कांग्रेस का दर्द
सालों तक कांग्रेस में रहे और कांग्रेस का भला कर चुके सुशील गुप्ता दिल्ली से आप के उम्मीदवार बनकर राज्य सभा में पहुंचने वाले हैं। इससे आप समर्थकों को भले ही कोई फर्क न पड़ा हो, लेकिन कांग्रेस के नेता खासे परेशान हैं। एक तो भाजपा कांग्रेस पर आरोप लगाने लगी है कि उसकी आप से मिलीभगत है और उसने अपने नेता को आप से टिकट दिलवा दिया। वहीं कांग्रेस के लिए एक और दिक्कत हुई कि उसका एक मालदार साथी दूसरे दल में चला गया। आप के नेता तो इस बात से परेशान हैं कि उसके आलाकमान के एक बड़े फैसले ने पूरी पार्टी के चरित्र को बदल दिया, लेकिन बाकी दल वाले आलोचना करके भी इसलिए खुश हैं कि अपने को अलग तरह की पार्टी बताने वाले उनकी कतार में ही शामिल हो गए हैं।

दावेदारी पर विवाद
दिल्ली की आम आदमी पार्टी (आप) को भरोसा नहीं था कि मोदी सरकार उन्हें दिल्ली से राज्यसभा सदस्य भेजने का मौका देगी। कुछ महीनों से लगने भी लगा था कि आप के लोग ही दिल्ली से राज्यसभा में जाएंगे, फिर तो तरह-तरह के दावेदार सामने आने लगे और आखिरी में जो नाम सामने आए, उससे सभी हक्के-बक्के रह गए। कुमार विश्वास का कद घटाने के लिए संजय सिंह को टिकट देना तो समझ में आता है लेकिन बाकी दो दावेदारों के नाम पर विवाद शुरू हो गया है। यह भी कहा जा रहा था कि कोई प्रोफेशनल भी टिकट पा जाएगा लेकिन केवल पैसे के बूते किसी ऐसे को टिकट दिया जाएगा जो कुछ दिन पहले तक कांग्रेस में था, ऐसा अनुमान किसी को नहीं था। एक अधिकारी बताते हैं कि टिकट पाने वाले एक सज्जन उनके पास नामांकन पत्र भरने की पूरी जानकारी लेने गए थे। उन्हें लगा कि यूं ही कोई उन्हें बहला रहा है भला आप जैसी पार्टी से किसी अनजान को टिकट कैसे मिल जाएगा। मीडिया में फोटो आने के बाद वे दंग रह गए क्योंकि उनके किसी परिचित के साथ उनके घर आने वाला व्यक्ति ही उन तीन उम्मीदवारों में शामिल था जिन्होंने आप की ओर से राज्यसभा के लिए नामांकन पत्र भरा।

रास्ते का जुगाड़
पुलिस मुख्यालय की कैंटीन इन दिनों चर्चा में है। चर्चा इसलिए कि पहले इस कैंटीन को गैर सरकारी संस्था ‘स्त्री शक्ति’ को सौंपा गया। तब कहा गया कि पहले से यहां काम कर रहे कई कर्मचारी बेरोजगार हो गए। इस बार चर्चा कैंटीन के प्रवेश द्वार को बदलने को लेकर हो रही है। मुख्यालय के सिक्योरिटी स्टाफ के ठौर के पास से इसका नया गेट निकाला गया है, लेकिन मुख्यालय में तैनात जवानों ने जनसंपर्क कार्यालय के अंदर से इसका शॉर्टकट रास्ता बना दिया है। बेदिल ने जब इसकी तहकीकात की तो पता चला कि लंबे समय से कैंटीन का गेट मुख्यालय के प्रवेश द्वार पर होने से यहां हमेशा भीड़ लगी रहती थी। कैंटीन के कर्मचारी अक्सर चाय-समोचा लेकर घूमते नजर आ जाते थे। हद तो तब हो गई जब उपायुक्त स्तर के एक अधिकारी का इसी तरह के एक कर्मचारी से आमना-सामना हो गया। अधिकारी भौंचक्के रहे गए और आनन-फानन में निर्देश जारी कर दिया कि कैंटीन का गेट तुरंत बदला जाए। गेट तो बदल दिया गया, लेकिन पुलिस मुख्यालय में लंबे समय से काम कर रहे कर्मचारियों ने इसका भी ‘जुगाड़’ निकाल लिया और प्रवेश द्वार के मीडिया सेंटर के अंदर से अपने लिए रास्ता बना लिया।

कागजी है पाबंदी
अफसरों की लापरवाही के कारण पॉलीथिन थैलियों पर लगाई गई पाबंदी हकीकत से कोसों दूर है। जब भी लखनऊ में बैठे अफसरों को इसका खयाल आता है, वो फरमान जारी कर जिलाधिकारी और संबंधित प्राधिकरण को कार्रवाई कर रिपोर्ट भेजने का निर्देश जारी कर देते हैं। जबकि वास्तविकता यह है कि प्रदेश में पॉलीथिन थैलियों पर रोक लगने के एक साल से ज्यादा समय बाद भी इनकी उपलब्धता और इनसे होने वाले पर्यावरणीय नुकसान में कोई कमी नहीं आई है। हालिया फरमान आने के बाद प्राधिकरण के अपर मुख्य कार्यपालक अधिकारी ने साप्ताहिक बाजारों में पॉलीथिन थैलियों पर रोक लगाने की जिम्मेदारी इलाकेवार परियोजना अभियंताओं (पीई) की बताई है, जबकि ज्यादातर पीई को इस जिम्मेदारी का पता तक नहीं हैं। ऐसे में पॉलीथिन की थैलियों पर रोक का आदेश कैसे प्रभावी होगा, यह कोई नहीं बता पा रहा है।
-बेदिल