भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सुशांत सिंह राजपूत केस और कंगना रनौत-महाराष्ट्र सरकार के विवाद पर बेहद सावधानी से कदम उठा रही है। पार्टी दोनों ही मुद्दों को भुनाने के मौके तलाश रही है। पार्टी ने सुशांत सिंह राजपूत के लिए न्याय की मांग की बात की तो है, लेकिन वह महाराष्ट्र में अपने समीकरण न बिगड़ने देने के लिए इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाने से बच रही है। इतना ही नहीं जहां एक तरफ भाजपा खुद को कंगना रनौत के मुंबई और पीओके वाले बयान से दूर रख रही है, वहीं महाराष्ट्र में सत्तासीन महाविकास अघाड़ी गठबंधन और शिवसेना को घेरने के लिए अभिनेत्री के दफ्तर में की गई तोड़फोड़ की आलोचना भी कर रही है।

बताया गया है कि इन दोनों मामलों को संभालने के लिए भाजपा ने अपने आधा दर्जन नेताओं को शिवसेना का सामना करने के लिए आगे कर दिया है। पार्टी ने इस बारे में भी निर्देश जारी किए हैं कि नेताओं को सुशांत सिंह राजपूत और कंगना रनौत के मामले में किस तरह बोलना है। गौरतलब है कि हाल ही में महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा था कि उनकी पार्टी ने कभी कंगना के मुंबई और पीओके की तुलना वाले बयान का समर्थन नहीं किया। हालांकि, उन्होंने बांद्रा में कंगना के बंगले को गिराए जाने की घटना को राज्य सरकार का बदला करार दिया था।

भाजपा महासचिव श्रीकांत भरतिया ने कहा, “भाजपा पूरे देश में फैली पार्टी है। हमने सुशांत सिंह राजपूत केस में जो भी स्टैंड लिया है, वह योग्यता पर आधारित है। इसी तरह हमने मुंबई की पीओके से तुलना किए जाने वाले कंगना के बयान का समर्थन नहीं किया। लेकिन जब सरकार ने बदले की भावना से उनका दफ्तर गिराया, तब ही भाजपा ने उसकी हरकत पर सवाल उठाए।”

माना जा रहा है कि भाजपा ने सुशांत केस और रनौत बनाम शिवसेना मामले को उत्तर भारतीयों की पहचान से जोड़ते हुए बिहार चुनाव के लिए भुनाने का मौका बना लिया है। साथ ही पार्टी महाराष्ट्र में गठबंधन के अपने पूर्व साथी शिवसेना की छवि खराब करने की भी पूरी कोशिश कर रही है। महाराष्ट्र के नेता देवेंद्र फडणवीस को बिहार चुनाव में प्रभारी बनाना इसी कड़ी में एक कदम है। भरतिया के मुताबिक, फडणवीस भाजपा के सबसे क्षमतावान नेताओं में हैं। बिहार चुनाव से पहले उन्हें जिम्मेदारी मिलना भाजपा की परंपरा है। इसका यह मतलब नहीं है कि वह बिहार में ही सीमित हो जाएंगे या वे महाराष्ट्र से बाहर हो गए हैं।