सुप्रीम कोर्ट ने आंदोलनों के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को होने वाले नुकसान पर बुधवार को यह कहते हुए चिंता जताई कि वह क्षति के लिए जवाबदेही तय करने के लिए मानक तय करेगा। न्यायमूर्ति जेएस खेहड़ की अध्यक्षता वाले पीठ ने कहा कि उसने आंदोलनों के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को होने वाले नुकसान के मुद्दे को देखने का फैसला किया है। पीठ में न्यायमूर्ति सी नागप्पन भी हैं।
पीठ ने कहा, ‘आंदोलनों के दौरान सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान के लिए जवाबदेही तय करने हेतु हम मानक तय करेंगे। आप देश की या इसके नागरिकों की संपत्ति को नहीं जला सकते हैं।’ पीठ ने कहा, ‘हमें मुद्दे पर संज्ञान लेना चाहिए और हम इस तरह के कृत्यों में शामिल लोगों के खिलाफ कार्रवाई के लिए दिशा-निर्देश तय करेंगे।’ इसने आगे कहा, ‘देश को जानना चाहिए कि क्या परिणाम होते हैं। आंदोलनों के दौरान कोई भी देश को बंधक नहीं बना सकता है।’ पीठ ने यह भी कहा, ‘चाहे भाजपा हो या कांग्रेस, या कोई अन्य संगठन, उन्हें महसूस करना चाहिए कि उन्हें सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के लिए जवाबदेह ठहराया जा सकता है।’ अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा कि हार्दिक पटेल ने अपने खिलाफ प्राथमिकी को चुनौती दी थी, लेकिन मामले में एक आरोपपत्र पहले ही दायर किया जा चुका है।
रोहतगी ने कहा, ‘अब प्राथमिकी के बाद, आरोपपत्र दायर किया गया है और सुप्रीम कोर्ट में इसका परीक्षण नहीं किया जा सकता है।’ पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता जमानत के बारे में अधिक चिंतित था, न कि आरोपपत्र के बारे में। इस पर रोहतगी ने जवाब दिया कि उसकी जमानत याचिकाएं सत्र अदालत में पहले से ही लंबित हैं। पीठ ने तब कहा कि उसने आंदोलनों के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचने के मामले को देखने का फैसला किया है और सुनवाई के लिए मामले को गुरुवार तक के लिए स्थगित कर दिया।
शीर्ष अदालत ने 14 जनवरी को अटॉर्नी जनरल से कहा था कि वह अदालत की उन मामलों में अपनाए जाने वाले रुख को लेकर मदद करें जहां बड़े पैमाने पर सार्वजनिक संपत्ति नष्ट हुई है। एक आपराधिक मामले में आरक्षण आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल की अपील पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने गुजरात पुलिस को भी निर्देश दिया था कि वह पुलिसकर्मियों को मारने के लिए पटेल समुदाय को कथित रूप से भड़काने के मामले में हार्दिक तथा अन्य के खिलाफ दायर आरोपत्र का अंग्रेजी अनुवाद उसे मुहैया कराए। हार्दिक के वकील ने आरोप लगाया था कि उसे आरोपपत्र का अंग्रेजी अनुवाद उपलब्ध नहीं कराया गया है तथा इसके अतिरिक्त, पुलिस ने उसे एक वीडियो फुटेज की पासवर्ड युक्त सीडी बिना पासवर्ड के उपलब्ध कराई है।
इसके पूर्व, अदालत ने गुजरात पुलिस को मामले में आरोपपत्र दायर करने की अनुमति दे दी थी जिसमें आरोप लगाया गया था कि हार्दिक ने पुलिसकर्मियों को मारने के लिए समुदाय के सदस्यों को भड़काया और ‘गुजरात सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने’ के लिए हिंसक तरीके अपनाए। वर्तमान मामले के अतिरिक्त, शीर्ष अदालत हार्दिक की एक अन्य अपील पर विचार कर रही है जिसमें राज्य में पुलिस थानों जैसे स्थानों पर कथित हमला करने को लेकर उनके तथा अन्य के खिलाफ लगाए गए देशद्रोह के आरोप को हटाने से इनकार करने के उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी गई है।
राज्य पुलिस ने अक्तूबर में 22 वर्षीय हार्दिक और उनके पांच अन्य साथियों के खिलाफ देशद्रोह और सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने के आरोप में मामला दर्ज किया था। बाद में हार्दिक, चिराग पटेल, दिनेश बंभानिया और केतन पटेल को गिरफ्तार किया गया था जो फिलहाल जेल में हैं। हार्दिक के दो अन्य सहयोगियों, अमरीश पटेल और अल्पेश कठीरिया को गिरफ्तार नहीं किया गया था क्योंकि उच्च न्यायालय ने उन्हें अंतरिम राहत प्रदान कर दी थी।