अकसर देखा जाता है कि बड़ी-बड़ी घटनाओं के बाद अधिकारी वाहवाही बटोरने के लिए अग्रिम पंक्ति में खड़े हो जाते हैं। बीते दिनों अतिसुरक्षित माने जाने वाली अदालत में जब विस्फोट हुआ तो जिला पुलिस के आला अधिकारियों से लेकर प्रवक्ताओं तक ने चुप्पी साध ली। पर जैसे ही वारदात में शामिल आरोपी हत्थे चढ़ा। दिल्ली पुलिस के मुखिया तक ने ट्वीट कर इसकी जानकारी साझा की और वाहवाही लूटी।

बेदिल ने कई बार देखा है कि जब कभी कोई हाई प्रोफाइल घटना घट जाए तो अकसर अधिकारी चुप्पी साध लेते हैं। हैरानी तो तब हुई कि जब एक ही जानकारी को कई माध्यमों से साझा किया गया और बताया गया कि विभाग ने मामले की गंभीरता को देखते हुए त्वरित कार्रवाई की और घटना के कुछ दिनों बाद ही आरोपी की गिरेबान तक पहुंची बना ली। मगर बेदिल की समझ में यह नहीं आ रहा कि आरोपी अदालत के कमरे तक विस्फोटक ले जाने में सफल कैसे हुआ। इसे लेकर कोई सटीक जवाब किसी के पास भी नहीं है।

बिना मरीज अस्पताल

औद्योगिक महानगर सेक्टर-30 में स्थित सुपर स्पेशियलिटी बाल चिकित्सालय एवं स्नातकोत्तर शैक्षणिक संस्थान एक बार फिर एम्स को सुपुर्द किए जाने या एम्स के रूप में तब्दील किए जाने को लेकर चर्चाओं में है। अलबत्ता तकरीबन 1400 करोड़ रुपए की लागत से तैयार यह संस्थान अपनी छाप बनाने या लोगों को इलाज के लिए अपनी तरफ खींच पाने में अभी तक पूरी तरह से नाकाम रहा है। जबकि इसी से सटे जिला अस्पताल में रोजाना करीब तीन हजार से अधिक मरीज इलाज कराने पंहुचते हैं। वहीं कई विशेषज्ञों और चिकित्सकों वाले इस अस्पताल में मरीजों का टोटा बना हुआ है। बेदिल ने पाया कि स्टाफ, सुरक्षाकर्मियों, विशेषज्ञ चिकित्सकों समेत चिकित्सकीय स्टाफ आदि की वेतन और भत्तों के मद में ही करीब 100 करोड़ रुपए सालाना का व्यय हो रहा है। सुनने में तो यह भी आया है कि एक साल में यहां मरीजों की संख्या इतनी भी नहीं हो पा रही है, जितनी जिला अस्पताल में केवल एक महीने में बीमार पहुंचते हैं।

राहत की अपील

राजधानी में कोरोना संक्रमण ने अपना कारोबार समेटा ही था कि ओमीक्रान ने दस्तक दे दी। इस दस्तक ने दिल्ली सरकार की प्रदूषण के खिलाफ चल रही लाल बत्ती पर गाड़ी बंद मुहिम पर विपक्ष को हमला करने का मौका दे दिया। बेदिल ने कई बार देखा है कि ये कर्मचारी दिल्ली के चौराहों पर धूप-छांव में केवल तख्तियां लेकर खड़े हैं। इस पर भाजपा की एक नेता ने मुख्यमंत्री को सोशल मीडिया पर टैग करते हुए कर्मचारियों को राहत देने की अपील तक कर दी। उन्होंने कहा कि तैनात कर्मचारियों को भी ओमीक्रान का खतरा है और ठंड इन्हें भी लगती है। इन्हें तख्तियां पकड़ने की जिम्मेदारी से राहत दो और इंसानियत दिखाओ।

पहले दिल्ली देखो

इन दिनों आम आदमी पार्टी के नेता चुनावी राज्यों के मैदान में हैं और कई बड़ी-बड़ी घोषणाएं कर रहे हैं। इन घोषणाओं से ही विपक्षी दलों ने दिल्ली में चुनावी जमीन बनानी शुरू कर दी है। हाल ही में उत्तरांखड के स्कूलों की तस्वीर बदलने के वादे के बाद भाजपा नेता हरीश खुराना आम आदमी पार्टी के नेताओं की चुटकी लेते नजर आए।

उन्होंने सूचना के आधार पर जुटाई गई जानकारियों का हवाला देते हुए बताया कि दिल्ली में 1030 स्कूलों में से 330 स्कूल ऐसे हैं, जहां पर विज्ञान विषय की पढ़ाई नहीं है। 700 स्कूलों में चिकित्सक व इंजीनियर कहां से बनेंगे। उत्तराखंड से पहले उन्होंने मुख्यमंत्री से दिल्ली के स्कूलों का स्तर बढ़ाने की वकालत भी कर डाली।

सरदार वही पुराना

दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के निवर्तमान प्रधान मनजिंदर सिंह सिरसा के भाजपा में चले जाने के बाद सैद्धांतिक रूप से यह पद खाली है। दिल्ली कमेटी का असली सरदार कौन होगा, अभी यह तय होना बाकी है। लेकिन सिख गलियारे में यह चर्चा आम है कि कमेटी में हस्तक्षेप के पैमाने पर पिछले दरवाजे से ही सही सिरसा अभी भी ‘सरदार’ की ही भूमिका में हैं। सिख सियासत में महत्वपूर्ण हैसियत रखने वाले नेताओं की माने तो अकाली दल (बादल) से विदा होने के बावजूद वे कमेटी के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर कर रहे हैं।

उनकी लगातार छीछालेदर हो रही है, लेकिन नेताजी बेफिक्र हैं। हद तो तब हो गई जब बीते दिनों दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के पूर्व प्रधान और अकाली दल दिल्ली के अध्यक्ष परमजीत सिंह सरना ने तो सिरसा पर सार्वजनिक रूप से कटाक्ष कर दिया। सरना ने यहां तक कहा कि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी और अकाली दल बादल से अब जिनका कोई संबंध नहीं हैं, वे कमेटी के जरूरी कागजातों पर हस्ताक्षर किस मुंह से कर रहें हैं। जबकि सिख सियासत में ईमान और सरोकार ही सर्वोपरी है। इतना ही नहीं साद (दिल्ली) के एक अन्य नेताजी ने यहां तक कह दिया कि लिपि के ज्ञान में हाथ टाइट रखने वाले ‘सिरसा जी’ अपनी करनी से दिल्ली कमेटी के साथ-साथ सिख समाज के नजरों से भी विदा होंगे।
बेदिल