मध्य प्रदेश में कोरोनावायरस के बढ़ते केसों के बीच अब कोविड अस्पतालों में मरीजों के लिए रेमडेसिविर इंजेक्शन तक का इंतजाम नहीं हो पा रहा है। राज्य के सबसे आधुनिक शहर इंदौर में तो आलम यह है कि मरीजों और उनके परिजनों को खुद ही बाहर के मेडिकल स्टोरों पर जा कर रेमडेसिविर का इंजेक्शन लाना पड़ रहा है।

बता दें कि कोरोना के हल्के लक्षण, जैसे- खांसी-जुकाम, सांस लेने में तकलीफ जैसी समस्याओं पर पहले मरीज की जांच करना अनिवार्य है। इसके बाद अगर उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव आती है, तो उन्हें स्थिति के हिसाब से रेमडेसिविर की डोज दी जानी है। रेमडेसिविर को कोरोना के गंभीर मरीजों के इलाज में कारगर कहा जा रहा है। ऐसे में डॉक्टरों की भी इस दवा पर निर्भरता बढ़ी है। लेकिन सप्लाई कम होने की वजह से मरीजों को रेमडेसिविर खरीदने के लिए खासा संघर्ष करना पड़ रहा है। सरकारी अस्पतालों में तो इसकी सप्लाई तक नहीं हो पा रही।

कई मरीजों के परिजनों को जब रेमडेसिविर का इंजेक्शन लाने के लिए कहा गया, तो उन्हें बाहर के मेडिकल स्टोर पर भी चार से पांच हजार रुपए का यह इंजेक्शन नहीं मिला। इस दवा की फिलहाल इतनी शॉर्टेज है कि लोग बमुश्किल ही इसे हासिल कर पा रहे हैं।

बता दें कि कोरोना के गंभीर मरीजों को रेमडेसिविर के 6-7 डोज दिए जा रहे हैं। ऐसे में मरीजों के 30 से 40 हजार रुपए इस दवा की डोज में ही खत्म हो जा रहे हैं। इसके बावजूद सरकार अब तक इसकी सप्लाई सुनिश्चित नहीं करा पा रही। इंदौर के कोरोना के इलाज के लिए डेडिकेटेड कोविड एमआर टीवी और एमटीएच अस्पताल में भी यह दवा उपलब्ध नहीं है। बताया गया है कि सरकार ने इसे अभी आवश्यक दवाओं की सूची में शामिल नहीं किया है।

संक्रमित स्टाफकर्मियों को भी निजी अस्पतालों से लाना पड़ रहा इंजेक्शन
चौंकाने वाली बात यह है कि आम लोग ही नहीं सरकारी अस्पतालों के स्टाफकर्मियों तक को यह इंजेक्शन बाहर से ही मंगाना पड़ रहा है। अब तक एमटीएच कोविड हॉस्पिटल के प्रभारी डॉक्टर सुमित शुक्ला से लेकर कई अन्य स्वास्थ्यकर्मियों को कोरोना हुआ था। पर दवा की गौरमौजूदगी के बाद उन्हें शहर के निजी अरबिंदो अस्पताल से रेमडेसिविर की डोज मंगानी पड़ी।