ओमप्रकाश ठाकुर
अंग्रेजी हुकुमत के पसंदीदा स्थल, कई ऐतिहासिक फैसलों और आंदोलनों की गवाह रही हिमाचल की राजधानी शिमला का नाम लेते ही इसकी दिल लुभाने वाली वादियों के साथ-साथ कला-संस्कृति के लिए मशहूर गेयटी थिएटर का नाम भी कलाप्रेमियों के दिल के तारों का झंकृत कर देता है। यह थिएटर न केवल इस पहाड़ों की रानी के साथ ही निर्मित, विकसित हुआ, बल्कि इसके बराबर ही प्रसिद्धि भी पाई है। शिमला को 1864 में अंग्रेज़ों की ओर से ब्रिटिश हिंदुस्तान की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाए जाने के कुछ सालों बाद बना मशहूर व अनूठा गेयटी थियेटर एक सदी से भी ज्यादा समय से दुनिया के तमाम कला आंदोलनों का गवाह रहा हैं। पुरातन कला आंदोलनों के चिन्हों के अवशेषों के बाद अब समकालीन कलाओं के रंग-रूप भी यहां अपनी छाप छोड़ रहे हैं। अब यह ऐतिहासिक इमारत धरोहर इमारत में शुमार हो गई है।

वर्ष 1907 में साहित्य के लिए नोबल जीतने वाले विख्यात साहित्यकार व अपने समय के प्रख्यात रंगकर्मी रुपयार्ड किपलिंग से लेकर बॉलीवुड फिल्म थ्री इडियट के शर्मन जोशी तक सैकड़ों रंगकर्मियों की कला का गवाह बन चुका गेयटी थियेटर पूरे एशिया में गोथिक शैली का अपनी तरह का अकेला और अनूठा थियेटर हैं। गोथिक शैली में जिस तरह से इस थियेटर का निर्माण हुआ हैं उस तरह के थियेटर दुनिया में दो ही हैं। दूसरा फ्रांस में हैं। रंगकर्म ही नहीं शास्त्रीय गायन-वादन, चित्रकला से लेकर देश भर की लोककलाओं को भी इस थियेटर में मंच मिला हैं। भारत के विख्यात गायक केएल सहगल ने अपनी पहली पेशकश इसी थियेटर में दी थी। उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा और बॉलीवुड की फिल्मों में उन्होंने अपनी आवाज़ से धूम मचा दी। फिल्मी दुनिया में अदाकारी का लोहा मनवाने वाले पृथ्वीराज कपूर ने भी अपने अभिनय का जलवा दिखाया।

वास्तुकार इरविन ने बनाया था
30 मई 1887 को बनकर तैयार हुए गोथिक शैली के इस थियेटर को ब्रिटिश राज में तब के वास्तुकार हेनरी इरविन ने बनाया था। याद रहे 1887 जिस साल यह थियेटर बन कर तैयार हुआ वह अंग्रेजÞ रानी विक्टोरया का जुबली साल था। वह जून 1837 में रानी बनी थी व रानी के जुबली साल को ब्रिटिश सामा्रज्य में धूमधाम से मनाया गया था। हेनरी इरविन की देखरेख में बनी इस पांच मंजिला इमारत को बाद में ढहाना पड़ा था। कहा जाता है कि ऐतिहासिक रिज और मालरोड जिसे तब ठंडी सड़क कहा जाता था, के बीच बनी यह सबसे ऊंची इमारत थी। बहुत ऊंची इमारत होने से यह असुरक्षित घोषित कर दी गई व 1911 में इसकी ऊपर की मंजिलें ढहा दी गई। लेकिन गेयटी थियेटर समेत इसकी तीन मंजिलें बच गर्इं।

नसीर व खेर सरीखे कलाकारों का स्थल
उत्सव के दौरान रंगमंच की दुनिया के बेताज बादशाह नसीरूदीन शाह और अनुपम खेर सरीखे कलाकारों ने भी यहां पर अदाकारी के जौहर दिखाए। थ्री इडियट के शर्मन जोशी को भला आज के युवा कैसे भूल सकते हैं। वह भी यहां पर अपनी पेशकश दे चुके हैं। ये तीनों ही नामी रंगकर्मी और कलाकार यहां पर हाल के सालों में नाटकों का मंचन कर चुके हैं। शिमला के समीप के गांव क्वार के मनोहर सिंह ने तो अपनी अदाकारी क ी शुरुआत ही गेयटी से की थी। वह लोककला करियाणा के जरिए रंगकर्म से जुड़े थे।
वर्ष 1887 में अस्तित्व में आया थियेटर जर्जर हो गया था । केंद्र व प्रदेश सरकार के सहयोग से इसके पुराने वैभव व स्वरूप को बरकरार रखते हुए छह सालों तक इसका जीर्णोद्धार किया। मुबंई में विख्यात पृथ्वी थियेटर को डिजाइन करने वाले वास्तुकार वेद सेगन को इस थियेटर का पुराना वैभव बहाल करने की खासतौर पर जिम्मेदारी सौंपी गई। 2003 से इस थियेटर का जीर्णोद्धार का काम शुरू हुआ और करीब 12 करोड़ रुपए से छह सालों के मेहनत के बाद ये थियेटर दोबारा कलाकारों के लिए मुहैया हो गया। इसमें रोशनी व ध्वनि के आधुनिकतम उपकरण लगाए गए ।

तीन सौ दर्शकों की क्षमता

तीन सौ दर्शकों व श्रोताओं के बैठने की क्षमता वाले इस थियेटर में वायसराय, तत्कालीन सेना के अधिकारियों और भारतीय राजाओं के लिए बैठने की अलग इंतजाम किए गए थे। यहां पर रंगकर्म ही नहीं, शास्त्रीय नृत्य और शास्त्रीय संगीत में दुनिया में शोहरत कमा चुके फनकारों ने भी अपने फन से श्रोताओं को रूबरू कराया हैं। पाकिस्तान की सूफी गायिका आबिदा परवीन से लेकर हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की नामी शख्सियतों का नाम इस थियेटर से जुड़ा हैं। शिमला के राजधानी बनने की 150वीं सालगिरह पर 2014 से हर साल सितंबर-अक्तूबर महीने में यहां पर शिमला शास्त्रीय संगीत उत्सव मनाया जा रहा हैं। अंग्रेजों ने 1864 में शिमला को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाया था। यह दीगर है कि शिमला के राजधानी बनने की 150वीं सालगिरह मनाने की कुछ आलोचना भी हुई थी कि आखिर दासता के प्रतीकों का जश्न क्यूंकर मनाया जाए। बहरहाल, कला व संस्कृति का जश्न खूब मना। तब से लेकर अब तक मनाए जा रहे इस उत्सव में सरोद वादक पदम विभूषण अमजद अली खान, बांसुरी वादक हरि प्रसाद चौरसिया, मोहन वीणा वादक पंडित विश्वमोहन भट्ट, शास्त्रीय गायिका अश्वनी भिड़े देशपांडे, शास्त्रीय गायक पंडित चुन्नी लाल मिश्रा, पंडित राजन व साजन मिश्रा, शुभा मुद्गल, पंडित जसराज व राशिद खान समेत दर्जनों कलाकार अपनी कला का जादू यहां बिखेर चुके हैं।