बीते दिनों बदरपुर के एक व्यस्त चौराहे पर कुछ ऐसा ही माजरा होता दिखा। परस्पर विपरीत राजनीतिक विचारधारा रखने वाले दो गुटों के झगड़े रोकने के लिए स्थानीय लोगों को बीच-बचाव करना पड़ा। दरअसल, मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बीते दिनों योग शिक्षकों के वेतन मांगने के लिए वाट्सऐप नंबर जारी करने पर बात बढ़ी। अगर योजना सरकारी है तो वाट्सऐप नंबर निजी क्यों ?

इसपर सवाल कर केजरीवाल को कटघरे में खड़ा करने वाले अपने विरोधी गुट के उस दावे को समझने को तैयार नहीं थे कि जारी नंबर केवल सूचना आदान-प्रदान के लिए था और पैसा सीधे शिक्षक के खाते जाने की बात थी। लेकिन भाजपा समर्थक अपनी बात पर अड़े थे। इतने में एक के कटाक्ष ने आग में घी का काम कर दिया! दरअसल, उसने ‘प्रधानमंत्री राहत कोष’ के रहते ’पीएम-केअर’ की बात उठा दी! बस क्या था !

दूसरा पक्ष मानो आपा खो बैठा! ‘यहीं रह सेंटर में मत जा’.. जैसी कई हिदायतें सुनाई देने लगी! बीच बहस में ‘क्षेत्रीय-तुकबंदी’ हावी होता देख कुछ लोगों ने बीच बचाव करने का फैसला किया। बुजुर्गों ने हमाम में सब नंगे का पाठ पढाया, तो कुछ शांति बनी लेकिन फिर भी माजरा एक दूसरे की ओर से -‘देख लेंगे…’, ‘ अपकी निपटा देंगे…’ पर जाकर टिका!

दलबदल का फल

अकसर देखा गया है कि चुनाव नजदीक आते ही कुछ नेता अपने दल को छोड़कर दूसरी पार्टी का दामन थामते नजर आते हैं। ऐसा कहा जाता है कि चुनाव से पहले नेता जी भांप लेते हैं कि इस बार पार्टी उन पर भरोसा नहीं जता सकती। नए ठिकाने का रुख करते ही नेता जी जमकर पुरानी पार्टी पर अपनी भड़ास निकालते हैं।

इन दिनों दिल्ली में नगर निगम चुनाव को लेकर सरगर्मियां तेज हैं, जिसको लेकर दलबदल का दौर शुरू हो गया है। पर पिछले दिनों सत्ता पर काबिज दल ने जब अपने उम्मीदवारों की सूची जारी की तो उसमें टिकट की आस में पार्टी का खेमा बदलने वाले कई नेताओं के नाम शामिल नहीं थे, जो इस शर्त पर पार्टी में शामिल हुए थे कि उन्हें टिकट मिल सकता है। अब ऐसे नेता इस कदर नाराज हैं कि उनकी सक्रियता पार्टी कार्यालय में न के बराबर दिखने लगी है।

नौकरी या मौका!

दिल्ली से सटे यूपी के औद्योगिक नगर में घर- घर से कूड़ा उठाने वाली ठेकेदार कंपनियों के यहां भी वाहन चालक, सहायक या सफाई कार्य के लिए हजारों लोग लाख रुपए तक का चढ़ावा देने को तैयार हैं। करीब 15 हजार रुपए की तनख्वाह, वह भी ठेकेदारी के तहत नौकरी के लिए रुपए के अलावा अधिकारियों व नेताओं की सिफारिश लगवानी पड़ रही है।

साथ ही कई संगठन अपने दबाव के जरिए भी अपने चहेतों को इन ठेकेदार कंपनियों में नौकरी दिलवा रहे हैं। लेकिन सोचनीय है कि बेहद महंगे शहर में कूड़ा उठाने के काम और कम वेतन के बावजूद नौकरी के लिए इतनी मारामारी की वजह क्या है। बेदिल को किसी ने बताया कि सरकारी महकमों की तरह इन ठेकेदार संस्थानों में तैनाती के बाद बाहर निकालना प्रबंधकों के लिए आसान नहीं है। कम मेहनत के साथ इस काम में नियमित होने वाली कुछ अन्य स्रोतों से कमाई की बात भी सामने आ रही है। हालांकि यह स्रोत हैं कहां, बेदिल को किसी ने नहीं बताया।

सख्ती में सेंध

दिल्ली पुलिस सख्ती की बात करती है लेकिन इसमें इनके अपने जिम्मेदार ही सेंध लगा देते हैं। अब पूर्वी दिल्ली के आनंद विहार बस टर्मिनल को ही लीजिए। यहां मुस्तैदी पुलिस की अब वैसी नहीं है जैसी उम्मीद की जाती है, क्योंकि यहां अलग ही खेल चल रहा है। पूर्वांचल के पर्व छठ पर पूरी दिल्ली में रेलवे स्टेशनों और बस अड्डों सहित अन्य सभी भीड़ भाड़ इलाके में पुलिस की गश्त बढ़ा दी गई।

आनंद विहार जैसे इलाके में जहां एक ही स्थान पर रेलवे स्टेशन, मेट्रो स्टेशन और बस अड्डे होने के कारण किसी प्रकार की अनहोनी से बचने के लिए पुलिस ने सख्ती बरतते हुए सड़क से अतिक्रमण को पूरी तरह से हटा दिया। लेकिन यह क्या? अभी लोगों की भीड़ कम भी नहीं हुई थी कि फिर अतिक्रमण से यह इलाका पट गया है। मुस्तैदी के नाम पर सिर्फ जवान दिखे, लेकिन वे भीड़भाड़ से निपटने में सक्षम नजर नहीं आए। जिस सख्ती बरतने की बात की जा रही थी, वह तो कहीं गुम ही हो गई।

अब अग्निपरीक्षा

कहते हैं कि राजनीति में कुछ भी संभव है। बिहार और उत्तर प्रदेश इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। यहां रात में भाजपा के साथ जदयू की जोड़ी थी तो सुबह राजद के साथ हो गई। उत्तर प्रदेश में भी कभी मायावती और अखिलेश तो कभी भाजपा और अन्य पार्टियों में इसी तरह का खेल चलता रहा है। ताजा मामला तो दिल्ली नगर निगम में होने वाला है।

यहां भी आम आदमी पार्टी की सरकार और जनता में लोकप्रियता को देखते हुए कांग्रेस और भाजपा के कई दिग्गज ‘आप’ में शामिल होकर इस बार निगम में अपना भाग्य फिर आजमा रहे हैं। इनमें कई तो पांच-पांच और चार व तीन बार पार्षद रह चुके हैं। अब देखना है कि नई पार्टी के बैनर तले उन्हें निगम में कुर्सी मिल पाती है या फिर इस अग्निपरीक्षा में वह फेल साबित होंगे?
-बेदिल