Delhi Government: दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार और उपराज्यपाल के बीच की तकरार अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गई है। सीएम अरविंद केजरीवाल और एलजी विनय सक्सेना के मतभेदों के बीच उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर अफसरों की शिकायत की है। अपने हलफनामे में डिप्टी सीएम ने कहा कि अफसर हमारा फोन नहीं उठाते, मीटिंग में भी नहीं आते हैं।

दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया द्वारा बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में दायर एक हलफनामे में आप सरकार के कई मुद्दों को लिस्ट किया गया है। डिप्टी सीएम ने अपने हलफनामे में कहा है, “अफसरों ने मीटिंग में आना छोड़ दिया है, हमारा कॉल भी नहीं उठाते, मंत्रियों के आदेशों की अवहेलना करते हैं साथ ही चुनी हुई सरकार के साथ उदासीनता का व्यवहार करते हैं।

सरकार के प्रति असंतोष को प्रोत्साहन: सिसोदिया के हलफनामे में कहा गया है कि इस साल की शुरुआत में उपराज्यपाल वीके सक्सेना की नियुक्ति के साथ समस्या और भी विकट हो गई है। इसमें कहा गया है, “सिविल सर्वेंट्स और चुनी हुई सरकार के बीच किसी भी तरह के सहयोग पर दंडित करने की मांग की जाती है और सरकार के प्रति असंतोष को प्रोत्साहित किया जा रहा है।” गौरतलब है कि वीके सक्सेना ने मई 2022 में उपराज्यपाल के रूप में कार्यभार संभाला था, जिसके बाद से उनके कार्यालय और निर्वाचित सरकार के बीच कई मुद्दों पर टकराव चल रहा है।

यह हलफनामा दिल्ली में सेवाओं पर किसका नियंत्रण है, इस पर केंद्र के साथ दिल्ली सरकार के विवाद के संबंध में दायर किया गया है। 12 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में प्रशासनिक सेवाओं के नियंत्रण पर केंद्र और दिल्ली सरकार की विधायी और कार्यकारी शक्तियों के दायरे पर कानूनी मुद्दे की सुनवाई के लिए पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ स्थापित करने पर सहमति व्यक्त की थी।

मंत्रियों के कॉल का जवाब नहीं देते अफसर: हलफनामे के मुताबिक, “बैठकों में भाग न लेने के अलावा सीनियर सिविल सर्वेंट्स भी नियमित रूप से मंत्रियों के टेलीफोन कॉल नहीं लेते हैं। ना ही आधिकारिक मामलों पर चर्चा करने के लिए उनके कार्यालयों में मिलने के उनके मौखिक अनुरोधों का जवाब देते हैं। उदाहरण के लिए प्रमुख सचिव (वित्त) ने उपमुख्यमंत्री/वित्त मंत्री की कॉल लेने या इस कार्यालय में वित्त विभाग से संबंधित महत्वपूर्ण मामलों पर चर्चा करने से इनकार कर दिया है।”

हलफनामे में आगे कहा गया है, “उपरोक्त उदाहरण साफ तौर पर बताते हैं कि सिविल सेवकों के लिए निर्वाचित सरकार के साथ लापरवाही और अवमानना ​​​का व्यवहार करना एक आम बात हो गई है। यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि मंत्री लोगों के चुने हुए प्रतिनिधि होते हैं और इन मंत्रियों के जरिए सिविल सेवकों को लोगों के प्रति जवाबदेह ठहराया जा सकता है।”