केरल में सभी की नजरें गुरुवार (19 मई) को होने वाली मतगणना पर हैं जो तय करेगी कि सत्ता यूडीएफ के हाथों में ही रहती है या फिर केरल वैकल्पिक सरकार के अपने इतिहास को दोहराते हुए सत्ता एलडीएफ के हवाले कर देगा। लोगों की नजरें भाजपा पर भी हैं जिसने इस बार राज्य में अपना खाता खोलने के लिए पूरी ताकत झोंक दी। विधानसभा की 140 सीटों के लिए इस बार 109 महिला उम्मीदवारों सहित कुल 1,203 उम्मीदवारों ने चुनाव मैदान में ताल ठोकी है। मतगणना सुबह शुरू होगी और पहला रुझान एक घंटे बाद आ जाने की उम्मीद है। दोपहर 12 बजे तक विजेताओं को लेकर तस्वीर साफ हो सकती है।
निर्वाचन आयोग के सूत्रों के अनुसार मतगणना के लिए सुरक्षा व्यवस्था सहित सभी तैयारियां पूरी हैं। जनता जहां चुनाव परिणाम का बेसब्री से इंतजार कर रही है, वहीं उम्मीदवारों के दिलों की धड़कनें तेज हैं। सबके जेहन में यही सवाल है कि क्या केरल फिर अपना इतिहास दोहराएगा जहां हर पांच साल के अंतराल में सत्ता यूडीएफ और एलडीएफ के पास जाती रहती है। प्रमुख उम्मीदवारों में मुख्यमंत्री ओमन चांडी, गृह मंत्री रमेश चेनिथला, मार्क्सवादी नेता वीएस अच्युतानंदन, पिनरई विजयन, आइयूएमएल नेता व उद्योग मंत्री पीके कुन्हालिकुट्टी, पूर्व वित्त मंत्री केएम मणि (केरल कांग्रेस-एम), भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष कुम्मनम राजशेखरन, पूर्व केंद्रीय मंत्री ओ राजगोपाल और क्रिकेटर श्रीसंत शामिल हैं।
केरल में 140 विधानसभा सीटों के लिए 16 मई को हुए चुनाव में 77.35 फीसद मतदान हुआ था। कांग्रेस नीत यूडीएफ जहां सत्ता अपने पास बरकरार रहने की उम्मीद कर रहा है और राज्य में नया इतिहास बनाने का दावा कर रहा है, वहीं माकपा नीत एलडीएफ केरल में ‘एक बार यूडीएफ तो एक बार एलडीएफ’ की सरकार बनने के राज्य के चुनावी इतिहास की पुनरावृत्ति की उम्मीद में है। एग्जिट पोल से मिले संकेतों ने भी एलडीएफ के विश्वास को मजबूत किया है। लोगों की निगाह भाजपा पर भी है जिसने केरल में अपना खाता खोलने के लिए पहली बार अपना पूरा दमखम झोंक दिया। भाजपा को भी इस बार केरल में अपना खाता खुलने की उम्मीद है। पार्टी ने राज्य में श्रीनारायण धर्म परिपालन योगम (एसएनडीपी) की नवनिर्मित पार्टी ‘भारत धर्म जन सेना’ के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा है।
यह पार्टी पिछड़े एझावा समुदाय का संगठन है जिसका कुछ क्षेत्रों में अच्छा प्रभाव है। राज्य में दो महीने तक चले तूफानी चुनाव प्रचार अभियान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित कई राष्ट्रीय नेता अपने-अपने दलों का प्रचार करने के लिए पहुंचे। मोदी के केरल की तुलना सोमालिया से करने संबंधी टिप्पणी को लेकर जहां विवाद हुआ, वहीं भाजपा ने उनकी टिप्पणी का बचाव किया। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और एके एंटनी व गुलाम नबी आजाद जैसे वरिष्ठ कांग्रेस नेता भी अपनी पार्टी के प्रचार के लिए केरल पहुंचे।
माकपा महासचिव सीताराम येचुरी, भाकपा के राष्ट्रीय सचिव सुधाकर रेड्डी, पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जैसे जाने-माने नेताओं ने भी संबंधित दलों और उम्मीदवारों के पक्ष में प्रचार किया। इन नेताओं के अतिरिक्त भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह, कुछ केंद्रीय मंत्रियों, माकपा पोलित ब्यूरो के सदस्य प्रकाश करात और बृंदा करात व राष्ट्रद्रोह के आरोपों के कारण विवाद में आए जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार ने भी चुनाव प्रचार में भाग लिया। एलडीएफ के 93 साल के नेता वीएस अचयुतानंदन ने अपनी उम्र की परवाह न करते हुए भीषण गर्मी में चुनाव प्रचार में भाग लिया और पलक्कड़ जिले में अपने निर्वाचन क्षेत्र मालमपुझा सहित राज्य के अन्य क्षेत्रों में भी चुनावी सभाओं को संबोधित किया।
शेष भारत में अपनी कमजोर स्थिति और 2014 के लोकसभा चुनाव में करारी हार के कारण केरल में सत्ता बचाए रखना कांग्रेस के लिए प्रतिष्ठा का सवाल है, वहीं माकपा नीत एलडीएफ के लिए भी यह प्रतिष्ठा की लड़ाई है क्योंकि मार्क्सवादी मोर्चे की अब केवल त्रिपुरा में ही सरकार रह गई है। 2014 के लोकसभा चुनाव में तूफानी जीत के बाद दिल्ली विधानसभा और बिहार विधानसभा चुनाव में हार देख चुकी भाजपा के लिए भी केरल विधानसभा में खाता खोलना काफी अहम माना जा रहा है।