दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धक्षेत्र सियाचिन में हिमस्खलन में तीन फरवरी को जिंदा दफन हुए नौ वीरों के शव सोमवार यहां लाए गए, जिससे कि उन्हें विमान के जरिए उनके गृह राज्यों को ले जाया जा सके। पालम तकनीकी हवाई अड्डे पर उन्हें पुष्पचक्र अर्पित किए गए जहां रक्षा राज्य मंत्री राव इंद्रजीत सिंह, सेना प्रमुख जनरल दलबीर सिंह सुहाग, वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल अरूप राहा तथा अन्य लोग मौजूद थे।
जिन नौ वीर शहीदों के पार्थिव शरीर यहां लाए गए, उनमें सूबेदार नागेश टीटी भी शामिल हैं । वह उच्च प्रेरित जूनियर कमीशंड अधिकारी अधिकारी थे जिन्हें ‘रैम्बो’ भी कहा जाता था । अधिकारियों ने बताया कि नागेश ने अपने 22 साल के सेवाकाल में 12 वर्ष दुरूह क्षेत्रों में सेवा की । अपने करियर के दौरान उन्होंने ‘आॅपरेशन पराक्रम’ में भाग लिया था ।
इस दौरान उन्होंने बड़ी मात्रा में बारूदी सुरंगें बरामद की थीं। उन्होंने दो साल तक जम्मू कश्मीर के मेढर सेक्टर में ‘आॅपरेशन रक्षक’ में भी भाग लिया जिसमें वह आतंकवाद रोधी अभियानों में सक्रियता से शामिल थे । उन्होंने दो साल तक जम्मू कश्मीर में राष्ट्रीय राइफल्स में भी स्वेच्छा से अपनी सेवा दी। अधिकारियों ने बताया कि जेसीओ ने एनएसजी में भी तीन साल तक कमांडो के रूप में स्वेच्छा से अपनी सेवा दी। बाद में, वह 2009 से 2012 तक ‘आॅपरेशन राइनो’ में भाग लेने के लिए पूर्वोत्तर गए जहां वह घातक प्लाटून जेसीओ के रूप में उग्रवादियों के खिलाफ अनेक सफल अभियानों में शामिल रहे।
उनके सहकर्मी उन्हें ‘रैम्बो’ के रूप में याद करते हैं । वह अत्यंत साहसी थे । उन्होंने शानदार ग्रेडिंग के साथ पैरा मोटर पाठ्यक्रम भी किया था । उनके परिवार में उनकी पत्नी आशा और दो पुत्र अमित टीएन तथा प्रीतम टीएन हैं जिनकी उम्र क्रमश: छह और चार साल है ।
शहीद सेनानियों में हवलदार एलुमलाई एम भी शामिल हैं जो उन्हें सौंपे जाने वाले हर दायित्व को तत्परता से अंजाम तक पहुंचाने को तैयार रहते थे । वह 28 अक्तूबर 1996 को मद्रास रेजीमेंट की 19वीं बटालियन में भर्ती हुए थे और तब से बटालियन का एक अभिन्न हिस्सा थे । उन्होंने हमेशा उच्च साहस का प्रदर्शन किया और अपने सेवाकाल के दौरान जम्मू कश्मीर तथा पूर्वोत्तर दोनों जगह आतंकवादियों के खिलाफ अनेक सफल अभियानों को अंजाम दिया ।
अपने कनिष्ठों को प्रेरित करने और अग्रिम मोर्चे से नेतृत्व करने की उनकी क्षमता के चलते उन्हें सोनम चौकी का हिस्सा बनने के लिए चुना गया था जिसके लिए फौलादी इरादों से युक्त उच्च शारीरिक फिटनेस वाले जवानों की जरूरत होती है। उन्होंने इन्फैंट्री स्कूल, महू से हथियार पाठ्यक्रम में इंस्ट्रक्टर ग्रेडिंग हासिल की थी। उन्हें मद्रास रेजीमेंटल सेंटर, वेलिंगटन में तैनात किया गया था जहां उन्होंने अनेक रंगरूटों को प्रशिक्षित किया। उनके काम की वरिष्ठों ने भी सराहना की । सियाचिन ग्लेशियर यूनिट में शामिल किए जाने से पहले वह यूनिट ट्रेनिंग टीम का भी हिस्सा थे।
अधिकारियों ने बताया कि काम को बिना निगरानी के करने के उच्च स्तर के बुद्धि स्तर तथा योग्यता के चलते उन्होंने अपनी पदोन्नति परीक्षाओं में सफलता अर्जित की थी और उन्हें जूनियर कमीशंड स्तर की रैंक मिलने वाली थी । उनकी पत्नी का नाम ई जमुना रानी है । उनके दो पुत्र ई कविरासू (6) तथा ई श्री प्रियदर्शन (4) हैं।
इसी कड़ी में लांस हवलदार एस कुमार का भी नाम है । वह भी उच्च प्रेरित तथा ईमानदार सैनिक थे जो हिमस्खलन में शहीद हो गए। अधिकारियों ने बताया कि वह 31 अक्तूबर 1998 को मद्रास रेजीमेंट में शामिल हुए थे । अपने 17 साल के सेवाकाल में नौ साल तक वह कठिन और चुनौती भरे स्थानों पर तैनात रहे। इस सैनिक के पास सियाचिन ग्लेशियर में दो बार तैनाती की दुर्लभ विशिष्टता थी।
