कचरा उठाने और सफाई के काम के लिए भी पढ़े-लिखे लोग सिफारिश लगवाएंगे यह बेरोजगारी के आलम को दर्शाता है। दिल्ली से सटे यूपी के औद्योगिक महानगर में तो यही हाल है। यहां कूड़े की गाड़ी पर सहायक, चालक की नौकरी पाने को लोग इतने बेताब हैं कि मुंहमांगा तोहफा देने को भी तैयार हैं। वहीं, सड़कों की सफाई के लिए महंगी मिठाईयों से नवाजने की बात कही जा रही है।

बेदिल ने जब इसके पीछे का माजरा समझने की कोशिश की तो उसके भी होश उड़े। दरअसल, इसमें कर्मचारियों का वेतन भी इतना अधिक नहीं है कि लोग इस नौकरी के पीछे भागें, लेकिन बताया जा रहा है कि एक बार नौकरी पाने के बाद यहां से हटाया नहीं जाता। काम करो न करो लेकिन तनख्वाह मिलती रहती है। इसलिए आज इस विभाग से जुड़े नेता भी लोगों की नौकरी के लिए फाइल लिए अधिकारियों के यहां चक्कर लगाते मिल जाएंगे। क्योंकि उनको अपने मिठाई की चिंता है।

मुंह पर मास्क

यह देखा गया है कि जो नियम और कानून बनाते हैं वे ही इसका पालन नहीं करते, इसे निभाने की पूरी जिम्मेदारी जनता पर डाल देते हैं। राजधानी में कोविड-19 के मामले बढ़ने के बाद सरकार की ओर से सार्वजनिक स्थानों पर मास्क पहनना अनिवार्य कर दिया है। पर लगता है कि राजनीतिक पार्टियों का दफ्तर किसी अन्य लोक पर है। जहां देखों वहां भीड़ लेकिन मास्क के नाम पर इक्का-दुक्का लोग।

हद तो तब हो गई जब सत्ता संभालने वाली पार्टी के दफ्तर में ही लोग बेफिक्र घूमते नजर आए। पिछले दिनों पार्टी दफ्तर में एक नेता को उनके सुरक्षाकर्मी ने मास्क के लिए टोक दिया। नेताजी नाराज नहीं हुए, जानते थे गलती है तो मासूम सा चेहरा बनाकर जेब से रूमाल निकाला और नाक पर बांध कर बढ़ गए।

झोली खाली है

निगम का एकीकरण हुआ तो सब्जबाग दिखाए गए कि अब कुछ अच्छा होगा। विकास होगा लोगों को समय पर वेतन मिलेगा। लेकिन यहां तो कर्मचारियों के दुर्दिन खत्म ही नहीं हो रहे। पिछले दिनों खबर आई कि निगम का राजस्व बढ़ा है, लेकिन दूसरे तरफ पता चला कि वेतन अब भी नहीं बंट रहा। इस बात का पता लगाने के लिए बेदिल ने विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी से पूछा। वो थोड़ा झेंप कर बोले, घाटा तो अब भी है लेकिन संदेश यह ऐसा जाएगा तो यह अच्छा नहीं लगेगा। सही मायनों में देखें तो अभी झोली खाली ही है।

मन की मायूसी

दिल्ली पुलिस के अधिकारियों में इस समय मायूसी साफ दिखती है। विभाग के मुखिया के पद पर नियुक्ति के बाद अब मुखिया बनने को लाइन में खड़े अधिकारी ऐसे दिखा रहे हैं कि कुछ हुआ ही नहीं। मन की मायूसी चेहरे पर साफ झलक रही है लेकिन दर्द किससे कहें। यही दिल्ली पुलिस का हाल है। बेदिल से रहा न गया तो उसने एक आला अधिकारी का मूड खंगाला। उधर से जो जवाब आया कि आयुक्त के लिए किसका नाम चल रहा है से काम नहीं चलता, बल्कि कौन बनाए गए और किनके नाम पर केंद्र की मुहर लगी वही अंतिम होता है। बाकि कयासबाजी करते रहिए।

और फिसली कुर्सी

हाल ही में विवादित बयान के बाद भाजपा में दो कुर्सी खाली हुई। इन पर दिल्ली के नेताओं की नजर थी। लेकिन पार्टी ने नए लोगों को आजमाने की जगह पुराने चेहरे को ही खबरनवीसों से मिलने-जुलने का सीधा कामकाज सौंप दिया। इस वजह से पार्टी के दो लोगों की उम्मीदें धरी की धरी रह गई है। ये दिल्ली भाजपा में एक लम्बे समय से मीडिया के प्रभार के लिए पूर्व प्रदेश अध्यक्ष के कार्यकाल के समय से इंतजार कर रहे थे। इसके अतिरिक्त पार्टी के एक उपाध्यक्ष भी इस सीट के लिए सक्रिय थे। अब पूरा मामला शांत होने के बाद दिल्ली भाजपा में पुराने नेताजी की सक्रियता बढ़ती दिख रही है और नए लाइन में नहीं हैं।
-बेदिल