’2012 में बंटवारे के बाद उत्तरी निगम को मिला था सिविक सेंटर ’दक्षिणी निगम ने किराए पर लिया 40 फीसद हिस्सा, पर नहीं किया भुगतान ’पूर्वी निगम ने भी जताया किराए का खर्च बचाकर वहीें आने का इरादा
पुश्तैनी संपत्ति की तरह निगम मुख्यालय सिविक सेंटर पर कब्जे के लिए भी निगम नेताओं और अधिकारियों में जंग शुरू हो गई है। दिल्ली की सबसे बड़ी और अत्याधुनिक तकनीक से लैस इस इमारत के बनते ही साल 2012 में निगम का बंटवारा हो गया। बंटवारे के बाद तीनों निगमों में भाजपा सत्तासीन हुई। सिविक सेंटर उत्तरी निगम के अधीन किया गया तो दक्षिणी निगम को मुख्यालय बनने तक के लिए यहां 40 फीसद हिस्सा किराए पर दे दिया गया। मौजूदा समय में दक्षिणी निगम पर उत्तरी निगम के बकाया करीब 800 करोड़ रुपए पर दबी जुबान में नहीं बल्कि खुलेआम विरोध जताया जा रहा है। दक्षिणी और उत्तरी निगम की खींचतान के बीच बीते हफ्ते पूर्वी निगम के आयुक्त ने भी एक प्रस्ताव पारित कर यह मांग की थी कि जब दो निगम सिविक सेंटर में चल ही रहे हैं तो फिर पूर्वी निगम को भी किराए का खर्च बचाकर वहीं शिफ्ट हो जाना चाहिए।
दक्षिणी निगम के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि जिस समय सिविक सेंटर बना था उस समय दिल्ली में एक ही नगर निगम था। ऐतिहासिक इमारत टाउन हॉल को हेरिटेज बिल्डिंग बनाकर निगम की भीड़भाड़ को अलग ले जाने के तर्क पर बने सिविक सेंटर के निर्माण पर तीनों निगमों का पैसा खर्च हुआ था। निगम नेताओं और अधिकारियों ने पूरे जोर- शोर से इसे बनाने में मेहनत की और पैसा खर्च किया। साल 2012 में भाजपा को शिकस्त देने की चाह में दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की जिद के कारण निगम का बंटवारा हो गया। हालांकि बंटवारे का विरोध कांग्रेसियों ने ही सबसे पहले किया था। सोनिया गांधी से लेकर कांग्रेस के तमाम आला नेताओं तक यह मामला गया, लेकिन हुआ वही था जो शीला दीक्षित ने चाहा।
बंटवारे के समय यह मुद्दा कहीं नहीं था कि सिविक सेंटर का सुंदर मुख्यालय उत्तरी निगम को ही मिलेगा। जब निगम तीन भागों में बंट गया और इसके क्षेत्रफल से लेकर इलाके का बंटवारा शुरू हुआ तो सिविक सेंटर उत्तरी निगम में आ गया। हालांकि सिविक सेंटर पर उस समय भी तीनों निगमों के नेताओं में भिड़ंत हुई, लेकिन उस समय कहा गया कि सिविक सेंटर की तरह ही तीनों निगमों का मुख्यालय बनेगा और जब तक यह काम पूरा नहीं हो जाता, तब तक दक्षिणी निगम यहीं से चलेगा। पूर्वी निगम को पटपड़गंज के उद्योग भवन में शिफ्ट कर दिया गया। अब चार साल बाद उत्तरी निगम करीब 800 करोड़ रुपए का किराया दक्षिणी निगम से मांग रहा है। यह मामला पेचीदगी भरा है और इसका फैसला बड़ा मुश्किल है।
उत्तरी निगम के एक आला अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि बंटवारे के बाद दक्षिणी निगम को किराए के रूप में 40 फीसद हिस्सा दिया गया था। तय यह हुआ था कि वह हर महीने तय किराया उत्तरी निगम को देगा, लेकिन सरकारी पेचीदगी और एक ही पार्टी के सत्तासीन होने का फायदा उठाते हुए दक्षिणी निगम ने किराए को लटकाए रखा। अब मामला खासा गंभीर हो गया है और किराए की रकम करीब 800 करोड़ रुपए हो गई है। इसीलिए दक्षिणी निगम को नोटिस देकर पैसे की मांग की गई है, वरना उनके दफ्तरों पर ताले लगा दिए जाएंगे। दक्षिणी निगम अन्य दोनों निगमों से अमीर है और अभी तक एक भी रुपया किराया नहीं देने का उसके पास कोई तर्क नहीं है। उसके उपर कर्ज नहीं है और खर्चे भी कम हैं। वहीं वित्तीय संकट झेल रहे उत्तरी निगम के पास बाड़ा हिंदू राव, आरबीटीबी, कस्तूरबा और गिरधारी लाल सहित पांच अस्पतालों को चलाने का खर्च है। एक अस्पताल स्वामी दयानंद को पूर्वी निगम देख रहा है। दक्षिणी निगम सिविक सेंटर के रख-रखाव व अन्य तमाम मदों सहित कूड़ा उठाने तक का खर्च नहीं दे रहा।
उनका कहना था कि प्रशासनिक व्यवस्था के तहत बंटवारे के बाद सीमांए और दफ्तर तय किए गए। यह कोई दादालाई और पुश्तैनी संपत्ति नहीं है कि बंटवारे होने के बाद सुंदर और अतिसुंदर जमीन, मकान और अन्य सामानों पर हिस्सा जताया जाए। यदि ऐसा होता तो आंध्रप्रदेश राज्य का बंटवारा हुआ तो तेलंगाना बना। बिहार से अलग झारखंड और उत्तरप्रदेश से अलग उत्तराखंड, छत्तीसगढ़ सहित अन्य कई उदाहरण हैं। अगर संपत्ति का बंटवारा सालों बाद शुरू हो तो फिर अराजकता और प्रशासनिक व्यवस्था ठप हो जाएगी। बीते हफ्ते पूर्वी निगम के आयुक्त ने भी एक प्रस्ताव देकर तर्क दिया कि जब दो निगम सिविक सेंटर से चल सकते हैं तो फिर पूर्वी निगम को भी अपने किराए का खर्च बचाते हुए वहीं शिफ्ट हो जाना चाहिए। हालांकि पूर्वी निगम के सभी नेताओं ने इस प्रस्ताव को खारिज करते हुए कहा कि हमारे लिए पूर्वी निगम में ही रहना अच्छा है और हमें भी ऐसे ही मुख्यालय बनाने की दिशा में प्रयास करना चाहिए।