6th Pay Commission News: मध्य प्रदेश में छठा वेतनमान पा रहे कर्मचारियों को नए वित्त वर्ष के साथ बड़ी खुशखबरी मिली है। उनके वेतनमान में महंगाई भत्ता यानी डीए में 25 फीसदी की बढ़ोतरी का ऐलान किया गया है। सूबे में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार की ओर से बढ़ाया गया डीए एक मार्च, 2022 से देय होगा, जबकि इसका पेमेंट अप्रैल, 2022 से किया जाएगा।
शुक्रवार (एक अप्रैल, 2022) को इस बाबत आदेश भी जारी किए गए। जानकारी के मुताबिक, कर्मचारियों के डीए में सातवें वेतनमान पाने वाले कर्मियों के मुकाबले इजाफा किया गया है, ताकि उन्हें भी बराबर फायदा मिल सके। कहा जा रहा है कि बढ़े हुए डीए का फायदा पाने वालों की संख्या एक लाख से अधिक है। दरअसल, जिन कर्मचारियों ने सातवें वेतनमान का आप्शन नहीं भरा था या फिर जो निगम मंडलों में काम करते हैं, वे ये कर्मचारी हैं।
दरअसल, जिन कर्मचारियों ने सातवें वेतनमान का विकल्प नहीं भरा था या फिर जो निगम मंडलों में काम करते हैं, वे ये कर्मचारी हैं। मौजूदा समय में छठा वेतनमान पाने वाले कर्मचारियों को 171 फीसदी डीए मिल रहा है, जिसमें हालिया वृद्धि के बाद यह बढ़ जाएगा। कुल डीए अब 196 फीसदी हो जाएगा।
‘इन्हें प्रमोशन में मिलने वाला आरक्षण खत्म करने से पनप सकता है असंतोष’: इस बीच, केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (एससी/एसटी) के सरकारी कर्मचारियों को प्रमोशन में मिलने वाला आरक्षण खत्म करने से असंतोष पनप सकता है। इस फैसले के खिलाफ कई याचिकाएं दाखिल की जा सकती हैं।
जस्टिस एल. नागेश्वर राव और जस्टिस बी.आर. गवई की बेंच के सामने दाखिल हलफनामे में केंद्र ने बताया कि आरक्षण की नीति संविधान और इस कोर्ट की ओर से निर्धारित कानून के अनुरूप है। केंद्र बोला, ”अगर केस की अनुमति नहीं दी जाती है, तो अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के कर्मचारियों को मिलने वाले पदोन्नति में आरक्षण के लाभों को वापस लेने की जरूरत होगी। इससे अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के कर्मचारियों का प्रत्यावर्तन हो सकता है, उनके वेतन का पुनर्निर्धारण हो सकता है। इसमें उन अनेक कर्मचारियों की पेंशन का पुनर्निर्धारण शामिल है, जो इस बीच सेवानिवृत्त हो सकते हैं।’’
सरकार के अनुसार, इससे उन्हें भुगतान किए गए अतिरिक्त वेतन / पेंशन की वसूली की जा सकती है। लिहाजा, इसके खिलाफ कई याचिकाएं दाखिल हो सकती हैं और कर्मचारियों के बीच असंतोष पैदा हो सकता है।” केंद्र ने अपनी नीति का बचाव करते हुए कहा कि सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति का प्रतिनिधित्व अपर्याप्त है और तर्क दिया कि आरक्षण प्रदान करने से प्रशासनिक व्यवस्था बाधित नहीं होती।