पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मंगलवार को कहा कि भाजपा के विधायक शिष्टाचार और शालीनता नहीं जानते और विधानसभा में पिछले दिनों राज्यपाल जगदीप धनखड़ के अभिभाषण के दौरान हुए हंगामे से यह बात जाहिर हो गयी है।
धनखड़ ने दो जुलाई को राज्य विधानसभा में भाजपा सदस्यों के शोर-शराबे के बीच अपने 18 पन्नों के अभिभाषण की कुछ पंक्तियां ही पढ़ीं और लिखित भाषण सदन के पटल पर रखा। भाजपा विधायक राज्य में चुनाव के बाद हुई हिंसा को लेकर नारेबाजी कर रहे थे। तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष और मुख्यमंत्री बनर्जी ने सदन में अपने भाषण में कहा कि राज्य में भाजपा विधायकों को केंद्र के भाजपा नेतृत्व द्वारा चुने गये राज्यपाल के सदन में अभिभाषण देने में अवरोध पैदा नहीं करना चाहिए था।
उन्होंने राज्यपाल के अभिभाषण पर धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा, “मैंने राजनाथ सिंह से लेकर सुषमा स्वराज तक अनेक भाजपा नेताओं को देखा है। हालांकि, यह भाजपा अलग है। वे (भाजपा सदस्य) संस्कृति, शिष्टाचार, शालीनता और सभ्यता नहीं जानते।”
उधर, मंगलवार को पश्चिम बंगाल विधानसभा में अध्यक्ष बिमान बंद्योपाध्याय ने विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी की नंदीग्राम में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की चुनावी हार पर कुछ टिप्पणी करने पर आपत्ति जताई, जिसके बाद भाजपा के सदस्यों ने सदन से बहिर्गमन किया।
राज्य में हुए विधानसभा चुनावों में अधिकारी ने नंदीग्राम सीट पर बनर्जी को 1956 मतों से पराजित किया था। बहरहाल, टीएमसी सुप्रीमो ने चुनाव परिणामों को चुनौती देते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया है। सदन का भोजनावकाश होने से करीब 30 मिनट पहले विपक्ष के नेता ने राज्यपाल के उद्घाटन भाषण पर चर्चा के दौरान बनर्जी पर प्रहार करने के लिए नंदीग्राम चुनाव का मामला उठाया, जिसका सत्ता पक्ष ने विरोध किया। विधानसभा अध्यक्ष ने अधिकारी से आग्रह किया कि जो मामला अदालत के विचाराधीन है, उस पर टिप्पणी नहीं करें।
बहरहाल, विपक्ष के नेता ने मुख्यमंत्री के खिलाफ बयान जारी रखा, जिसके बाद अध्यक्ष ने उन्हें दूसरी बार चेतावनी दी। इसके बाद अधिकारी एवं भाजपा के अन्य विधायक सदन से बाहर चले गए।
इससे पहले तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के नैहाटी से विधायक पार्थ भौमिक ने अधिकारी पर परोक्ष रूप से प्रहार करते हुए कहा, “1757 की पलासी की लड़ाई के बाद एक और मीरजाफर ने बंगाल को बाहरी लोगों को सौंपने का षड्यंत्र किया”, जिसका सत्तारूढ़ दल के सदस्यों ने मेज थपथपाकर समर्थन किया।
टीएमसी के बड़े नेता रहे अधिकारी विधानसभा चुनावों से पहले भाजपा में शामिल हो गए थे। चुनाव रैलियों में टीएमसी, भाजपा को अक्सर “बाहरी लोगों की पार्टी’’ कहती थी, क्योंकि राज्य में चुनाव प्रचार का नेतृत्व दिल्ली से आए केंद्रीय नेता करते थे।
भौमिक ने कहा, “दीदी के बोलो (शिकायतों के निवारण के लिए हेल्पलाइन — बड़ी दीदी से कहो) की तरह दल-बदल विरोधी कानून के बारे में पूछताछ के लिए ‘बाबा के बोलो’ (दादा से कहो) पहल की शुरुआत होनी चाहिए।”
वह विपक्ष के नेता अधिकारी के पिता शिशिर अधिकारी का जिक्र कर रहे थे, जो कांथी से टीएमसी के टिकट पर सांसद चुने गए, लेकिन बाद में भगवा दल में शामिल हो गए थे।