कोरोना की आपदा में कुछ लोग अवसर ढंूढ रहे हैं। जो ऐसा कर रहे हैं उनके लिए सोशल मीडिया पर एक संदेश वायरल हो रहा है। जिसमें मरीजों के इलाज से जुड़े सामान और उत्पादों को कई गुना अधिक कीमत वसूलने वालों के लिए दो मिनट का मौन रखने की बात कही गई है। बेदिल को पता चला कि ग्रेटर नोएडा वेस्ट में रहने वाली एक संक्रमित महिला का आॅक्सीजन स्तर बेहद गिर गया। काफी मशक्कत के बाद सोसायटी से ही सिलेंडर मिला तो उसमें लगने वाला रेगुलेटर नहीं था।
चार घंटे की भाग दौड़ और फोन के बाद एक रेगुलेटर वाले का फोन मिला। लेकिन उसने आपदा में अवसर का फायदा उठाते हुए एक हजार रुपए से कम में मिलने वाले रेगुलेटर की कीमत 6300 रुपए मांगी। परिजन मरीज के लिए यह रकम देने को तैयार हो गए और विक्रेता सड़क पर रेगुलेटर थमाकर एक-दो हो गया। इतना महंगा रेगुलेटर लेने के बाद भी वह सिलेंडर में नहीं लगा और बाद में मरीज को आधी रात आइसीयू में भर्ती करना पड़ा।
हाल ए बाजार
दिल्ली में कोरोना संक्रमण को रोका जा सके इसके लिए बंद की व्यवस्था लागू है। बावजूद इसके साप्ताहिक बाजारों में छिप-छिप कर काम हो रहा है। लोगों को पता है कि बंद का उल्लंघन होने पर दो हजार रुपए का जुर्माना लग सकता है लेकिन फिर भी बेपरवाही दिख रही है। चिंता की बात यह है कि साप्ताहिक बाजारों की यह छिटपुट भीड़ संक्रमण की रफ्तार भी बढ़ा सकती है। इस दौरान पुलिस वालों का काम बढ़ जाता है जिनको देखते ही ये भागते हैं। लेकिन पुलिस को भी शायद छिटपुट लग रहे बाजार की चिंता नहीं है।
चुनौती और चिंता
ड्यूटी और फर्ज के बीच दिल्ली पुलिस के जवानों और अधिकारियों को अपनों की चिंता सताने लगी है। बीते कुछ दिनों में काफी संख्या में जवान और कई अधिकारी कोरोना संक्रमण की चपेट में आ गए हैं। संक्रमित अधिकारियों और जवानों की चिंता यह है कि यदि स्थिति और अधिक बिगड़ती है और उनके या फिर उनके परिवार वालों के लिए कोई उचित व्यवस्था नहीं हुई तो आगे क्या होगा। हालांकि, दिल्ली पुलिस की ओर से तीन जिलों में कर्मचारियों और उनके परिवार वालों के लिए व्यवस्था की गई है।
पर मौजूदा हालात ऐसे हैं कि डर जा नहीं रहा है। ऐसे में दिल्ली पुलिस के कर्मचारी मान रहे हैं कि अगर पहले ध्यान दिया गया होता तो शायद दिल्ली की स्थिति इतनी भयावाह नहीं होती। अधिकारी दबी जुबान से मानते हैं कि पिछले साल भी सड़क पर सबसे अधिक परेशानियों का सामना दिल्ली पुलिस को करना पड़ा था और अपनों की चिंता सता रही थी। इस साल भी परिस्थितियां कुछ ऐसी ही है।
पूर्णबंदी के रूप
दिल्ली पूर्णबंदी में हैं। बीते साल भी पूर्णबंदी में रही थी। इस बार इसके रूप में आए बदलाव बीच बहस का केंद्र बनती जा रही है बीते दिनों मुख्यमंत्री ने पूर्णबंदी को एक हफ्ता और बढ़ाने का फैसला क्या लिया लोग कहते सुने गए कि अबकी पूर्णबंदी ढीली क्यों है। दबे जुबान से चर्चा है कि दिल्ली की कई कारखाने चोरी छुपे चल रहे हैं। गाजियाबाद, हरियाणा की दिल्ली से सटे कारखाने पर कानून भी दिल्ली सरकार कोई अंकुश नहीं लगा सकती।
इतनी क्षेत्रों में छूट दे दे दी गई है कि मानो 20 फीसद लोग सड़कों पर ही हैं। हद तो तब हो गई जब दिल्ली मेट्रो का भी पूर्णबंदी को लेकर आकलन फेल हो गया। उसको एक दिन बाद ही अपनी परिचालन व्यवस्था को बदलना पड़ा, फेरे बढ़ाने पड़े। उसके पूर्णबंदी के आकलन फेल होते नजर आए। किसी ने ठीक ही कहा-पूर्णबंदी एक रूप अनेक! किसी ने कहा-वो मोदी की पूर्णबंदी थी, यह तो केजरीवाल की है। एक ने तो खाली पड़े पुलिस बैरिकेट की ओर इशारा कर दिल्ली पुलिस की चुस्ती -सुस्ती पर भी मानो एक लेखा जोखा जारी कर दिया। तब की पुलिस मुस्तैदी और अब की मुस्तैदी का चिट्ठा खोल दिया।
वक्त का फेर
सब वक्त-वक्त की बात होती है। कभी आंदोलन के नाम पर सत्ता में आते ही जिन पूंजीपतियों को दिल्ली की जनता के मुखिया पानी पी-पीकर कोसते नहीं अघाते थे अब उन्हीं के आगे मदद की गुहार लगाने को मजबूर हैं। सरकार ने अपने शुरुआती दिनों से ही बड़े लोगों के खिलाफ अभियान छेड़ रखा था। उन्होंने कई लोगों के खिलाफ अपने अधिकार से ऊपर जाकर एफआइआर दर्ज कराई थी जो बाद में फुस्स भी हो गई। लेकिन इस बार हालात ने सरकार को केंद्र के साथ-साथ बड़े लोगों के आगे भी नतमस्तक होने को विवश कर दिया है। बेदिल ने जब किसी से इस बारे में पूछा तो वे बताने लगे कि मजबूरी जो न कराए।
– बेदिल