न राज बदलेंगे और न ताज, हिमाचल में इस बार रिवाज बदलेंगे’ के नारे के साथ विधानसभाई दंगल में उतरने जा रही जय राम ठाकुर की सरकार के रास्ते पर कहीं न कहीं अमृत बरस से निकले प्रेम कुमार धूमल के साथ बेरुखी ने आफत ढहा रखी है। हालांकि एक यायावर की तरह धूमल मिशन रिपीट के लिए अपने गृह जिले हमीरपुर जिले में कार्यकर्ताओं से दंड बैठकें निकलवा रहे हैं, मगर डर इस बात का है कि धूमल के रंग में सराबोर पार्टी में भाजपाइयों का एक बहुत बड़ा तबका अंदरखाने सरकार से नाराज तो धूमल से बेकाबू है। लिहाजा कहा जा रहा है कि साढ़े चार बरस में उपेक्षा के नजले ने गुल खिलाया तो भाजपा का यह नारा कांग्रेस के लिए ही सरकार बनाने का रिवाज बना देगा।
केंद्रीय मंत्रिमंडल में निश्चित तौर पर अनुराग ठाकुर प्रदेश की नुमाइंदगी कर रहे हैं तो धूमल की पिछली चुनावी पराजय को ‘षड्यंत्र’ के साथ जोड़ने वाले हमीरपुर और प्रदेश के बाकी हिस्सों से वफादार अभी भी शांत होने में नही आ रहे और पार्टी कूचे से निकल कर भाजपाइयों का कांग्रेस में सम्मिलित होने का क्रम शुरु हो गया है। जाहिर है, सुरेश कश्यप की कमान में भाजपा में राजनीतिक भूस्खलन रोके रुक नही रहा तो भाजपा की अंदरूनी चिंताओं का इजाफा लाजिमी है। याद रहे 2017 में तब कांग्रेस ने सातवीं बार गद्दीनशीं करने के लिए उम्रदराज वीरभद्र सिंह को चुनावी मुकाबले में झोंक दिया था, मगर पिछले चुना में धूमल की अगुआई में पार्टी तो जीत गई, पर धूमल खुद अपना चुनाव हार गए।
उस राजनैतिक अनहोनी और पराजित पुष्कर धामी को उत्तराखंड का सिंहासन सौंपने के बाद छवि को लेकर बुरी तरह से जूझ रही हिमाचल भाजपा में धूमल की भूमिका का मसला अभी यक्ष प्रश्न की तरह खड़ा होता दिख रहा है। कहना न होगा धूमल जैसा क्षत्रप हासिल करने के बाद भी जय राम की मुट्ठी खाली नही तो भरी भी नही है।
बहरहाल पार्टी में दबी जुबान में कहा जा रहा है कि 2014 और 2019 की लोकसभाई जंग में कांग्रेस को पराजित करने वाली प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके सिपहसालार अमित शाह की ताकतवर जोड़ी ने पार्टी के उपर उम्र की व्यवस्था किसी अनचाहे बोझ की तरह लाद दी लेकिन ‘जिंदा हाथी एक लाख का तो मृत सवा लाख’ का कहावत जैसे धूमल अभी पार्टी के लिए मजबूरी बने हुए है। बहरहाल विधानसभाई नतीजों में हिमाचली जनमानस सत्ता विरोधी गुल खिलाता आया है और चुनावी बरस से ठीक पहले अंदरूनी संक्रमण से ग्रस्ति भाजपा से खीमी राम, चेतन बरागटा, और इंदु वर्मा निकल चुके हैं।
प्रदेश में सरकारें बदलने की रवायत के बीच धूमल के निरादर को लेकर समर्थकों में सुगबुगाहट के बावजूद बर्षाकालीन सत्र के बाद जय राम फिर दिग्विजय अभियान पर निकलने वाले हैं। इधर तख्ता पलट कांग्रेसी दावे के बीच माना जा रहा है कि चुनावी बरस से ठीक पहले भाजपा अंदरूनी संक्रमण से ग्रस्त हो जाती है फिर मूसल लेकर कोपभवन में बैठे भाजपाइयों के प्रहार से रिवाज बदल पाएंगे जय राम!
जय राम को धूमल की वापसी कबूल नहीं!
कहना न होगा ऊपर से नेतृत्व थोपने को भाजपा उस कांग्रेस से भी दो कदम आगे निकल गई है जो 11 जनपथ से इस तरह के फरमान जारी करने के लिए मशहूर रही है। इधर एक संसदीय और विधानसभा के तीन उपचुनावों की करारी शिकस्त के बाद मोदी-शाह और बेटे हरीश नड्डा के राजनीतिक भविष्य में फिक्रमंद पार्टी सदर जेपी नड्डा की त्रिमूर्ति धूमल को लेकर भी कोई हुक्मनामा जारी कर सकती है मगर शालीनता के साथ आक्रामक हो रहे जय राम को किसी भी सूरत-ए-हाल में धूमल की वापसी स्वीकार नहीं। बेशक राजनीति में उम्र बंधन के बजाय नेताओं का मानसिक और शारीरिक तौर पर स्वस्थ होने के साथ सियासत में जनता के बीच नेताओं की स्वीकार्यता को लेकर कांग्रेस की दलील सामने है।