संजीव

इतिहास गवाह है कि हरियाणा की राजनीति कुछ नेताओं और परिवारों और पुत्रवाद की राजनीति में उलझी रही है। 1966 में हरियाणा गठन के बाद पहले मुख्यमंत्री बने पंडित भगवत दयाल शर्मा के बाद से अब तक पुत्र मोह राजसेवा पर भारी साबित हुआ है।

ताजातरीन राजनीति में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए दिग्गज नेता बीरेंद्र सिंह डूमरखा केंद्र में इस्पात मंत्री रहे। केंद्रीय मंत्री के रूप में उन्होंने लोकसभा 2019 चुनावों से ठीक पहले इस्तीफा भाजपा आलाकमान को सौंप दिया था। लेकिन यह कोई इत्तेफाक नहीं था। तब उन्होंने अपने तत्कालीन आइएएस बेटे बृजेंद्र सिंह को टिकट दिलवाने की एवज में इस्तीफा दिया था। चौधरी बीरेंद्र सिंह अपने सांसद बेटे बृजेंद्र सिंह को केंद्र में मंत्री बनवाने के लिए आज भी प्रयासरत हैं। बृजेंद्र सिंह को मंत्री बनवाने के लिए चौधरी बीरेंद्र सिंह डूमरखा ने राजनीतिक रूप से बढ़ती आयु का हवाला देकर सक्रिय राजनीति से संन्यास की भी घोषणा कर दी है।

वर्तमान राजनीति में कांग्रेसी दिग्गज नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा द्वारा विदेश में शिक्षा ले चुके अपने बेटे दीपेंद्र हुड्डा को 2005 में हरियाणा की राजनीति में उतारा गया। दीपेंद्र हुड्डा रोहतक से दो बार लोकसभा सांसद रहे। वर्तमान में लोकसभा चुनाव हारने के बाद दीपेंद्र हुड्डा को राज्यसभा के माध्यम से सांसद बनवाने में भी भूपेंद्र हुड्डा की अहम भूमिका रही है। भूपेंद्र सिंह हुड्डा द्वारा दीपेंद्र को राजनीति में मजबूत नेता के रूप में स्थापित करने की कोरोना काल में टीम दीपेंद्र के माध्यम से हरियाणा में सक्रियता देखी गई है। कोरोना काल में टीम दीपेंद्र पीड़ित लोगों के लिए वरदान भी साबित हुई है। राज्यसभा सांसद दीपेंद्र की इस टीम की चर्चा इसलिए भी जोरों पर रही क्योंकि इस टीम ने कांग्रेस प्लेटफार्म पर काम नहीं किया। सामाजिक कार्य टीम दीपेंद्र के नाम पर किए गए।

रणबीर महेंद्रा भी विधायक रह चुके हैं। इसी कड़ी में दिवंगत मुख्यमंत्री भजनलाल ने अपने बड़े पुत्र चंद्रमोहन व छोटे पुत्र कुलदीप बिश्नोई को भी सक्रिय राजनीति में खड़ा किया। चंद्रमोहन व कुलदीप कई बार विधायक बन चुके हैं। कुलदीप की पत्नी रेणुका बिश्नोई भी हांसी से विधायक रह चुकी हैं। आज की परिस्थितियों में चंद्रमोहन के बेटे सिद्धार्थ व कुलदीप के पुत्र भव्य बिश्नोई को राजनीति में स्थापित करने की भरपूर कोशिशें चल रही हैं। पूर्व उपप्रधानमंत्री एवं पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी देवी लाल ने अपने पुत्र ओमप्रकाश चौटाला को सक्रिय राजनीति का हिस्सा बनाया। जिन्होंने कई बार प्रदेश का नेतृत्व किया। लेकिन उनके दूसरे पुत्र रणजीत चौटाला और प्रताप चौटाला भी सक्रिय राजनीति में रहे। आज रणजीत चौटाला निर्दलीय चुनाव जीतकर भाजपा को समर्थन देने के कारण प्रदेश के बिजली एवं जेल मंत्री हैं। वहीं इनेलो सुप्रीमो पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला द्वारा अपने पुत्रों अजय चौटाला व अभय चौटाला को हमेशा सक्रिय राजनीति का हिस्सा बनाया। भले ही आज परिस्थितियां बदल गईं और अजय चौटाला व उनके दोनों बेटे दुष्यंत-दिग्विजय ने अपना रास्ता बदल लिया।

उन्होंने जजपा का गठन कर हरियाणा की वर्तमान भाजपा की गठबंधन सरकार में किंगमेकर की भूमिका निभा रखी है। वहीं अभय सिंह चौटाला इनेलो को पुन: स्थापित करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। अभय सिंह चौटाला ने परिवार में राजनीतिक विचारधारा अलग होने पर अपने दोनों बेटों करण और अर्जुन को इनेलो संगठन की राजनीति में सक्रिय कर दिया है। करनाल लोकसभा से पांच बार सांसद रहे पंडित चिरंजी लाल शर्मा ने भी पुत्रमोह की परंपरा जारी रखा। उनके बेटे कुलदीप शर्मा भी हरियाणा के दमदार ब्राह्मण नेताओं में गिने जाते हैं। जो कि विधानसभा अध्यक्ष भी रह चुके हैं और भूपेंद्र सिंह हुड्डा के काफी नजदीक हैं।

चार पूर्व मुख्यमंत्रियों ने बनाए थे अपने दल

हरियाणा में अब तक 10 मुख्यमंत्री बने हैं। जिनमें से 5 कांग्रेस के मुख्यमंत्री रहे हैं। इनमें से 4 मुख्यमंत्री- भगवत दयाल शर्मा, बनारसी दास गुप्ता, बंसीलाल व भजनलाल अब तक कांग्रेस को छोड़कर अलग पार्टी बना चुके हैं। इन सभी पूर्व मुख्यमंत्रियों की हाईकमान में उस समय तूती बोलती थी और एक समय ऐसा भी आया, जब कांग्रेस ने इन्हें किनारे किया। इन सभी पूर्व मुख्यमंत्रियों ने अपने बेटों के राजनीतिक भविष्य के लिए कांग्रेस को छोड़ा और बाद में उसी कांग्रेस में ये सभी वापस आ गए। पर जो लोग इनके चक्कर में कांग्रेस को छोड़कर गए थे, वे खुद कहीं के नहीं रहे।