जिस बुंदेलखंड में कभी मालगाड़ी से पानी आता था उसी बुंदेलखंड के चित्रकूट धाम मंडल से मालगाड़ी में किसानों द्वारा पैदा किया हुआ धान जा रहा है। धान बगैर खेत में रुके पानी के हो ही नहीं सकता। पानी रोकने के लिए मेड़बंदी आवश्यक है। यह मेड़बंदी का ही परिणाम है कि 10 साल पहले प्रतिदिन बांदा से चित्रकूट ट्रेन से पानी जा रहा था। वर्तमान में चित्रकूट में किसानों ने 500,000 लाख क्विंटल से अधिक धान पैदा किया है। 20650 किसानों ने अपने खेतों में अपने पैसे से मेड़बंदी कराई है। बगैर प्रचार-प्रसार के पिछले 15 वर्षों से अनजान नायक की भांति उमा शंकर पांडे के नेतृत्व में मेड़बंदी यज्ञ अभियान जल संरक्षण संवाद कार्यक्रम बुंदेलखंड के साथ-साथ देश के सुखा प्रभावित राज्यों में किसानों स्वयंसेवी संस्थाओं जनप्रतिनिधियों सरकारी संस्थाओं के साथ चल रहा है, जिसके परिणामस्वरूप भूजल में सुधार के साथ भूजल स्तर ऊपर आया है।
जल बचाने के लिए जंगली जिद पाले जलयोद्धा उमाशंकर पांडेय ने जब यह काम शुरू किया तब वह अकेले थे और महान बंगला कवि रबीन्द्रनाथ टैगोर की प्रेरणादायी कविता ‘एकला चलो रे’ की राह पर चलते हुए अकेले ही चल दिए। और जैसा कि प्रसिद्ध शायर मजरूह सुल्तानपुरी ने लिखा है- ‘मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर, लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया’, कुछ वैसा ही हुआ। इस आंदोलन में काफी लोग जलयोद्धा उमाशंकर पांडेय से जुड़ते गए।

उमाशंकर पांडेय और उनके सहयोगियों ने सामुदायिक सहभागिता से बिना किसी सरकारी अनुदान के श्रमदान कर गांव के छह तालाबों, 20 कुओं और दो नालों को परंपरागत स्रोतों से पानी से लबालब कर दिया। उनके इस अनोखे प्रयास को देखते हुए चित्रकूट मंडल के तत्कालीन कमिश्नर एल. वेंकटेश्वर लू ने जखनी गांव को शासन से जलग्राम घोषित करवा दिया। जखनी का यह मॉडल अब आसपास के सभी गांवों में अपनाया जा रहा है। जिसका नतीजा यह है कि कभी गंभीर सूखाग्रस्त क्षेत्र रहा बांदा जिला अब विपुल संपदा और संपन्नता के साथ पानीदार क्षेत्र बन गया है।
केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय और केंद्रीय भूजल बोर्ड के मुताबिक देश के ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों की 85 फीसद से ज्यादा घरेलू जरूरतों के लिए भूमिगत जल ही एकमात्र स्रोत है। शहरी इलाकों में 50 फीसद पानी की जरूरत भूमिगत जल से पूरी होती है। देश में होने वाली कुल कृषि में 50 फीसद सिंचाई का माध्यम भी भूमिगत जल ही है, लेकिन जमीन के अंदर का यह जल तेजी से घटता जा रहा है।’
हमारे पुरखे सदियों से मेड़बंदी विधि- खेतों में मेड़ बनाकर पेड़ों को रोपना- यानी खेत में मेड़ और मेड़ पर खेत से वर्षा जल को बचाने की तकनीकी अपनाकर पानी की बचत करते रहे हैं। यही वर्षा का जल भूजल स्तर को बढ़ाता है। यूपी के बांदा जिले के जखनी गांव के लोगों ने इस विधि को अपनाकर पिछले कई सालों से सूखाग्रस्त क्षेत्र को जलमग्न क्षेत्र में बदल दिया।
अभी हाल ही में देश में जल संरक्षण, प्रबंधन और उचित वितरण को लेकर करीब तीन दशकों से चल रहे काम पर जल योद्धाओं ने संवाद किया तो जल आंदोलन को जन आंदोलन में बदलने की योजना को और बल मिल गया। राजधानी दिल्ली स्थित प्रेस क्लब में देशभर से जुटे जलयोद्धाओं को संबोधित करते हुए ऋषिकेश स्थित परमार्थ निकेतन आश्रम के संस्थापक स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि समस्त प्राणी, जीव जंतु और खेत बिना जल के अस्तित्वहीन हैं। हमारी परंपरा ने हमें मेड़बंदी के माध्यम से खेतों को जीवंत बनाये रखने का मंत्र दिया है। स्वामी जी ने कहा कि हमें अपने बल को संबल बनाना है, हमें सामुदायिक सहयोग के माध्यम से खेतों को खुशहाल बनाना है।
आयुर्वेद के विशेषज्ञ और आयुर्वेद केन्द्र पतंजलि योगपीठ के अध्यक्ष आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि खेतों की मेड़ों पर हल्के और कम छायादार पेड़ों को लगाकर खेतों में संजीवनी पैदा की जा सकती है। औषधीय पेड़ मेड़ों के लिए और किसान के लिए काफी हितकारी हैं। जखनी जलग्राम से चला यह आंदोलन देश को जलसंरक्षण के क्षेत्र में नई दिशा और जलसेवियों को ऊर्जा प्रदान कर रहा है। जलयोद्धाओं का यह प्रयास पूरे देश में अपनाया जाना चाहिए।