Delhi News: दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने मंगलवार (6 दिसंबर, 2022) को अबॉर्शन की इजाजत (Right to Abortion) मांगने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि मां का फैसला ही सर्वोपरि होगा। इसके साथ ही कोर्ट ने 26 साल की महिला को 33 हफ्ते का गर्भ गिराने की इजाजत दे दी।

न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह ने कहा कि एक गर्भवती महिला के अबॉर्शन का अधिकार दुनिया भर में बहस का विषय रहा है, भारत के कानून में एक महिला की पसंद को मान्यता दी गई है। वर्तमान मामले में, याचिकाकर्ता ने अपनी गर्भावस्था को खत्म करने की मांग की थी क्योंकि उसे पता चला कि भ्रूण कुछ मस्तिष्क संबंधी असामान्यताओं से पीड़ित है। उसका गर्भ 33 हफ्ते का है।

भ्रूण में मस्तिष्क संबंधी समस्याओं के चलते महिला ने मांगी थी अबॉर्शन की इजाजत

महिला ने दावा किया था कि प्रेगनेंसी के बाद उसने कई अल्ट्रासाउंड कराए थे। 12 नवंबर के अल्ट्रासाउंड में उसे पता चला कि महिला के गर्भ में पल रहे भ्रूण में सेरेब्रल डिजीज है। इसके बाद उसने दिल्ली हाईकोर्ट में अबॉर्शन की इजजाजत मांगी थी। इस दौरान महिला के वकील ने बॉम्बे हाईकोर्ट और कलकत्ता हाईकोर्ट के एक फैसले का जिक्र करते हुए कहा कि एमटीपी एक्ट की धारा 3 (2)(बी) और 3(2)(डी) के तहत भ्रूण को हटाने की अनुमति दी जा सकती है, जिसके बाद कोर्ट ने फैसला सुनाया।

वहीं, कोर्ट के आदेश के बाद कुछ डॉक्टरों की कमेटी ने कहा था कि भ्रूण हटाना सही नहीं है। इसके बाद हाईकोर्ट ने कुछ डॉक्टरों से बातचीत के बाद सुरक्षित गर्भपात के जरिए भ्रूण हटाने का आदेश दिया।

अबॉर्शन के लिए भारत में क्या है नियम?

भारत में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट (एमटीपी एक्ट 1971) के तहत अबॉर्शन कानूनी है, जिसे बाद में संशोधित किया गया था। हर महिला को अबॉर्शन का अधिकार है। पहले 20 सप्ताह तक अबॉर्शन कराने की इजाजत थी, लेकिन साल 2021 में इस कानून में बदलाव किया गया। अब 24 हफ्ते तक अबॉर्शन कराने की अनुमति दी गई है। इसके अलावा, कुछ खास मामलों में 24 हफ्ते के बाद भी अबॉर्शन कराने की इजाजत ली जा सकती है।