मनोज कुमार मिश्र

पिछले दिनों जहांगीरपुरी में हनुमान जयंती की शोभा यात्रा के दौरान हुए सांप्रदायिक तनाव के बाद नगर निगम के अतिक्रमण हटाने के अभियान पर सुप्रीम कोर्ट हस्तक्षेप के बावजूद दिल्ली का ही नहीं देश का राजनीतिक माहौल गरम बना हुआ है। सांप्रदायिक तनाव तो अलग मुद्दा है लेकिन अनधिकृत निर्माण ने दिल्ली को बारूद के मुहाने पर खड़ा कर दिया है। पूरी दिल्ली में 70 फीसद से ज्यादा अनधिकृत निर्माण है। अधिकांश दिल्ली में शहर निर्माण के मानक बेमतलब हो गए हैं।

दिल्ली नगर निगम से पहले 1955 में बने दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) को दिल्ली को बनाने की जिम्मेदारी है। उसकी अपनी कितनी जमीन पर अवैध कब्जा है, यह ब्योरा तक उसके पास नहीं है। डीडीए की योजना से कटी हुई अनेक कालोनियों को भू माफिया कब्जा करके नए नाम से अपनी कालोनी बना चुके हैं। कहने के लिए दिल्ली साढ़े तीन सौ से ज्यादा गांवों की जमीन पर बसा शहर है। वास्तव में उन गांवों में कई-कई कालोनियां बस चुकी हैं।

उन कालोनियों का भी वही हाल है जैसा दिल्ली के हर इलाके में बसा अनधिकृत कालोनियों का हाल है। उनमें शहर निर्माण के कोई मानक नहीं पूरे किए गए हैं। दिल्ली के पुराने शहर में तो आवागमन तक के रास्ते नहीं हैं। चांदनी चौक की चौड़ी सड़क वाली गलियों में इस कदर अवैध निर्माण हुए हैं कि लोगों के पैदल चलने की जगह नहीं बची है।

1,483 वर्ग किलोमीटर की दिल्ली के ज्यादातर इलाके में किसी दुर्घटना के बचाव के रास्ते नहीं हैं। भू माफिया, वोट की राजनीति करने वाले नेता, सरकारी विभागों (डीडीए, नगर निगम, दिल्ली सरकार इत्यादि) और दिल्ली पुलिस के भ्रष्ट तंत्र ने पूरी दिल्ली में बड़ी संख्या में अवैध निर्माण करवाया और यह सिलसिला आज भी जारी है।

दिल्ली का दुर्भाग्य है कि नोट और वोट के लिए अवैध निर्माण करवाने वालों और अनधिकृत कालोनियों को बसाने वालों को कठोर सजा दिलवाने के बजाए उन निर्माणों को वैध करवाने की राजनीति ही होती रही है। दिखावा के लिए डीडीए हर बीस साल के लिए योजना बनाता है। अब 2041 के लिए योजना बन रहा है। जब 2021 के लिए योजना बनाई जा रही थी, तभी कहा गया था कि अब दिल्ली में नई योजनाओं के लिए सीमित स्थान बचा रह गया है।

इसी को भांप कर तब के उपराज्यपाल और डीडीए के अध्यक्ष विजय कपूर ने ‘लैंड पूलिंग’ योजना में दिल्ली की कृषि भूमि को शामिल करवाया था। उनका कहना था कि खाली जमान अवैध कब्जे को न्योता देती है। लेकिन सरकारी तैयारी से पहले भू माफिया ने उन जमीनों में से ज्यादातर पर अवैध कालोनी बसा दी। यह सिलसिला आज भी जारी है।

हालात ऐसे हो गए हैं कि ज्यादातर अनधिकृत कालोनियों और गांवों की संपत्तियों की कीमत करोड़ों में पहुंच गई है लेकिन राजनेता उन कालोनियों में संपत्ति कर लागू करने की हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं। इसके चलते नगर निगम का और पानी मुफ्त देने के चलते दिल्ली जल बोर्ड का घाटा लगातार बढ़ता ही जा रहा है। 1908 में अंग्रेजों ने सरकारी नक्शे में गांवों की आबादी को के बाहर लाल रेखा बना दी थी, जिसे लाल डोरा कहते हैं यानि उसके बाहर की आबादी अवैध होगी।

पहले तो उस लाल डोरा को बढ़वाने के प्रयास हुए फिर विस्तारित लाल डोरा बनाया गया। यानि कुल मिला कर सभी आबादी को वैध करवाने का प्रयास जारी रखा गया है। डीडीए लोगों को सस्ते मकान देने में पूरी तरह से विफल साबित हुआ। इतना ही नहीं वह या दूसरी सरकारी एजंसियां अनधिकृत निर्माण रोकने का प्रयास करती हुई भी कभी न दिखीं। साठ और सत्तर के दशक में कांग्रेस ने अनेक अनधिकृत कालोनियों को मामूली शुल्क देकर नियमित कर उनमें रहने वालों को अपना स्थाई वोटर बना लिया था।

बाद के दिनों में वही प्रयास पहले भाजपा ने किया और अब आम आदमी पार्टी (आप) कर रही है। तमाम दावों के बावजूद कोई कालोनी नियमित नहीं हो पार्इं न ही किसी अवैध कालोनी को तोड़ा गया। 1993 में दिल्ली में विधानसभा बनने पर भाजपा इस वायदे के साथ चुनाव जीत कर सरकार में आई कि तब तक ‘एरियल सर्वे’ में आए अनधिकृत कालोनियों को वह नियमित करवाएगी। 1,071 कालोनी की सूची बनी।

रकारी, निजी, वन निभाग, रेलवे आदि की जमीन पर बसी कालोनी को एक साथ बिना जुर्माने नियमित करवाने का प्रयास पूरे होते ही भाजपा सरकार के पांच साल निकल गए। फिर कांग्रेस की सरकार बनी और कालोनियों की संख्या बढ़ती गई। भारी संख्या में ऐसी कालोनियों के नाम सूची में शामिल करवाए गए जो वास्तव में थी ही नहीं।

2008 के विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस अध्यक्ष से 1,639 कालोनियों में से 1,218 को नियमित होने का अस्थाई प्रमाण पत्र दिलवा दिया गया। 2014 को केंद्र में बनी भाजपा की अगुआई वाली सरकार ने 2015 के विधानसभा चुनाव से पहले दो हजार अनधिकृत कालोनियों को नियमित करने की घोषणा कर दी। इतना ही नहीं 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले इन कालोनियों के निवासियों को मालिकाना हक देने की घोषणा की गई।