Chirag Paswan Interview: केंद्रीय मंत्री और लोजपा (रामविलास) प्रमुख चिराग पासवान (42) नवंबर में होने वाले बिहार विधानसभा चुनावों के लिए सत्तारूढ़ एनडीए के सीट बंटवारे में अपनी जगह बनाने में कामयाब रहे हैं। निवर्तमान बिहार विधानसभा में उनकी पार्टी का कोई विधायक नहीं होने के बावजूद उन्होंने सीट बंटवारे में 29 सीटें हासिल कीं। अपने व्यस्त प्रचार अभियान के बीच द इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक इंटरव्यू में चिराग ने अपने चुनावी मुद्दों, एनडीए गठबंधन और भविष्य की योजनाओं सहित कई मुद्दों पर बात की। आइए जानते हैं बातचीत के प्रमुख अंश।
सीट बंटवारे को लेकर चिराग कहते हैं कि मैं बिल्कुल खुश और संतुष्ट हूं। मेरे पास खुश न होने का कोई कारण नहीं है, वरना मैं बहुत कृतघ्न हो जाऊँगा, क्योंकि एक शून्य विधायक वाली पार्टी के लिए, मेरे प्रधानमंत्री ने मुझ पर इतना भरोसा किया है, और मुझे 29 सीटें लड़ने के लिए दी हैं, ठीक वैसे ही जैसे लोकसभा चुनाव में मेरी पार्टी को पाँच सीटें दी गई थीं।
इस आवंटन के पीछे आपकी पार्टी के लिए क्या संदेश है?
मुझे नहीं पता कि संदेश क्या है… मैंने भाजपा से कहा था कि चुनाव एनडीए के भीतर नहीं हो रहा है और इसलिए किसे कितनी सीटें मिल रही हैं, यह मुख्य मुद्दा नहीं है। हमें विपक्ष से लड़ना है। मैंने भाजपा से कहा कि मैं नहीं चाहता कि मेरे प्रधानमंत्री की पार्टी 100 से कम सीटों पर चुनाव लड़े। मैंने सोचा था कि महागठबंधन में राजद 125-130 सीटों पर लड़ेगी… इसलिए भाजपा को 100 से ज़्यादा सीटों पर चुनाव लड़ना चाहिए। मैंने सोचा था कि जेडी(यू) 102-103 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। ऐसे में, जो बचता है वह सिर्फ़ 42-43 सीटें हैं। फिर मैं यह फ़ॉर्मूला लेकर आया कि हमें अपनी लोकसभा सीटों (2024 के चुनावों में आवंटित) के अनुसार विधानसभा सीटें तय करनी चाहिए। मुझे पता था कि सभी इस फ़ॉर्मूले से संतुष्ट होंगे। इसलिए हम को छह और उपेंद्र कुशवाहा जी को भी इतनी ही सीटें दी गईं। दरअसल, मुझे एक सीट का नुकसान हो रहा है, क्योंकि इस फ़ॉर्मूले के हिसाब से मुझे 30 मिलनी चाहिए थीं। लेकिन मैं 29 से खुश था क्योंकि 20 साल पहले मेरे पिता (रामविलास) ने 29 विधायक जीते थे और अब मुझे भी ऐसा करने का अवसर मिला है।
यह पहली बार है कि आपके गठबंधन में जेडीयू बड़े भाई की भूमिका में नहीं है, क्योंकि नीतीश कुमार की पार्टी और भाजपा दोनों बराबर सीटों (101) पर चुनाव लड़ रहे हैं। आप इसके महत्व को कैसे देखते हैं?
इस सवाल के जवाब में चिराग कहते हैं कि मुझे सच में नहीं लगता कि इसका कोई मतलब है। बड़े भाई वाली ये सारी बातें कोई मायने नहीं रखतीं। आखिरकार, हम सबकी एक अहम भूमिका है। मैं खुद दाल भले ही न बना पाऊँ, लेकिन मैं वो नमक हूँ जिसके बिना दाल अच्छी नहीं लगती। इसलिए पार्टी चाहे जितनी भी बड़ी हो… हम सबकी भूमिका बराबर है।
ऐसी चर्चा थी कि आप प्रशांत किशोर से हाथ मिला सकते हैं? या यह सिर्फ़ सीट बंटवारे पर बातचीत के दौरान भाजपा को डराने के लिए था?
यह सिर्फ़ एक अफवाह थी। मुझे नहीं पता कि यह क्यों फैलाई गई। मैं भाजपा को धमकाने के लिए ऐसा दुष्प्रचार करने वाला आखिरी व्यक्ति होऊँगा। मैं इस तरह की दबाव की राजनीति नहीं करता। हाँ, मैं प्रशांत जी को जानता हूँ। लेकिन मुझे याद भी नहीं कि आखिरी बार मैंने उनसे कब बात की थी। हाँ, हम एक-दूसरे को अच्छी तरह जानते हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि मैं कोई वैकल्पिक गठबंधन ढूँढ रहा था।
आपके कई उम्मीदवार गैर-दलित हैं, हालाँकि आपका समर्थन मुख्यतः दलित समुदाय में माना जाता है। आपकी क्या योजनाएँ हैं?
