उत्तर प्रदेश में 10 राज्यसभा सीटों पर चुनाव होने हैं। जिसमें से भाजपा के खाते में 8 और सपा-बसपा के खाते में एक-एक सीट आ सकती है। गौरतलब है कि भाजपा यूपी में थोड़े-बहुत जोड़-तोड़ के साथ 9 सीटों पर भी जीत सकती थी लेकिन भाजपा ने आश्चर्यजनक रूप से 8 सीटों पर ही अपने उम्मीदवार उतारे हैं। अब राजनैतिक एक्सपर्ट का मानना है कि भाजपा ने ऐसा जानबूझकर किया है और इसे भाजपा का मास्टरस्ट्रोक माना जा रहा है।

बता दें कि बीते लोकसभा चुनाव में और कैराना उपचुनाव में विपक्षी पार्टियों ने एकजुट होकर भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ा था। कैराना उपचुनाव में इसका फायदा भी मिला था। ऐसे में भाजपा को आशंका है कि आगामी विधानसभा चुनाव में अगर विपक्षी पार्टियां एकजुट होती हैं तो भाजपा को इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है। ऐसे में भाजपा ने रणनीति के तहत राज्यसभा की एक सीट का ‘बलिदान’ दिया है, ताकि सपा और बसपा में इस एक सीट को पाने के लिए जद्दोजहद हो और उनके बीच दूरियां बढ़ जाएं।

हालिया दिनों के घटनाक्रम को देखने से पता चलता है कि भाजपा की यह रणनीति कामयाब रही है। दरअसल जिस तरह से सपा ने निर्दलीय प्रत्याशी प्रकाश बजाज को अपना समर्थन दिया और साथ ही बसपा प्रत्याशी रामजी गौतम के प्रस्तावक विधायकों ने बागी रुख अपनाए, उससे बसपा सुप्रीमो मायावती बेहद नाराज हो गई हैं। दरअसल मायावती को लगता है कि इसके पीछे अखिलेश यादव का दिमाग हो सकता है।

जिसके बाद मायावती ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर समाजवादी पार्टी पर जमकर निशाना साधा और यहां तक कह दिया कि अगर जरुरत पड़ी तो वह भाजपा का समर्थन करेंगी लेकिन समाजवादी पार्टी का साथ नहीं देंगी। मायावती के रुख को देखते हुए लग रहा है कि आगामी विधानसभा चुनाव में मायावती शायद ही सपा के साथ जाने का फैसला करें।

बता दें कि राज्यसभा की एक सीट जीतने के लिए 37 विधायकों के समर्थन की जरुरत है। भाजपा के यूपी में 304 विधायक हैं। ऐसे में वह 8 सीटों पर आसानी से जीत जाएगी। भाजपा के बाकी बचे विधायक बसपा को समर्थन कर सकते हैं। वहीं सपा की तरफ से रामगोपाल यादव भी जरुरी विधायकों का समर्थन आसानी से जुटाकर राज्यसभा पहुंच सकते हैं।