BSP Mega Rally: बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती आज पार्टी के संस्थापक कांशीराम के परिनिर्वाण दिवस ( 9 अक्टूबर) पर लखनऊ में महारैली का आयोजन किया है। पिछले कुछ सालों से बसपा अपने सबसे बुरे राजनीतिक दौर से गुजर रही है। मायावती आखिरी बार वर्ष 2007 से 2012 तक यूपी की सत्ता में रहीं थी। उसके बाद बसपा न तो यूपी विधानसभा में और न ही लोकसभा चुनाव में उल्लेखनीय प्रदर्शन कर पायी। मायावती बसपा को दुबारा सत्ता में वापस लाना चाहती हैं मगर उनके रास्ते में तीन बड़ी चुनौतियां हैं जिनसे पार पाए बिना पार्टी का उद्धार होना मुश्किल है। आइए बसपा के सामने खड़ी इन चुनौतियों पर एक नजर डालते हैं-
मायवती की पहली चुनौती- लोक सभा चुनाव 2024 में यूपी में भाजपा को बड़ा झटका लगा था मगर जिस बात पर ज्यादा चर्चा नहीं हुई वह है इस चुनाव से बसपा को लगा झटका। सपा ने 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के झोली से जिन सीटों को झटका उनमें बीएसपी के दलित वोटबैंक में सफल सेंधमारी एक बड़ा कारण रहा। यूपी की बहुचर्चित अयोध्या सीट से सपा के प्रत्याशी अवधेश प्रसाद ने जीत दर्ज की, जो दलित समुदाय से आते हैं। सपा चीफ अखिलेश यादव PDA यानी पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक समीकरण के साथ चुनावी मैदान में उतरे। दलितों को बड़ी संख्या में टिकट दिया गया। इसका असर चुनाव में दिखा। अमूमन, सपा से दूरी बनाए रखने वाला दलित वर्ग इससे जुड़ा। इसका नतीजा यह हुआ कि सपा ने 2024 के लोकसभा चुनाव में जबरदस्त प्रदर्शन किया।
ऐसे में सपा चीफ अखिलेश यादव यूपी चुनाव 2027 से पहले दलितों को पार्टी में जोड़ने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। दलित और पिछड़ों के मुद्दों को वो लगातार उठा रहे हैं। क्योंकि यूपी में करीब 21 प्रतिशत दलित वोट है। ऐसे में अखिलेश को लगता है कि अगर वो दलित वोट बैंक को साधने में कामयाब हुए तो 2027 के सत्ता के सिंहासन पर बैठने से उन्हें कोई रोक नहीं सकता। ऐसे में बसपा चीफ मायावती के सामने यह एक बड़ी चुनौती दिख रही है।
मायावती की दूसरी चुनौती- भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर और नगीना से सांसद बसपा चीफ मायावती के सामने दूसरी सबसे बड़ी चुनौती हैं। क्योंकि वो भी दलित समाज से आते हैं और पिछले कुछ सालों में उन्होंने दलित वोट बैंक पर अच्छी खासी पकड़ बनाई है। चंद्रशेखर ने अपनी राजनीति दलित वोट बैंक को आधार बनाकर शुरू की थी। हालांकि, पिछले दो चुनाव में उन्हें कोई खास सफलता नहीं मिली, लेकिन लोकसभा चुनाव 2024 में अपने दम पर उतरे चंद्रशेखर आजाद ने दलितों के बड़े गढ़ बिजनौर की नगीना सीट से जीत दर्ज कर बहुजन समाज पार्टी के लिए बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है।
2024 के लोकसभा चुनाव में बसपा का खाता भी नहीं खुला। वहीं, आजाद समाज पार्टी ने अपनी उपस्थिति संसद तक दर्ज कराई है। विधानसभा चुनाव 2017 में चंद्रशेखर दलित वोट बैंक पर अपनी पकड़ बनाने की कोशिश करते दिख रहे हैं। दलितों के मुद्दे को उठा रहे हैं। दलितों के बीच पकड़ बनाने के लिए वह उन तक पहुंच रहे हैं। जबकि मायावती के भतीजे आकाश आनंद अभी तक उस किरदार में नजर नहीं आए हैं, जिसकी की मायावती को उम्मीद है। दूसरा प्रदेश की राजनीति में एक दलित चेहरे के रूप में चंद्रशेखर तेजी से उभर कर सामने आए हैं। ऐसे में मायावती के सामने चंद्रशेखर के रूप में दूसरी बड़ी चुनौती है।
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मायावती की तीसरी चुनौती- मायावती के सामने तीसरी सबसे बड़ी चुनौती भाजपा है। भाजपा सरकार जिस तरीके से दलित-पिछड़ों के लिए लोक कल्याणकारी योजनाएं लाई हैं, उसका असर उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 में देखने को मिला। फ्री राशन और अन्य सरकारी योजनाओं ने बीजेपी सरकार के निकट दलितों को लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उज्ज्वला योजना, लाखपति दीदी योजना से लेकर अन्य योजनाओं ने दलितों को बीजेपी के पास लाकर खड़ा कर दिया।
इतना ही नहीं, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अभी हाल ही में वाल्मीकि जयंती पर सार्वजनिक अवकाश की घोषणा की है। ऐसे में बीजेपी मायावती के सबसे बड़े वोट बैंक को अपनी ओर खींचने की कोशिश में लगी है। ऐसे में कहा जा सकता है कि बसपा चीफ मायावती के लिए इन तीन प्रमुख मुद्दों से निपटना आसान नहीं होगा।
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