मैं 21वीं सदी का एक शिक्षित युवा हूँ, जिसका जन्म और पालन-पोषण दिल्ली में हुआ है। मैंने मुंबई में काम किया है। मैं वास्तव में इस तरह के जातिगत परिदृश्य में विश्वास नहीं करता। मेरे लिए, बिहारी प्रतिनिधित्व महत्वपूर्ण है, और कौन वास्तव में निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर सकता है। लोकसभा चुनावों की तरह, जहां मैं चाहता था कि युवा और शिक्षित लोग आगे आएं, मैं विधानसभा चुनावों के लिए भी यही चाहता हूं। मेरा ध्यान “एमवाई समीकरण” पर है, जिसका अर्थ है महिला और युवा। मेरा ध्यान अधिक महिला उम्मीदवारों और अधिक युवा चेहरों पर है।
चिराग कहते हैं कि जैसा कि मैंने कहा, मैं आठ आरक्षित सीटों पर चुनाव लड़ रहा हूं, जहाँ मैंने अपने अनुसार उम्मीदवार दिए हैं। मैं समझता हूँ कि यह एक कठोर वास्तविकता है कि मेरे राज्य में उम्मीदवारों को जाति के चश्मे से देखा जाता है। मैंने यह सुनिश्चित करने की कोशिश की है कि मेरे सभी 29 उम्मीदवार विभिन्न वर्गों – सवर्ण, अनुसूचित जाति, पिछड़े आदि का प्रतिनिधित्व करें। मैंने उनके बीच संतुलन बनाने और सभी को प्रतिनिधित्व देने की कोशिश की है।
क्या एनडीए में मुख्यमंत्री का सवाल सुलझ गया है?
चिराग कहते हैं कि मुझे लगता है कि यहां कोई बड़ी समस्या नहीं है। हम अपने वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी के नेतृत्व में चुनाव की ओर बढ़ रहे हैं। जैसा कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह जी ने कहा है कि एनडीए के सभी निर्वाचित विधायक तय करेंगे कि सरकार का नेतृत्व कौन करेगा। मुझे पूरा विश्वास है कि सभी विधायक नीतीश कुमार को (मुख्यमंत्री के रूप में) चुनेंगे। हम अभी इसकी घोषणा इसलिए नहीं कर रहे हैं क्योंकि यह एक गठबंधन है। भाजपा ने उन राज्यों में ऐसी घोषणाएँ की थीं जहाँ पार्टी अकेले चुनाव लड़ रही थी… यह लोकतांत्रिक भी है (एक गठबंधन में) – सभी सहयोगियों को अपनी बात रखने के लिए एक मंच दिया जाना चाहिए। सभी सहयोगियों को एक साथ बैठना चाहिए और मुझे लगता है कि अंततः सभी विधायक नीतीश कुमार जी को फिर से चुनेंगे।
क्या नीतीश कुमार लोजपा (रालोद) की सीट हिस्सेदारी को लेकर आपसे नाराज थे?
बिल्कुल नहीं। मेरे पास एक भी मैसेज नहीं आया कि सीएम नाराज़ हैं या सीटों का कोई विवाद है। मुझे जितनी भी सीटें मिलीं, वो सब मेरी मनचाही सीटें थीं। जिन सीटों को लेकर अफ़वाहें हैं, वो मुझे नहीं चाहिए थीं। सोनभरसा जैसी सीटें मेरी लिस्ट में नहीं थीं। उन्होंने मुझसे 34-35 सीटों का पूल मांगा था और उनमें से 29 चुन ली गईं। मेरे और जेडीयू के बीच किसी भी सीट को लेकर कोई विवाद नहीं था।
आपने युवाओं के लिए क्या वादे किए हैं?
