चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर पिछले कुछ समय से राष्ट्रीय चर्चा में लगातार बने हुए हैं। पहले वे सिर्फ रणनीतिकार के रूप में थे, लेकिन अब वे एक राजनेता के तौर पर खुद को उभार रहे हैं। अलग-अलग दलों के लिए चुनावी रणनीति तैयार करने और उसके लिए काम करने के दौरान उनकी राजनीतिक समझ बढ़ती जा रही है। यही वजह है कि उन्होंने दलों के साथ काम करने को लेकर अब चयन का तरीका बदल दिया है। काफी समय से कांग्रेस के साथ उनके जुड़़ाव होने और फिर उनसे दूर होने के बाद अब उन्हें देश की सबसे पुरानी पार्टी फूटी आंख नहीं सुहा रही है।

मंगलवार को बिहार के वैशाली में मीडिया से बात करते हुए प्रशांत किशोर ने कहा कि करीब-करीब सभी बड़े दलों के साथ पिछले 10 वर्षों में वे 11 चुनावों के लिए रणनीति बनाए और लड़े, लेकिन सिर्फ एक हारे, वह भी कांग्रेस के साथ यूपी के चुनाव में नहीं जीत सके। इसका पूरा विवरण भी उन्होंने दिया।

2014 में भाजपा के साथ काम किए और बड़ी जीत हासिल की। 2015 में बिहार में महागठबंधन के साथ जुड़ा और काम किया। उसमें भी जीत हासिल हुई। 2017 में पंजाब में चुनाव मैदान में उतरे और जीते। इसके बाद इसी ट्रैक रिकॉर्ड के साथ 2019 में आंध्र प्रदेश में जगनमोहन रेड्डी के साथ काम किया और सफलता मिली। 2020 में अरविंद केजरीवाल के लिए काम किया और दिल्ली जीता। 2021 में तमिलनाडु और बंगाल जीते। इस बीच एक चुनाव 2017 में यूपी में कांग्रेस के साथ हारे।

एक टीवी इंटरव्यू में प्रशांत किशोर ने हाल ही में कहा था कि कांग्रेस पार्टी को मेरी कोई जरूरत समझ में आई होगी, इसलिए गांधी परिवार ने मुझसे बात की थी। अगर मेरी जरूरत उनको ना होती तो कहां गांधी फैमिली और कहां प्रशांत किशोर, दोनों में कोई बराबरी नहीं है। वे हमें न बुलाते।

कहा कांग्रेस में ऐसी व्यवस्था है कि अपने को तो सुधारेगी नहीं, हमको भी डूबा देगी। उन्होंने कहा कि अब वह कांग्रेस से दूरी बनाकर रहेंगे और उनके साथ किसी तरह का कोई संबंध नहीं रखेंगे। कांग्रेस खराब पार्टी नहीं है लेकिन वह खुद को बदलना नहीं चाहती और अपनी वजह से हर बार नुकसान उठाती है।