दिल्ली-एनसीआर में वायु गुणवत्ता लगातार गिरती जा रही है। स्थिति इतनी गंभीर हो चुकी है कि सांस लेना भी मुश्किल हो गया है। इस बिगड़ते हालात को देखते हुए केंद्र सरकार के दिशा-निर्देश पर दूसरे चरण की पबंधियों को 19 अक्टूबर से प्रभावी कर दिया गया है।
इसके तहत डीजल जनरेटरों पर प्रतिबंध, निर्माण कार्यों पर रोक और सख्त पीयूसी (प्रदूषण जांच प्रमाणपत्र) नियम लागू किए गए हैं।हालांकि, योजना लागू होने के बावजूद विभागों की लापरवाही सामने आ रही है। गौतमबुद्धनगर जिले में तकरीबन 50,000 वाहन बिना प्रदूषण जांच के सड़कों पर दौड़ रहे हैं, जो कि ग्रैप के नियमों का खुला उल्लंघन है।
परिवहन विभाग के अनुसार, इन वाहनों को पहले ही नोटिस जारी किया जा चुका है और चेतावनी दी गई है कि यदि निर्धारित समय में प्रदूषण जांच नहीं कराई गई, तो वाहन मालिकों पर 10,000 रुपए तक का चालान और छह महीने की जेल तक की सजा हो सकती है। यातायात पुलिस की रपट के अनुसार, जनवरी 2025 से अब तक 70,000 वाहनों पर कार्रवाई की जा चुकी है जो बिना पीयूसी के पकड़े गए। इसके बावजूद वाहन चालकों में जागरूकता की कमी और नियमों के प्रति लापरवाही अब भी बनी हुई है।
दिवाली के बाद दिल्ली की हवा फिर क्यों हुई ‘बहुत खराब’? क्या हरित पटाखे से भी बिगड़े हालात
पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि बिना पीयूसी वाले वाहन कुल प्रदूषण का 20-30 फीसदी योगदान देते हैं। यदि इस दिशा में सख्त कदम नहीं उठाए गए तो ग्रैप जैसी योजनाएं सिर्फ कागजी साबित होंगी। साथ ही विशेषज्ञों ने यह भी कहा कि प्रदूषण नियंत्रण की जिम्मेदारी केवल विभागों की ही नहीं, बल्कि वाहन मालिकों की भी है।
दिल्ली में दिवाली के दिन वायु गुणवत्ता चार साल में सबसे खराब रही तथा रात में प्रदूषण का स्तर तेजी से बढ़ा और सूक्ष्म प्रदूषक कणों (पीएम 2.5) की सांद्रता 675 पर पहुंच गई, जो 2021 के बाद से अब तक का उच्चतम स्तर है। भाजपा सरकार ने इसके लिए पटाखों के बजाय आम आदमी पार्टी शासित पंजाब में पराली जलाए जाने की घटनाओं को जिम्मेदार ठहराया। मंगलवार को दिवाली के बाद वाली सुबह दिल्ली में घनी धुंध छाई रही, दृश्यता कम हो गई तथा वायु गुणवत्ता ‘रेड जोन’ में पहुंच गई।