मनोज मिश्र

मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को खुश करने के लिए 2008 के विधानसभा चुनाव से पहले एक अधिकारी ने अपने नाम से सरकार के पक्ष में न केवल लेख लिखा, बल्कि कई अखबारों को पूरे पन्ने के विज्ञापन दिए। इस पर अच्छा-खासा हंगामा मच गया और भाजपा के नेता विजेंद्र गुप्ता इसे लोकायुक्त में ले गए, विधानसभा में हंगामा हुआ। लोकायुक्त ने शीला दीक्षित को दोषी मानते हुए विज्ञापन पर खर्च हुए आधे धन (करीब 11 करोड़) का भुगतान खुद से करने का आदेश दिया था। दीक्षित उसे नहीं मानीं लेकिन इस पर काफी समय तक हंगामा होता रहा।

लगातार 15 साल दिल्ली की मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड बनाने वालीं शीला दीक्षित ने विधान सभा में यह जवाब देकर सभी को चुप कर दिया कि सरकार का काम बढ़ा है इसलिए उसका प्रचार-प्रसार पर ज्यादा खर्च करना पड़ा है। दीक्षित के शासन काल में अधिकतम एक साल में विज्ञापन पर करीब 30 करोड़ रुपए खर्च हुए थे। यह मान भी लिया जाए कि अन्य विभाग अपने स्तर पर कुछ विज्ञापन करते रहे तो भी किसी रूप में किसी साल विज्ञापन पर खर्च 40-50 करोड़ से पार नहीं हुआ होगा।

1993-87 तक भाजपा सरकार में वित्त मंत्री और उसके बाद लगातार दस साल तक विपक्ष के नेता रहे प्रो. जगदीश मुखी का कहना था कि शुरू में तो विज्ञापन पर अलग बजट रखने का प्रावधान ही नहीं था, जिस विभाग में कोई उल्लेखनीय काम हुआ उसने उसका विज्ञापन कराया। कांग्रेस सरकार में अलग से बजट रखा जाने लगा लेकिन आप सरकार ने तो सारी सीमा तोड़ दी, भला दिल्ली जैसे एक शहर के राज्य में 526.74 करोड़ के विज्ञापन बजट का क्या तुक है।

कथनी और करनी में भारी अंतर
आप की कथनी और करनी में भारी अंतर है। लगता है वे केवल प्रचार में रहना चाहते हैं। मेरे समय में तो कभी प्रचार पर तीस करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च ही नहीं हुए। मुख्यमंत्री की कोठी का बिजली बिल 1 लाख 35 हजार आना चौंकाने वाला है।… शीला दीक्षित, पूर्व मुख्यमंत्री, दिल्ली

जनता की कमाई का दुरुपयोग है यह
इन पैसों के महज एक फीसद से सरकार की उपलब्धियों को पत्र बनाकर पूरी दिल्ली में घर-घर बांटा जा सकता है। ऐसी अराजकता आप ही कर सकती है। जनता की गाढ़ी कमाई का ऐसा दुरुपयोग कभी कोई सोच भी नहीं सकता है।… जगदीश मुखी, भाजपा

यह आश्चर्य का विषय है
यह आश्चर्य का विषय है कि कहीं अधिक आवश्यक मदों में इसके मुकाबले कहीं अधिक अल्पराशि व्यय आबंटित की गई है। अनुसूचित जातियों व पिछड़े वर्गों के कल्याण के लिए 338 करोड़ रुपए, पोषाहार के लिए 350 करोड़, श्रम एवं रोजगार के लिए 208 करोड़, स्लम कटरों के विकास के लिए 400 करोड़ रुपए का मात्र प्रावधान रखा गया है।… विजेंद्र गुप्ता, विधानसभा में विपक्ष के नेता

योजनाओं के प्रसार के लिए जरूरी
इस बार सभी विभागों के विज्ञापन पर होने वाले बजट को एक साथ मिलाया गया है। इससे विभिन्न विभागों में विज्ञापन के नाम पर होने वाले भ्रष्टाचार पर रोक लगेगी और सरकारी योजनाओं को बेहतर तरीके से लोगों तक पहुंचाया जाएगा।… मनीष सिसोदिया, उपमुख्यमंत्री, दिल्ली सरकार

अदालत की अवमानना है
अरविंद केजरीवाल सरकार का नया एफएम रेडियो विज्ञापन अदालत की अवमानना है। सुप्रीम कोर्ट ने 13 मई के अपने आदेश में इस पर पूरी तरह से रोक लगाने का निर्देश दे रखा है। यह सोचना कि आप रेडियो विज्ञापन के जरिए कुछ भी कर सकते हैं, क्योंकि इस पर आपका फोटो नहीं लगा होता, यह अदालत के फैसले पर गलतफहमी होगी।… प्रशांत भूषण, आप के पूर्व नेता।

यह तो भ्रष्टाचार है
खुद के प्रचार पर जनता का पैसा खर्च करना भ्रष्टाचार के समान है। सरकार ने विकास कार्यों के बजट में कटौती की और कार्यकर्ताओं एवं सलाहकारों पर पैसे खर्च कर रही है। एक तरफ तो केजरीवाल सरकार पैसे का रोना रो रही है दूसरी ओर अपना महिमामंडन करवाने में लगी है।… अजय माकन, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष