पीएम नरेंद्र मोदी के सबसे बड़े आलोचकों में शुमार लोगों में यशवंत सिन्हा का नाम सबसे ऊपर है। वो कई मौका नहीं छोड़ते बीजेपी या फिर मोदी को निशाना बनाने का। राजनीति में फिर से खड़े होना भी था तो पश्चिम बंगाल के असेंबली चुनाव से ऐन पहले उन ममता बनर्जी का दामन थामा जो मोदी की सबसे बड़ी दुश्मन मानी जाती हैं। लेकिन बड़ा सवाल है कि यशवंत आखिर मोदी के इतने ज्यादा विरोधी कैसे हो गए।
ABP न्यूज के शो में यशवंत ने इस सवाल का जवाब देते हुए कहा कि 2014 से पहले जब मोदी को बीजेपी की तरफ से पीएम का चेहरा पेश करने की कवायद चल रही थी तो एक पत्रकार से उन्होंने कहा था कि मोदी के नेतृत्व में ही बीजेपी जीत हासिल कर सकती है। तब उनको मोदी ने खुद फोन करके शुक्रिया अदा दिया था। फिर वाकया 2016 का है। कश्मीर में हालात खराब थे। केंद्र ने एक डेलिगेशन वहां भेजा तो यशवंत भी उसमें शामिल थे। वो कश्मीर गए तो उन्हें लगा कि बातचीत से ही हिंसक माहौल पर रोक लगाई जा सकती है।
बकौल यशवंत उन्होंने कश्मीर से ही पीएमओ फोन करके कहा कि वो प्रधानमंत्री से मिलना चाहते हैं। उनके संदेश को नोट करके आगे बढ़ा दिया गया। यशवंत दिल्ली लौटे तो फिर से पीएमओ में फोन करके मोदी से मिलने का समय मांगा। लेकिन आज तक उन्हें प्रधानमंत्री की तरफ से मिलने का बुलावा नहीं आया। उसके बाद से दोनों के बीच 36 का आंकड़ा बना है।
यशवंत मानते हैं कि नोटबंदी देश का सबसे बड़ा स्कैम था। इसके जरिए सारा काला धन सफेद कर दिया गया। सरकार इसमें सक्रिय तौर पर शामिल थी। वो ये भी मानते हैं कि मोदी को 2002 में गोधरा कांड के बाद सीएम पद से हटा देना चाहिए था। आडवाणी ने उनका बचाव करके बड़ी गलती की। एक सवाल के जवाब में उनका कहना था कि मोदी आथोरेटेरियन हैं जबकि ममता बनर्जी एक संघर्ष करने वाली नेता।
राष्ट्रपति चुनाव में जीत पर उनका कहना था कि वो गरीब परिवार से हैं। हमेशा जीवन में नंबर दो च्वाइस ही रहे। इस बार को वो नंबर चार की च्वाइस थे। यानि दो गुणा चार। उनके जीतने के चांस चार गुना बेहतर हैं। उनका ये भी कहना था कि हार सामने देख कभी लड़ाई के मैदान से पलायन नहीं करते। उनका मानना है कि भारत के राष्ट्रपति का संविधान में जो स्थान है उसका सबसे पहला कर्तव्य है कि वो संविधान की रक्षा करे।
उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति का अधिकार बनता है कि वो सरकार के गलत फैसलों पर सवाल उठाए। कोई रबर स्टैंप राष्ट्रपति बनता है तो वो देश में जो भी प्रधानमंत्री और उनकी कैबिनेट की तरफ से प्रस्ताव आएगा उस पर वो अपनी मुहर लगा देंगे। लेकिन ऐसा नहीं किया जाना चाहिए।