मंडल कमीशन की रिपोर्ट में मराठा कम्युनिटी को अगड़े वर्ग में शुमार किया गया था। लेकिन समुदाय मानता है कि पैसे और जमीन का सही अनुपात न होने की वजह से एक बड़ा हिस्सा पिछड़े वर्ग के तरह से हो गया है। लिहाजा उन्हें आरक्षण किया जाए। उनकी ये मांग अरसे से है। इसे लेकर कई बार आंदोलन भी हो चुके हैं पर सुप्रीम कोर्ट ने जबसे मराठा आरक्षण की मांग को लेकर दायर याचिका खारिज की है तब से मामला ठंडा था।

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लेकिन फिलहाल महाराष्ट्र की राजनीति ने जिस तरह से करवट ली है उसमें ये फिर से जोर पकड़ने लगी है। असेंबली सत्र के आखिरी दिन सीएम एकनाथ शिंदे और उनके डिप्टी देवेंद्र फडणवीस ने मराठा नेताओं से मुलाकात कर इस मसले पर सूक्ष्मता से मंथन किया था तो उसी दिन उद्धव ठाकरे ने भी संभाजी यूथ ब्रिगेड से हाथ मिला लिया। उद्धव को लगता है कि इससे मराठवाड़ा के साथ उन्हें गांवों में अपनी पैठ बनाने में खासी मदद मिलेगी।

नेता क्यों नहीं कर सकते अनसुना

महाराष्ट्र की राजनीति बगैर मराठा वोटरों के नहीं की जा सकती। ये बात उद्धव को पता है तो शिंदे, पवार और बीजेपी भी इसे अच्छी तरह से समझती है। ये सूबे की आबादी का 1 तिहाई हिस्सा हैं। अब तक यहां 20 सीएम कुर्सी पर बैठे, जिनमें 12 मराठा थे। कांग्रेस-राकांपा की सरकार ने 2014 चुनाव से पहले मराठाओं को 16 फीसदी कोटा देने का ऐलान किया था। लेकिन बांबे हाईकोर्ट ने इस पर रोक लगा दी। इसके बाद फडणवीस-शिवसेना की सरकार सुप्रीम कोर्ट गई, जिससे हाईकोर्ट के स्टे को हटवाया जा सके पर मामला नहीं बना। याचिका खारिज कर दी गई।

उसके बाद 2018 में महाराष्ट्र असेंबली ने बहुमत से एक फैसला लिया, जिसमें मराठाओं को पढ़ाई और नौकरी में 16 फीसदी का आरक्षण दिया गया। हाईकोर्ट ने इसे शिक्षा में 12 और नौकरी में 13 फीसदी तक सीमित कर दिया। सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने सरकार को फैसले को निरस्त कर दिया।

संभाजी भी चाहे आरक्षण

छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशज संभाजी राजे ने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को पत्र लिखकर उनके उस वायदे की याद दिलाई है जो उन्होंने मंत्री रहते हुए उनसे किया था। तब संभाजी राजे मराठा आरक्षण के लिए अनशन कर रहे थे। उनका कहना है कि बेशक सर्वोच्च न्यायालय ने जस्टिस गायकवाड समिति की रिपोर्ट को अवैध घोषित किया। लेकिन अभी भी तीन विकल्प सामने हैं, जिन पर सरकार इसके लिए काम कर सकती है।

पहला विकल्प रिव्यू पिटिशन है। सरकार क्यूरेटिव पिटिशन भी दाखिल कर सकती है। आखिरी विकल्प पर उनका कहना है क तथ्यों को जुटाकर 342(A) के तहत राज्य सरकार अपना प्रस्ताव राज्यपाल को भेज सकती है। उनके माध्यम से वो राष्ट्रपति के पास जाएगा। राष्ट्रपति को उचित लगा तो वो इसे केद्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के पास भेज सकते हैं। आयोग इसे संसद के पास भेज देगा। उसके बाद संसद के जरिए कानून बनाया जा सकता है।