Motor Vehicles Act: इंश्योरेंस क्लेम को लेकर छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट (Chhattisgarh High Court) ने बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि प्रत्यक्षदर्शी का बयान लेने में देरी का मतलब यह नहीं कि पीड़ित की बात झूठ है। न्यायमूर्ति सैम कोशी ने मोटर वाहन अधिनियम (Motor Vehicles Act) की धारा 173 के तहत बीमा कंपनी द्वारा दायर अपील पर सुनवाई करते हुए यह बात कही।

कोर्ट (Chhattisgarh High Court) ने कहा, ‘केवल इसलिए कि चश्मदीद का बयान देर से दर्ज किया गया था या चश्मदीद ने पुलिस अधिकारियों के सामने बयान दर्ज किए जाने तक किसी अन्य व्यक्ति को इस तथ्य का खुलासा नहीं किया था। यह अविश्वास का आधार नहीं हो सकता है।

बता दें, मामला 2022 का है। जब छत्तीसगढ़ पुलिस (Chhattisgarh Police) के एक सिपाही की सड़क दुर्घटना के बाद मौत हो गई थी। जिसके बाद उसकी विधवा पत्नी और बेटी ने एक वाद दायर किया था। जिसके बाद ट्रिब्यूनल ने 54,68,200 रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया था। फैसला देते वक्त ट्रिब्यूनल ने यह भी कहा था कि अगर दो महीने की अवधि के भीतर राशि का भुगतान नहीं किया जाता, तो इस पर 6 प्रतिशत की दर से ब्याज भी लगेगा।

इस फैसले से नाराज बीमा कंपनी ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। अपीलकर्ता कंपनी ने बताया कि दुर्घटना 29.08.2020 को हुई बताई जाती है, जबकि मृतक की मृत्यु 31.08.2020 को हुई थी, लेकिन प्राथमिकी दुर्घटना के लगभगा 52 दिन बाद 20.10.2020 को दर्ज की गई थी।

आगे यह तर्क दिया गया कि कथित चश्मदीद का बयान भी कई संदेहों को जन्म देता है, क्योंकि उसने प्राथमिकी दर्ज होने तक किसी भी व्यक्ति को उल्लंघनकारी वाहन की संलिप्तता का खुलासा नहीं किया था। सिंगल जज की बेंच ने कहा कि मोटर वाहन अधिनियम के तहत एक मामले में जब किसी दुर्घटना से उत्पन्न होने वाले दावे के आवेदन पर फैसला किया जाना है, तो आवश्यक सबूत का मानक उसी मानक का नहीं है, जो साबित करते समय आवश्यक है।

कोर्ट ने कहा कि केवल इसलिए कि चश्मदीद बयान देर से दर्ज किया गया था, उसके बयान पर अविश्वास करने का आधार नहीं हो सकता है, क्योंकि यह एक ऐसा मामला भी हो सकता है, जहां उसने इसे परिवार के सदस्यों के सामने बताया हो, लेकिन उस मामले पर किसी ने ध्यान न दिया हो और पूरा परिवार इस दौरान मृतक की मौत के शोक में डूबा हो। न्यायमूर्ति कोशी ने आगे कहा कि मौजूदा परिस्थितियों में एक बयान की रिकॉर्डिंग या पुलिस अधिकारी को बाद के चरण में तथ्यों का खुलासा करने से इनकार नहीं किया जा सकता है। इन तमाम बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने अपील को खारिज कर दिया।