बिहार में फरवरी के मध्य से हड़ताल पर बैठे 42 शिक्षकों की मौत हो चुकी है। हड़ताल के दौरान जान गंवाने वाले 15 शिक्षकों को सरकार ने सस्पेंड कर दिया था। वह भी सिर्फ इसलिए क्योंकि उन्होंने सातवें वेतन आयोग के तहत तनख्वाह बढ़ाए जाने और बेहतर सर्विस कंडीशन की शुरुआत की मांग की थी। अब टीचर्स एसोसिएशन ने मांग उठाई है कि बिहार सरकार हड़ताल के दौरान जान गंवाने वाले शिक्षकों के प्रति संवेदना दिखाए और हड़ताल खत्म करने के लिए कदम उठाए।
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गौरतलब है कि बिहार में इस वक्त करीब 4.5 लाख शिक्षक हड़ताल पर हैं। बिहार सरकार ने इनमें से कुल 20,000 को सस्पेंड भी किया है। जान गंवाने वाले शिक्षकों पर बिहार राज्य शिक्षक संघर्ष समन्वय समिति के मीडिया इनचार्ज मनोज कुमार ने कहा, “हम यह नहीं कह रहे कि 42 टीचर भूख से मर गए। लेकिन इनमें से कई लोगों को सस्पेंड किया गया था। जाहिर से बात है उन पर काफी दबाव था। इस तरह अचानक शिक्षकों का मरना परेशान करने वाला है। इनकी मौत की वजह हार्ट अटैक से लेकर ब्रेन हेमरेज तक रही है। कुमार ने कहा कि सरकार ने जनवरी तक की तनख्वाह तो रिलीज कर दी, लेकिन इसके बाद लोगों को नो वर्क, नो पे नोटिस थमा दिया। जिससे हड़ताली शिक्षकों को दो महीने तक सैलरी नहीं मिल सकी है।”
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उन्होंने बताया कि कोरोनावायरस के चलते लगे लॉकडाउन ने स्थितियों को और गंभीर बना दिया है। सरकार लगातार दबाने का काम कर रही है। उन्होंने पहले 20,000 टीचर्स पर केस दायर किया। फिर उन्हें सस्पेंड कर दिया। लॉकडाउन की वजह से हम सबसे कठिन समय से गुजर रहे हैं। हमारी मौजूदा नौकरी पर संशय है और कोई वैकल्पिक नौकरी भी नहीं है।
बिहार माध्यमिक शिक्षा संघ के सदस्य अभिषेक कुमार का कहना है कि हम 42 शिक्षकों की मौत के मामले को शिक्षकों की हड़ताल से नहीं जोड़ रहे। लेकिन करीब 4.5 लाख शिक्षकों के परिवार मुश्किल में जीवन काट रहे हैं। कुछ शिक्षक, जो सस्पेंड थे इस बोझ को नहीं झेल पाए। हम अपनी हड़ताल को सनसनीखेज नहीं बना रहे, लेकिन इन मौतों को देखते हुए सरकार को संवेदना से कदम उठाने चाहिए और हड़ताल खत्म करवाने की कोशिश करनी चाहिए।
बिहार में सातवें वेतन आयोग की मांग के साथ करीब 4.5 लाख शिक्षक धरने पर बैठे हैं, सरकार ने उनकी तनख्वाह रोक दी थी, जिसकी वजह से लॉकडाउन में टीचर्स को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा है।
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