सांसद के रूप में यह मेरा तीसरा कार्यकाल है। मैं मुंबई में काम करता था और वहीं बस गया था। अगर मैंने बॉलीवुड में कुछ और साल दिए होते, तो वहाँ अपना नाम बना लेता। राजनीति में आने का मेरा एकमात्र कारण यह था कि मैंने करीब से देखा था कि देश के अन्य हिस्सों में बिहारियों के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है, उन्हें कैसे अपमानित किया जाता है, खासकर स्थानीय पार्टी… शिवसेना द्वारा। बिहारी नाम ही गाली की तरह बन गया था। मैं राजनीति में इसलिए आया हूँ क्योंकि बिहार और बिहारी ही मेरे असली मकसद हैं।
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चिराग कहते हैं कि तीसरी बार सांसद बनने के बाद, मुझे एहसास हुआ कि दिल्ली में बैठकर मैं बिहारियों के लिए ज़्यादा कुछ नहीं कर सकता और मुझे राज्य वापस जाना होगा। मैंने एक विज़न डॉक्यूमेंट पर काम करना शुरू कर दिया है जो “बिहार फ़र्स्ट” और “बिहारियों फ़र्स्ट” के लिए है। मुझे पता है कि मुझे क्या करना है – रोज़गार के अवसर पैदा करना, राजस्व बढ़ाना, स्वास्थ्य सुविधाओं और शिक्षा के बुनियादी ढाँचे में सुधार करना और पूरे राज्य का विकास करना… सत्ता में आने के तुरंत बाद मैं इसी पर काम करूँगा। यह पहली बार होगा जब मेरी पार्टी बिहार में सरकार का एक मज़बूत सहयोगी बनने जा रही है। थोड़े समय को छोड़कर, हम कभी भी बिहार सरकार का मज़बूत हिस्सा नहीं रहे।
आप कहते हैं कि नीतीश कुमार फिर से मुख्यमंत्री बनेंगे। लेकिन उनके स्वास्थ्य को लेकर चिंताएं हैं। क्या आपको लगता है कि एक युवा मुख्यमंत्री बिहार के लिए बेहतर कर सकता है? क्या आप मुख्यमंत्री पद के दावेदार हैं?
इस समय, मेरा राज्य जिस दौर से गुज़र रहा है, वह बहुत ही नाज़ुक है, और इसके लिए एक अनुभवी नेता का होना ज़रूरी है। क्योंकि मुझे पूरा विश्वास है कि अगले पाँच साल बिहार के लिए स्वर्णिम काल साबित होंगे। मुझे लगता है कि मेरे राज्य का विकास न हो पाने का सबसे बड़ा कारण यह था कि संघीय ढाँचे के तहत लंबे समय तक यहाँ अलग-अलग सरकारें रहीं। लगभग 27 सालों तक। मैं डबल इंजन वाली सरकार की ताकत में विश्वास करता हूं, जब सरकारें एकमत होती हैं, तो काम तेज़ी से होता है। इसलिए आने वाले पांच सालों में डबल इंजन वाली सरकार का सबसे अच्छा इस्तेमाल करने के लिए किसी अनुभवी व्यक्ति का होना ज़रूरी है। मेरा मानना है कि नीतीश कुमार जैसा अनुभवी मुख्यमंत्री ही अब एकमात्र विकल्प है। बेशक, भविष्य में, बहुत से युवाओं के आगे बढ़ने की गुंजाइश होगी।
कुछ विपक्षी नेताओं ने कहा है कि आप और भाजपा मिलकर नीतीश कुमार को सत्ता से हटाने की कोशिश कर रहे हैं। आपकी क्या प्रतिक्रिया है?
इस सवाल के जवाब में चिराग ने कहा कि महागठबंधन यही करता है। ये एक ऐसा गठबंधन है जो बुनियादी सीटों के बंटवारे पर भी कोई साझा आधार नहीं बना पा रहा है और हम पर कटाक्ष कर रहा है। ये एक ऐसा नैरेटिव गढ़ना और फैलाना चाहता है कि एनडीए के सहयोगियों में फूट है। क्योंकि वो जानते हैं कि जब हम साथ हैं तो वो हमें हरा नहीं सकते। 2020 में एनडीए बंटा हुआ था। चिराग पासवान अलग-अलग चुनाव लड़ रहे थे, और उपेंद्र कुशवाहा भी। इसलिए उन्हें कुछ सीटों पर बढ़त मिली। इस बार एनडीए एकजुट है और महागठबंधन बंटा हुआ है। इसलिए वो ये एहसास दिलाना चाहते हैं कि हम बंटे हुए हैं। एनडीए में हम साथ मिलकर काम कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत भाजपा नेता विपक्ष पर निशाना साधने के लिए “जंगल राज” का मुद्दा उठा रहे हैं। क्या यह तब भी कारगर होगा, जबकि मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा इसके बारे में जानता ही नहीं है?
चिराग कहते हैं कि ऐसे मतदाताओं को जंगल राज क्या है, यह बताना और भी ज़रूरी हो जाता है। वे नहीं जानते कि जंगल राज क्या था। जब तक हम उन्हें नहीं बताएँगे, उन्हें यह एहसास नहीं होगा कि इसका न होना कितना ज़रूरी है… मेरा मानना है कि 1990 का दौर (लालू प्रसाद का दौर) राज्य के पिछड़ेपन की सबसे बड़ी वजहों में से एक है। उन्होंने मेरे राज्य को सदियों पीछे धकेल दिया है। अगर भगवान न करे, वे फिर से चुन लिए गए, तो बिहार दशकों पीछे चला जाएगा। यही वजह है कि उन्हें यह बताना ज़रूरी है कि भ्रष्टाचार, अराजकता और अपराध के चरम पर वह दौर कैसा था। इसलिए हमें पहली बार वोट देने वालों को उस दौर के बारे में बताना होगा।
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