राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत चौथी बार राजस्थान में सत्ता हासिल करने की जुगत में लगे हैं। अगर ऐसा होता है तो एक बार कांग्रेस एक बार भाजपा की सियासी परंपरा राजस्थान में टूट जाएगी। पिछले तीन दशकों में राजस्थान में विधानसभा चुनावों में कांग्रेस और भाजपा के बीच आमने-सामने की टक्कर देखी गई है और निर्दलीय तीसरी सबसे बड़ी राजनीतिक ताकत बनकर उभरे हैं।
1951 से 2018 तक हुए 15 विधानसभा चुनावों में निर्दलीय नौ बार जीती गई सीटों के मामले में तीसरा सबसे बड़ा ग्रुप रहे हैं जबकि वोट शेयर के मामले में निर्दलीय लड़ने वालों की संख्या 10 बार तीसरे स्थान पर रही है।
राजस्थान में रहा है निर्दलीय प्रत्याशियों का प्रभाव
राजस्थान की पॉलिटिक्स में गैर-कांग्रेस और गैर-बीजेपी पार्टियां जैसे कि बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी), सीपीआई (एम), राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलटीपी), भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी), और राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) अपनी पैठ नहीं बना पाई हैं।
जबकि चुनाव आयोग (ईसी) के आंकड़ों से पता चलता है कि राजस्थान विधानसभा के पहले दो चुनावों में जीती गई सीटों में निर्दलीय दूसरा सबसे बड़ा ग्रुप रहे हैं। 1951 में 160 सदस्यीय विधानसभा में निर्दलीयों की संख्या 35 थी जबकि 1957 में 176 सदस्यीय विधानसभा में संख्या 32 थी।
हालांकि1962 में निर्दलीय तीसरे स्थान पर खिसक गए, जब उनकी संख्या घटकर 22 रह गई। कांग्रेस (88) के अलावा, दूसरी पार्टी जो निर्दलीयों से आगे थी वह स्वतंत्र पार्टी थी जिसने 36 सीट पर जीत हासिल की थी। 1967 में हुए अगले चुनावों में 184 सदस्यों वाले सदन में 16 सीटों के साथ निर्दलीय चौथे स्थान पर खिसक गये।
भाजपा का पहला चुनाव
1980 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की एंट्री हुई। कांग्रेस ने 200 सदस्यीय विधानसभा में 133 सीटें जीतकर जोरदार वापसी की। भाजपा जो उसी वर्ष अपनी स्थापना के बाद अपना पहला चुनाव लड़ रही थी 32 सीटें हासिल कर दूसरे स्थान पर रही। निर्दलीय 12 सीटें जीतने में कामयाब रहे और तीसरे स्थान पर रहे।
1990 में कांग्रेस चुनाव हार गई। 85 सीटों के साथ भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी लेकिन 200 सीटों वाले सदन में बहुमत के आंकड़े 101 से पीछे रह गई। इसके बाद जनता दल (55) और कांग्रेस (50) का स्थान रहा। नौ सीटों के साथ निर्दलीय चौथे स्थान पर रहे।
1993 के बाद बदली परंपरा
1993 के बाद से भाजपा और कांग्रेस ने बारी-बारी से राजस्थान विधानसभा चुनाव जीते हैं। 1993 में भाजपा ने 95 और कांग्रेस ने 76 सीटें जीतीं। 1998 में कांग्रेस 153 और भाजपा 33 सीटें। 2003 में भाजपा 120 और कांग्रेस 56 सीटें। 2008 में कांग्रेस 96 और भाजपा 78 सीटें। 2013 में बीजेपी 163 और कांग्रेस 21 सीटें। 2018 में कांग्रेस 100 और भाजपा 73 सीटें।