उत्तर प्रदेश के गोरखपुर संसदीय उप चुनाव में बीजेपी के उम्मीदवार उपेंद्र शुक्ला अपनी जीत को लेकर उत्साहित हैं। उन्हें भरोसा है कि योगी आदित्यनाथ के 11 महीनों के मुख्यमंत्रित्व काल में किए गए विकास कार्यों, पीएम मोदी के नेतृत्व में हो रहे देशभर में विकास कार्यों का इनाम गोरखपुर की जनता उन्हें संसद भेजकर देगी। बता दें कि योगी आदित्यनाथ के इस्तीफे से खाली हुई गोरखपुर लोकसभा सीट पर रविवार (11 मार्च) को मतदान हुआ था। बीजेपी ने उपेंद्र शुक्ला के लंबे संघर्ष, संगठन में उनके योगदान और पार्टी की जीत को देखते हुए क्षेत्रीय जातिगत समीकरणों के तहत उन्हें उम्मीदवार बनाया है। बता दें कि उपेंद्र शुक्ला एक साधारण परिवार से ताल्लुक रखते हैं और बीजेपी के स्थापना काल से ही पार्टी के समर्पित कार्यकर्ता रहे हैं।
एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए खुद शुक्ला ने कहा था कि गांव में मकान नहीं है, वह शहर में दो कमरे के मकान में सपरिवार रहते हैं। उपेंद्र शुक्ला का जन्म 1 जुलाई, 1960 को हुआ था। इन्होंने स्नातक तक शिक्षा ग्रहण की है। किशोरावस्था में ही शुक्ला 1975 में 1975 में आपात काल के विरुद्ध स्वयंसेवक बनकर पर्चा बांटते थे। तब उन्हें थाने से खदेड़ दिया गया था। 1977 में जनता पार्टी के नेता मोरारजी देसाई और अटल बिहारी वाजपेयी के भाषणों से प्रभावित होकर पार्टी का प्रचार किया था। 1980 में जब भारतीय जनता पार्टी की स्थापना हुई, तब से उसके सदस्य हैं। 1990 के दशक में श्रीराम जन्म भूमि आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। कार सेवा के आरोप में करीब सवा महीने तक आजमगढ़ के सेंट्रल स्कूल में नजरबंद कर रखे गए थे। इन्होंने आपातकाल और राम जन्मभूमि आंदोलनों में पुलिस की लाठियां खाई हैं।
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संगठन में उनके काम और समर्पण को देखते हुए बीजेपी ने 1985 में पहले भारतीय जनता युवा मोर्चा का जिला मंत्री बनाया फिर 1986 में जिला अध्यक्ष बनाया। 1989 में उन्हें भाजयुमो का प्रदेश मंत्री बनाया गया था। उपेंद्र शुक्ला 1997 से 2002 तक गोरखपुर के जिलाध्यक्ष रहे। फिर 2013 में गोरक्ष प्रांत का भी अध्यक्ष बनाया गया। इनके संगठन कौशल से गोरक्ष प्रांत के 10 जिलों की 13 में से 12 संसदीय सीटों पर 2014 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी की जीत हुई थी।
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बता दें कि उपेंद्र शुक्ला ने 2006 में बगावत करके कौड़ीराम विधानसभा उप चुनाव भी लड़ा था। उस वक्त बीजेपी ने शीतल पांडेय को उम्मीदवार बनाया था। शुक्ला के बगावत की वजह से शीतल पांडेय करीब 11 हजार वोटों से हार हार गई थीं जबकि शुक्ला ने करीब 42 हजार वोट पाए थे। इसके बाद वह संगठन के काम में लग गए। फरवरी 2013 में भाजपा ने उन्हें गोरक्ष प्रांत का क्षेत्रीय अध्यक्ष बना दिया। 2017 कि यूपी विधान सभा चुनाव में भी शुक्ला ने पार्टी की जीत में बड़ी भूमिका निभाई थी। माना जा रहा है कि इनकी इन्हीं खूबियों से प्रभावित होकर योगी आदित्यनाथ ने उन्हें अपनी राजनीतिक विरासत का उम्मीदवार बनवाया है।
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