वंदना
पंजाब में ऐसा पहली बार नहीं हो रहा कि चुनाव में छह महीने का समय रह गया हो और सब राजनीतिक दलों में उथलपुथल मची हो। किसान आंदोलन को लेकर जो राजनीतिक दल चुनावी नाव पार करने की तैयारी में थे, वे सब अब दलित का राग अलाप रहे हैं। पंजाब में धर्म को लेकर तो राजनीति शुरू से होती आईहै पर ऐसा पहली बार हो रहा है जब जातिगत राजनीति ने सियासी पारा चढ़ा दिया है।
दलितों को बड़े-बड़े पद देने की घोषणाएं शुरू हुईं। शिरोमणि अकाली दल प्रमुख सुखबीर बादल ने साफ कहा है कि हमारी सरकार बनी तो दलित को उपमुख्यमंत्री बनाएंगे। इसके बाद तो होड़ ही लग गई। भारतीय जनता पार्टी ने आनन-फानन में दलित को मुख्यमंत्री बनाने की बात कर दी। आम आदमी पार्टी भी दलितों के लिए झंडा उठाए खड़ी हो गई है। रही बात कांग्रेस की तो उसे तो फिलहाल अपनी आपसी जंग से ही फुरसत नहीं मिल पारही जोकि उनकी जीत की आशाओं को धूमिल कर रही है।
अभी कुछ महीने पहले किसानों की हितैषी बनने और दिखाने की होड़ में लगे सभी राजनीतिक दल किसान आंदोलन के कुछ सिमटते ही अचानक दलितों का सरमायेदार बनने की होड़ में लग गए हैंं। पंजाब में 32.5 फीसद दलित वोट हैं जोकि पंजाब की राजनीति में बड़ी अहमियत रखते हैं। माझा, मालवा और दोआबा क्षेत्रों में बंटे इस राज्य में हर चुनाव में अंतिम फैसले का दारोमदार मालवा क्षेत्र के जिम्मे रहता है। राज्य के सबसे ज्यादा जिले भी यहीं हैं और विधानसभा की कुल 117 सीटों में से 65 हलके इसी इलाके से हैं। साथ ही शिरोमणि अकाली दल के सर्वेसर्वा प्रकाश सिंह बादल और इस बार मुख्यमंत्री पद की इच्छा पाले उनके पुत्र पार्टी अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल इसी इलाके के मुक्तसर जिले से हैं। इसी तरह कांग्रेस के कैप्टन अमरिंदर सिंह भी इसी इलाके के पटियाला से हैं। पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष सुनील जाखड़ भी इसी क्षेत्र के अबोहर से हैं।
आम आदमी पार्टी के प्रदेश प्रमुख भगवंत सिंह मान भी इसी इलाके से हैं। किसान आंदोलन ने भी मालवा से ही जोर पकड़ा। इस इलाके में गरीब किसान काफी संख्या में हैं और वे अपनी मिट्टी, अपनी जमीन के लिए बेहद भावुक हैं। वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक दोआबा क्षेत्र की कुल आबादी 52.08 लाख थी जिसमें से 19.48 लाख दलित समुदाय से हैं। इनमें से 11.8 लाख रविदासिया समुदाय से हैं, जबकि 4.56 लाख वाल्मीकि और बाकी के 3.04 लाख अन्य दलित समुदायों से हैं।
दोआबा क्षेत्र जलंधर, होशियारपुर, नवांशहर और कपूरथला जिले से बना है और इनमें ही सर्वाधिक आबादी दलित समुदाय की है। यह बात अलग है कि इनमें से ज्यादातर बड़े सपनों के कारण कनाडा, अमेरिका में जा बसे हैं। इस पूरे इलाके को एनआरआइ बैल्ट भी कहा जाता है। पंजाब में 60 फीसद दलित आबादी रविदासिया समुदाय की है। पंजाब के समाज कल्याण विभाग के आंकड़ों के मुताबिक राज्य की अनुसूचित जाति से संबंधित आबादी में से 73.3 फीसद गामीण क्षेत्रों में रह रही है जबकि 26.67 फीसद शहरों में। फिलहाल यह देखना है कि भाजपा को ग्रामीण क्षेत्रों से समर्थन मिलता है या नहीं और अगर मिलता भी है तो कितना। पंजाब के ग्रामीण क्षेत्रों में भाजपा की पकड़ हमेशा से ही ढीली रही है।
अकाली दल के सहारे से ही वह संगठन से सरकार में तबदील होती रही है। पंजाब के गांवों की दीवारों पर बसपा का हाथी तो फिर भी दिखाई पड़ जाता है पर भाजपा का कमल अकाली दल की तकड़ी के साथ ही दिखाई देता रहा है। सारा दारोमदार शहरी वोटों पर है। राज्य में 31.3 फीसद आबादी अन्य पिछड़ा वर्ग की भी है।
राज्य में विधानसभा के कुल 117 हलकों में से 34 हलके अनुसूचित जाति के उम्मीदवार के लिए आरक्षित हैं। पंजाब में कुल 23 जिले हैं जोकि माझा, मालवा और दोआबा क्षेत्रों में विभाजित हैं। इनमें माझा में अमृतसर, तरनतारन, गुरदासपुर और पठानकोट आते हैं। दोआबा क्षेत्र जलंधर, होशियारपुर, नवांशहर और कपूरथला जिले से बना है और बाकी जिले मालवा क्षेत्र से हैं जिनमे बरनाला, बठिंडा, फरीदकोट, फतेहगढ़साहिब, फिरोजपुर, लुधियाना, मानसा, मोगा, मुक्तसर, पटियाला, संगरूर, फाजिÞल्का, अबोहर और नया बना जिला मालेरकोटला शामिल है।