वंदना
पंजाब की राजनीति में पिछले कुछ दिनों से मची हलचल की तरफ सभी राजनीतिक विश्लेषकों की नजरें लगी हैं। पंजाब की सरदारी हासिल करने के लिए बार-बार दस जनपथ की तरफ लगी नेताओं की कतार पर हो रहे मंथन से कुछ अमृत, तो कुछ विष मिलने की उम्मीद तो सबको थी पर यह विष किसके हिस्से आएगा,यह स्पष्ट नहीं हो रहा था। पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए महीनों से दिल्ली की दौड़ लगा रहे अमृतसर से विधायक नवजोत सिंह सिद्धू ने जिस तरह अध्यक्ष पद की शपथ लेने से पहले कैप्टन के सामने ही हाथ को बल्ला बना कर शॉट लगाया और शपथ लेते ही ‘देहू शिवा वर मोहे…’ की हुंकार लगाई, उससे स्पष्ट हो गया है कि उन्होंने इस पूरी कवायद में बेशक पार्टी प्रोटोकोल को नजरअंदाज किया हो पर उनके साथ आलाकमान खड़ा है, जो उनके सारे बचपने को माफ करने को तैयार बैठा है या फिर मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह को बौना दिखाने की पूरी तैयारी में है।
इस घटनाक्रम में दस जनपथ की चुप्पी जरूर राजनीतिक विश्लेषकों को हैरान किए है। वह भी तब, जब देश के नक्शे के ज्यादातर हिस्सों में कांग्रेस का रंग गायब हो रहा है और पार्टी आलाकमान भी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी या बाद में सोनिया गांधी के कार्यकाल जितना मजबूत नहीं है। अब कमान युवाओं के हाथ में है और प्रयोग किए जा रहे हैं ताकि परिणाम सही आया तो बाकी जगह भी उसे ही इस्तेमाल कर नए समीकरण तैयार किए जा सकें।
पंजाब में नवजोत सिंह सिद्धू के सिर पार्टी की प्रधानी के ताज के साथ-साथ चार और कार्यकारी अध्यक्ष बना वैसे भी कांग्रेस ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। विपक्षी शिरोमणि अकाली दल इसी मुद्दे पर कांग्रेस पर तंज कस रहा है। सिद्धू की ताजपोशी के तुरंत बाद ही शिअद नेता एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल के ये बयान भी खूब वायरल हुए-‘पंजाब कांग्रेस के चार-चार कार्यकारी अध्यक्षों की तैनाती की वजह सिद्धू की कमजोरी तो नहीं..’ या फिर ‘पंजाब कांग्रेस के दो इंजन लग गए हैं और दोनों ही एक-दूसरे से विपरीत दिशा में गाड़ी खींचेंगे… तो सोचो गाड़ी की हालत क्या होगी..जनता की तो बात ही छोड़िए।’
चार महीने पहले ही पंजाब में 2022 के चुनाव में जीत आसानी से कांग्रेस की झोली में गिरने की बात कहने वाले राजनीतिक विश्लेषक भी अब कांग्रेस की जीत पर संशय जता रहे हैं। खासकर ताजपोशी के तुरंत बाद सिद्धू ने जिस तरह इधर-उधर बैठे कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के पांव छुए पर कैप्टन को पूरी तरह नजरअंदाज किया, उससे लगता है कि आलाकमान भी 79 वर्ष के अनुभवी कैप्टन के बजाय 57 वर्ष के अपरिपक्व सिद्धू को तरजीह दे रहा है ताकि नेतृत्व की अगली लाइन तैयार की जा सके।
कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता चरण सिंह सपरा भी ‘पंजाब की कमान किसके हाथ’ का गोलमोल जवाब ही देते हैं कि कैप्टन अमरिंदर सिंह के भी और नवजोत सिंह सिद्धू के हाथ भी। इस बाबत पूछने पर उन्होंने कहा, दोनों ही कैप्टन हैं। दोनों की भूमिकाएं अलग-अलग हैं पर लक्ष्य एक ही है। सिद्धू के पिछले दिनों के कुछ अपनी ही सरकार और मुख्यमंत्री पर निशाना साधने वाले बयानों पर भी वह यही कहते हैं कि सिद्धू में जो उतावलापन या खिलदंड़पन है, वह अब काफी हद तक ठीक हो रहा है और पद मिलने के बाद तो धीरे-धीरे ठीक हो ही जाएगा।
जो भी हो, प्रदेश कांग्रेस के मौजूदा हालात देखकर ऐसा लगता है कि उफनते दूध पर पानी का छिड़काव कर इसे कुछ समय के लिए दबा दिया गया है। मगर नीचे की आंच जलती रही तो देर सबेर यह दूध छिटक कर बाहर गिरेगा, जिससे किनारों को भी सफाई की जरूरत पड़ेगी। पंजाब की प्रयोगशाला में हो रहा कांग्रेस का यह प्रयोग सफल रहा तो और भी राज्यों में इसका दोहराव होगा। पर अगर नाकामी मिली तो बड़ा नुकसान होने का अंदेशा है।