कुमार ने 1999 से 2000 तक एक युवा सैनिक के रूप में स्वेच्छा से सियाचिन ग्लेशियर में अपनी सेवा दी थी । उन्होंने एक बार फिर अपनी खुद की पल्टन के साथ उत्तरी ग्लेशियर में सेवा का विकल्प चुना। कमांडिंग अफसर ने उन्हें 19,600 फुट की ऊंचाई पर स्थित सर्वाधिक महत्वपूर्ण चौकियों में से एक में तैनाती के लिए चुना था । उनके परिवार में उनकी पत्नी कविता तथा आठ वर्षीय पुत्र रियाश है।
हिमस्खलन में शहीद हुए लांस नायक सुधीश बी को ‘आॅल इन वन’ कहा जाता था। वह एक बहादुर सैनिक थे जिन्होंने जम्मू कश्मीर में आतंकवाद के खिलाफ ‘आॅपरेशन रक्षक’ में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । अपने सेवाकाल के दौरान वह यूनिट की खुफिया जानकारी जुटाने वाली टीम का हिस्सा रहे और अनेक सफल अभियान चलाने में बटालियन की मदद की । वह बहुत अच्छे खिलाड़ी थे और बटालियन की सभी खेल गतिविधियों में भाग लेते थे । उनके साथी उन्हें ‘आॅल इन वन’ कहते थे । उनके परिवार में उनकी पत्नी सलूमुल पी हैं जिन्होंने राष्ट्र की सेवा में अपने पति की मदद के लिए एक स्तंभ के रूप में काम किया।
तीस वर्षीय सिपाही एस मुश्ताक अहमद हमेशा खुश रहने वाले आत्मविश्वास से लबरेज सैनिक थे। सेना अधिकारियों ने बताया कि मुश्ताक 21 सितंबर 2004 को मद्रास रेजीमेंट में भर्ती हुए थे । उनकी खुशमिजाजी और मित्रवत व्यवहार के चलते उन्हें अपने वरिष्ठों और साथियों से हमेशा सहयोग और समर्थन मिला। वह आंध्र प्रदेश के कुर्नूल जिले के रहने वाले थे। अपने सेवाकाल में वह पूर्वोत्तर और जम्मू कश्मीर में आतंकवाद रोधी अभियानों में भी बटालियन का हिस्सा रहे।
जब अगस्त में बटालियन को सियाचिन ग्लेशियर में तैनात किया जाना था तब मुश्ताक ने अपनी देशभक्ति की भावना और साहसी प्रवृति के चलते स्वेच्छा से वहां जाने की इच्छा व्यक्त की थी। उनके परिवार में उनकी पत्नी नसीमन तथा उनके माता पिता हैं। अधिकारियों ने बताया कि सियाचिन हिमस्खलन में शहीद हुए एक अन्य सैनिक सिपाही महेश पीएन मद्रास रेजीमेंट की 19वीं बटालियन में 10 अक्तूबर 2005 को शामिल हुए थे। उन्होंने अपने 11 साल के सेवाकाल में सात साल तक कठिन और चुनौतीपूर्ण क्षेत्रों में काम किया। उन्होंने बताया कि महेश एक अचूक निशानेबाज थे और बटालियन की फायरिंग टीम का हिस्सा थे जिसने अनेक प्रतियोगिताएं जीतीं। उनके परिवार में उनकी मां सर्वमंगला और छोटा भाई मंजूनाथ हैं। वह अपने परिवार में एकमात्र कमाने वाले व्यक्ति थे।
सिपाही रामामूर्ति एन अपनी बटालियन को मिलने वाले कठिन से कठिन काम में शामिल रहने को हमेशा तैयार रहते थे। वह मद्रास रेजीमेंट में भर्ती हुए थे और 13 दिसंबर 2009 को 19वीं बटालियन में तैनात किए गए थे । अपने सात साल के छोटे से सेवाकाल में उन्होंने ‘आॅपरेशन राइनो’ में सक्रिय भमिका निभाई। वह कंपनी की त्वरित कार्रवाई टीम का हिस्सा रहे और कई सफल अभियानों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हाल ही में उनकी शादी हुई थी। उनकी पत्नी का नाम सुनीता है।
हिमस्खलन में सिपाही गणेशन जी भी शहीद हो गए। वह पांच अप्रैल 2010 को मद्रास रेजीमेंट की 19वीं बटालियन का हिस्सा बने थे । वह तमिलनाडु के मदुरै जिले के रहने वाले थे और हमेशा देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत रहते थे। उनसे प्रेरित होकर उनका छोटा भाई भी सेना में भर्ती हुआ था। उनके परिवार में उनके माता पिता और छोटा भाई है।