मनोज कुमार मिश्र
अगले कुछ महीनों में देश के पांच राज्यों के आस-पास दिल्ली के तीनों नगर निगमों के चुनाव होने वाले हैं। कहने के लिए दिल्ली की बहुशासन प्रणाली में निगमों का स्थान सबसे नीचे है लेकिन इसका दायरा दिल्ली के 87 फीसद इलाके में है। यह दिल्ली सरकार जैसा स्वशासी है और अधिकारों में समय-समय पर कटौती होने के बावजूद काफी ताकतवर है। यह अलग बात है कि एक निगम को तीन निगमों में बांटने के बाद दो निगम तंगहाली में पहुंच गए हैं। कांग्रेस के रणनीतिकारों की गलती और बिजली-पानी आदि मुफ्त बांटने की राजनीति ने कुछ साल पुरानी राजनीतिक पार्टी-आम आदमी पार्टी (आप) को दिल्ली की मुख्य पार्टी बना दिया है। सालों दिल्ली पर राज करनेवाली कांग्रेस हाशिए पर पहुंच गई है। अब तो आप ने कांग्रेस को उस हाल में पहुंचा दिया है, जहां से उसकी वापसी कठिन लग रही है।
गैर भाजपा मतों के विभाजन और निगमों के छोटे वार्ड होने के कारण पार्टी के साथ निजी रूप से अनेक उम्मीदवारों की क्षमता से ही निगमों के चुनाव परिणाम चौंकाने वाले होते रहे हैं। महज 36 फीसद वोट लेकर लगातार 15 साल से निगम में भाजपा जीतती रहा है। निगम की सीटें बढ़ाकर 272 करने के बाद 13 सीटों के उपचुनाव में कांग्रेस 2016 में सालों बाद पहली बार बेहतर करती दिखी और लगा कि 2017 के निगम चुनाव में कम से कम पूर्वी दिल्ली नगर निगम तो कांग्रेस जीत ही जाएगी। कांग्रेस नेताओं की आपसी लड़ाई और बगावत के बावजूद कांगेस को तीनों निगमों में 21 फीसद वोट मिले जो आप से पांच फीसद कम थे लेकिन पार्टी के झगड़े और प्रदेश अध्यक्ष जैसे नेताओं का पलायन ने फिर से कांग्रेस को हाशिए पर पहुंचा दिया। कांग्रेस को 2020 के विधानसभा चुनाव में साढ़े चार फीसद वोट मिले। इस शर्मनाक हालात के बावजूद पार्टी में ज्यादा बदलाव नहीं दिख रहा है।
कांग्रेस की कमजोरी और भाजपा की अधूरी तैयारी और बिजली-पानी मुफ्त करने के वादे ने आप को 2015 के चुनाव में दिल्ली विधान सभा में रेकार्ड 54 फीसद वोट के साथ 67 सीटों पर जीत दिलवा दी। उस चुनाव के बाद पार्टी में अरविंद केजरीवाल का राजनैतिक कद और बढ़ गया। उन्होंने चुन-चुन कर अपने विरोधियों को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। उनके फैसले ने साबित कर दिया कि आप में उनपर सवाल उठान वालों के लिए कोई जगह नहीं है। दोबारा मुख्यमंत्री बनते ही उन्होंने दिल्ली से बाहर पार्टी को न ले जाने का घोषणा कर दी।
उन्होंने यह साबित कर दिया कि पार्टी को वोट उनके नाम से मिलते हैं। बाद में उन्होंने खुद अपने फैसले को बदलते हुए 2017 में पंजाब और गोवा विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी। गोवा में तो आप को कोई सफलता नहीं मिली लेकिन पंजाब में बेहतर नतीजे मिले। 117 सीटों की विधान सभा में कांग्रेस को 77 सीटें और आप को 20 सीटें मिली। इस बार हालात और बदले हुए हैं। अकाली दल, बसपा के साथ मिलकर और भाजपा अकेले चुनाव लड़ेगें और कांग्रेस आपसी झगड़े में फंसी है।
2017 के दिल्ली नगर निगमों के चुनाव में आप भले ही भाजपा को सत्ता में आने से नहीं रोक पाई लेकिन कांग्रेस को पीछे करके दूसरे स्थान पर पहुंच गई। इस बार आप ने अगले साल विधानसभा चुनाव के अलावा दिल्ली नगर निगमों के चुनाव की तैयारी काफी पहले ही शुरू कर दी है। जो हालात दिख रहे हैं उसमें कांग्रेस को मुकाबले में आने के लिए काफी प्रयास करने होंगे। कांग्रेस ने अगर इस समय का सदुपयोग नहीं किया तो यह तय सा है कि दिल्ली में तो कांग्रेस इतिहास बनकर रह जाएगी।