राष्ट्रपति ने दिल्ली की आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार के संसदीय सचिव विधेयक को मंजूरी देने से इनकार कर दिया है। इसमें संसदीय सचिव के पद को लाभ के पद के दायर से बाहर रखने का प्रावधान था। राष्ट्रपति की ओर से विधेयक को मंजूरी नहीं मिलने से आम आदमी पार्टी के 21 विधायकों की सदस्यता रद्द हो सकती है। अब इस मामले का फैसला चुनाव आयोग को करना है। उसकी रिर्पोट राष्ट्रपति को भेजी जाएगी। संविधान विशेषज्ञों के मुताबिक किसी भी सांसद या विधायक की सदस्यता रद्द करने का अधिकार राष्ट्रपति के पास है। राष्ट्रपति की ओर से विधेयक को मंजूरी नहीं मिलने के बाद संभावित स्थिति पर विचार करने के लिए आम आदमी पार्टी ने एक आपातकालीन बैठक की। वहीं मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस घटनाक्रम पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा है। केजरीवाल ने आरोप लगाया कि वह लोकतंत्र का सम्मान नहीं करते और आप से डरते हैं।
दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार ने नरेला के विधायक शरद कुमार, बुराड़ी के संजीव झा, मुंडका के सुखवीर सिंह, वजीरपुर के राजेश गुप्त, सदर बाजार के सोमदत्त, चांदनी चौक की अलका लांबा, मोती नगर के शिवचरण गोयल, राजौरी गार्डन के जरनैल सिंह, तिलक नगर के जरनैल सिंह, जनकपुरी के राजेश रिशी, द्वारका के आर्दश शास्त्री, नजफगढ़ के कैलाश गहलोत, राजेंद्र नगर से विजेंद्र गर्ग, जंगपुरा से प्रवीण कुमार, कस्तूरबा नगर के मदन लाल, महरौली के नरेश यादव, कालका जी के अवतार सिंह, कोंडली के मनोज कुमार, लक्ष्मीनगर के नितिन त्यागी, गांधी नगर के अनिल कुमार वाजपेयी, और रोहताश नगर की सरिता सिंह को विभिन्न विभागों और मंत्रालयों में संसदीय सचिव बनाया था।
बीते साल 19 जून को प्रशांत पटेल ने इसकी शिकायत राष्ट्रपति के समक्ष की थी। पटेल ने अपनी याचिका में कहा था कि दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने दिल्ली के संविधान की धारा 15 का उल्लंघन कर अपने 21 विधायकों को लाभ के पदों पर बिठा दिया है। इसके बाद 20 जून को दिल्ली सरकार ने एक बिल पास किया। इसमें कहा गया है कि दिल्ली सरकार इस तरह से विधायकों को पद दे सकती है। ये बिल 23 जून 2015 को दिल्ली की विधानसभा में रखा गया। वह 24 जून को पारित हो गया। इस बिल में ये भी कहा गया है कि ये बिल पिछले छह माह पहले से लागू होगा। दिल्ली विधानसभा में इस तरह का ये पहला बिल था, जो अपनें पास होने की तारीख से छह माह पहले ही लागू हो रहा था।
संविधान विशेषज्ञ एंव दिल्ली विधानसभा के पूर्व सचिव एसके शर्मा के मुताबिक दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने इस मामले में असंवैधानिक काम किया है। उन्होंने कहा कि सरकार इस तरह से 21 विधायकों को लाभ के पदों पर बिठा ही नहीं सकती है। यही आवेदन लेकर याचिकाकर्ता प्रशांत पटेल राष्ट्रपति के पास गए। राष्ट्रपति ने उनकी याचिका को चुनाव आयोग के पास भेज दिया। आयोग ने आप के इन विधायकों को नोटिस जारी कर दाखिल करने को कहा। ये सभी 21 विधायक चुनाव आयोग को जवाब दे चुके हैं। इसकी प्रति याचिकाकर्ता प्रशांत पटेल को भी सौंपी जा चुकी है। इस मामले में याचिकाकर्ता पटेल चुनाव आयोग को अपना जवाब भेज चुके हैं। अब इस मामले का फैसला चुनाव आयोग को करना है। वह अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपेगा। इसके बाद राष्ट्रपति आप के इन 21 विधायकों की सदस्यता पर फैसला लेंगे। पार्टी की बैठक की अध्यक्षता अरविंद केजरीवाल ने की। इसमें कई नेताओं ने केंद्र की कड़ी आलोचना की। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति ने मोदी सरकार की सिफारिश पर विधेयक खारिज किया है।
वहीं केजरीवाल ने ट्विटर के जरिए भी अपनी नाराजगी जताई। उन्होंने कहा कि किसी भी विधायक को संसदीय सचिव के रूप में उनकी क्षमता से एक भी पैसा, कार या बंगला नहीं दिया गया। उन्होंने कहा कि वे मुफ्त में सेवाएं दे रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘मोदीजी का कहना है कि आप सभी घर पर बैठें। काम नहीं करें।’ केजरीवाल ने कहा कि विधायकों को बिजली आपूर्ति, जलापूर्ति, अस्पताल और स्कूलों के संचालन पर गौर करने का काम दिया गया है। उन्होंने कहा, ‘मोदी जी का कहना है कि न काम करुंगा और न ही करने दूंगा।