भूरि भूरि प्रशंसा करते एक प्रवक्ता ने फरमाया : आज हम अठारह हजार करोड़ रुपए नौ करोड़ किसानों को दे रहे हैं!

एक युवा किसान नेता ने तुरंत इस पर ‘कट’ लगाया : इतने में तो हमारा डीजल तक नहीं आता। एक अन्य किसान ने इस पर कटाक्ष किया : इसमें ऐसा क्या कमाल है? हम एक लाख करोड़ रुपए की तो जीएसटी देते हैं।
कैसे दिन आ गए हैं कि दाता देना चाहता है और पाता कह रहा है कि ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है?