Rudrashtakam Stotram Benefits: ज्योतिष शास्त्र अनुसार भगवान शिव की पूजा करने से व्यक्ति को आरोग्य और सुख- समृद्धि की प्राप्ति होती है। साथ ही मान्यता है कि जो व्यक्ति भोलेनाथ की पूजा करता है, उस पर ग्रहों का नकारात्मक प्रभाव न के बरावर पड़ता है। वहीं भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए शास्त्रों में कई स्त्रोत का वर्णन मिलता है। जिसमें से प्रमुख है शिव रुद्राष्टकम। मतलब जो व्यक्ति इस स्त्रोत का पाठ करता है। उसको शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। साथ ही उस पर भगवान शिव की असीम कृपा रहती है।

श्री शिव रुद्राष्टकम पाठ की जाप विधि

शास्त्रों के अनुसार यदि कोई शत्रु आपको परेशान कर रहा है तो किसी मंदिर या घर में ही शिवलिंग को चौकी पर स्थापित करें। इसके बाद  कुशा के आसन पर बैठकर लगातार 7 दिनों तक इस स्त्रोत का पाठ करें। भगवान शिव की कृपा से आपको शत्रु पर विजय हासिल होगी। क्योंकि भोलेनाथ सदैव अपने भक्तों की रक्षा करते हैं। इसके पाठ से व्यक्ति के अंदर आत्मविश्वास और मनोबल में वृद्धि होती है।

श्री शिव रुद्राष्टकम पाठ का महत्व (Importance of Shri Shiva Rudrashtakam)

शिव रुद्राष्टकम भगवान शिव के रूप व शक्तियों का वर्णन किया गया है। शास्त्रों के अनुसार भगवान श्री राम ने लंका पर विजय प्राप्त करने से पहले शिव रुद्राष्टकम का पाठ किया था। भोलेनाथ ने जब रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना की थी। उसके बाद इस स्त्रोत का पाठ किया था। शिव रुद्राष्टकम पाठ के जाप से शत्रुओं पर विजय पाई जा सकती है। साथ ही इसके जाप से जीवन में सुख- समृद्धि की बनी रहती है।

शिव रुद्राष्टकम पाठ

नमामीशमीशान निर्वाणरूपं
विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम्
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं
चिदाकाशमाकाशवासं भजेहम्

निराकारमोङ्करमूलं तुरीयं
गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम् ।
करालं महाकालकालं कृपालं
गुणागारसंसारपारं नतोहम्

तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभिरं
मनोभूतकोटिप्रभाश्री शरीरम् ।
स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगङ्गा
लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा

चलत्कुण्डलं भ्रूसुनेत्रं विशालं
प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं
प्रियं शङ्करं सर्वनाथं भजामि

प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं
अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशं ।
त्र्यःशूलनिर्मूलनं शूलपाणिं
भजेहं भवानीपतिं भावगम्यम्

कलातीतकल्याण कल्पान्तकारी
सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी ।
चिदानन्दसंदोह मोहापहारी
प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी

न यावद् उमानाथपादारविन्दं
भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।
न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं
प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं

न जानामि योगं जपं नैव पूजां
नतोहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यम् ।
जराजन्मदुःखौघ तातप्यमानं
प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो

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