जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में पुलिस का प्रवेश आसान नहीं होता। प्रवेश के बाद छात्रों के विरोध को संभालना शायद पुलिस के वश से बाहर हो जाए इसलिए ताजा मामले में पुलिस और सरकार भी प्रवेश से कतरा रही थी। साल 1983 में जेएनयू में एक छात्र के निष्कासन पर जब पुलिस अंदर घुसी तो ऐसा दृश्य सामने आया जिसकी कल्पना पुलिस और सरकार किसी को नहीं थी। जेल प्रशासन ने भी छात्रों के झुंड को अंदर करने से हाथ खड़े कर दिए थे। हालांकि इससे पहले और इसके बाद भी पुलिस अंदर गई है लेकिन तब कोई दमन जैसा नहीं हुआ। साल 1975 में आपातकाल के समय और फिर 1981 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के विरोध पर पुलिस अंदर गई।

जेएनयूएसयू अध्यक्ष कन्हैया कुमार की गिरफ्तारी और उसके साथ के कुछ छात्रों पर राष्ट्रदोह जैसे मामले में पुलिसिया कार्यशैली पर सवालिया निशान जरूर लगे हैं। जेएनयूएसयू के तत्कालीन अध्यक्ष रहे नलिनी रंजन मोहंती कहते हैं कि 1983 में पुलिस और जेएनयू प्रशासन का छात्रों पर दमन हुआ था। जेएनयू प्रशासन के साथ वामपंथी शिक्षकों ने भी छात्रों का विरोध कर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष पुलिस का साथ देकर छात्रों के साथ दमन में साथ दिया था।

तब मोहंती कांग्रेस के एनएसयूआइ, भाजपा के एबीवीपी, सीपीआइ के आइसा और सीपीएम के एसएफआइ से अलग स्टूडेंट डेमोक्रेटिक सोशलिज्म (एसडीएस) बनाकर छात्रसंघ के अध्यक्ष का पद जीता था। इस संगठन को फ्री थींकर नामक एक अन्य संगठन ने भी साथ दिया था। एसडीएस का कहना था कि राजनीतिक दलों से जुड़े छात्र संगठन पार्टी हित से ज्यादा जुड़े होते हैं बजाए छात्रों की समस्याओं के। मोहंती कहते हैं कि तब पुलिस घुसी तो छात्रों के साथ पिटाई शुरू हो गई।

धारा 144 लगाया गया। जो उसके विरोध में उतरे उन्हें आनन-फानन में गिरफ्तार कर तिहाड़ भेजने की ओर रवाना कर दिया गया। एक हजार से ज्यादा लड़के-लड़कियों को तिहाड़ पहुंचाया गया। लेकिन तिहाड़ प्रशासन ने हाथ खड़े कर दिए। तीन सौ लड़कियों में एक चौथाई से भी कम और इसी अनुपात में लड़कों को अंदर किया गया। करीब चार सौ छात्रों को 21 दिन तक तिहाड़ की रोटी खानी पड़ी। पीएन श्रीवास्तव उस समय कुलपति थे। उनका जमकर विरोध हुआ था। यह पूरी तरह छात्रों की आवाज दबाने के लिए दमन हुआ। हमारी मांग सिर्फ यही थी कि पहले बारीकी से जांच की जाए तब छात्र को निष्कासित किया जाए।

इससे पहले 1983 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के एक कार्यक्रम में जेएनयू में प्रवेश के विरोध पर पुलिस अंदर आई थी। जेएनयू में पढ़ाई कर चुके प्रो रिजवान कैसर कहते हैं कि यह विरोध था कुछ मामले में प्रधानमंत्री के अंदर आने का। हालांकि प्रधानमंत्री ने भी तब इसे बहुत न तो तूल दिया और न ही गंभीरता दिखाई और जिन छात्रों को गिरफ्तार किया गया उन्हें बाद में छोड़ दिया गया। छात्रों पर पुलिसिया दमन नहीं हुआ।

जबकि 1975 में आपातकाल के समय तत्कालीन छात्रसंघ अध्यक्ष डीपी त्रिपाठी को गिरफ्तार करने के लिए देर रात पुलिस अंदर गई और उन्हें एक छात्र नेता प्रवीर पुरकायस्थ के साथ गिरफ्तार कर किसी अन्य छात्रों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया। यह सब उपराज्यपाल की अनुमति से हुआ। छात्र नेता असरार खान कहते हैं कि इस बार जो हुआ और जो हो रहा है उसमें पुलिस की सिवाए किरकिरी के और कुछ नहीं हो रहा है। कन्हैया सहित अन्य छात्रों के साथ जो हो रहा है उसकी सिवाए कानूनी जांच और कोर्ट के फैसले के इस प्रकार सैकड़ों की संख्या में जेएनयू गेट पर पुलिसिया दबिश को कहीं से भी उचित नहीं कहा जा सकता। जेएनयू की अपनी मर्यादा है और एक ऐसे संस्थान जिसकी विश्वभर में अलग पहचान है उसमें पुलिसिया कार्रवाई की कोई जगह नहीं है।