बीजेपी सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने एक बड़ा खुलासा करते हुए कहा कि जब जनता पार्टी का विभाजन हुआ था, तब पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी हर हाल में स्वामी की बीजेपी में एंट्री पर रोक लगाना चाहते थे। स्वामी ने ये बातें खुद ट्वीट कर कही है।
सुब्रमण्यम स्वामी ने उन दिनों को याद करते हुए ट्वीट कर कहा- “वाजपेयी को लगा कि नानाजी देशमुख और दत्तोपंत थेंगडी मुझे आगे बढ़ा रहे हैं। हमारा देश नेताओं की असुरक्षा की भारी कीमत चुका रहा है”।
दरअसल 1980 में जब जनता पार्टी टूटी, और भारतीय जनता पार्टी की स्थापना हुई, तब जनसंघ से जुडे़ नेता इसी में शामिल हो गए थे। इसका जनसंघ से जुड़े नेताओं ने ही गठन किया था। स्वामी की पत्नी रॉक्सना स्वामी ने रेडिफ के लिए लिखे अपने एक आर्टिकल में कहा है कि भाजपा का जब गठन हुआ था, वाजपेयी निस्संदेह बीजेपी के निर्विरोध नेता थे। उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि वह भाजपा में स्वामी की उपस्थिति को बर्दाश्त नहीं करेंगे। आरएसएस वाजपेयी के साथ गया, जिसके फलस्वरूप स्वामी भाजपा में नहीं जा सके।
This issue of illustrated Weekly convinced ABV that I should be blocked from entry into BJP, when Janata Party split in 1980. He felt Nanaji and Thengadi were positioning me. Our nation continues to pay dearly for the insecurities of leaders.
— Subramanian Swamy (@Swamy39) October 2, 2021
इसमें यह भी कहा गया है कि संसद के एक साथी सदस्य, श्री यज्ञ दत्त शर्मा को स्वामी को यह बताने के लिए भेजा गया था कि वे स्वामी को अपनी नई पार्टी में नहीं चाहते हैं और अगर वह भाजपा में कोई सद्भावना बनाए रखना चाहते हैं, तो उन्हें एक लंबे ‘वनवास’ के लिए तैयार रहना चाहिए। वही ‘वनवास’ स्वामी के करीबी दोस्तों, कम से कम दो अन्य व्यक्तियों को दिया गया था, जिन्हें वाजपेयी संभावित प्रतिद्वंद्वी मानते थे। एक थे नानाजी देशमुख और दूसरे थे दत्तोपंत ठेंगड़ी।
इन्हीं दोनों के नाम का जिक्र स्वामी ने अपने आज के ट्वीट में भी किया है। भाजपा के गठन के बाद स्वामी जनता पार्टी में ही रहे और उसी के टिकट पर चुनाव भी लड़ते रहे। स्वामी का हिन्दुत्व और आरएसएस से नजदीकी का संबंध बहुत पुराना और जगजाहिर था। यही कारण था कि जैसे ही भाजपा पर पीएम मोदी की पकड़ मजबूत हुई और आरएसएस भी बीजेपी में मजबूत हुआ, तब संघ ने ही स्वामी की एंट्री बीजेपी में कराई।
पहली बार जब पीएम मोदी प्रधानमंत्री बनें तो उम्मीद थी कि स्वामी को कोई बड़ा मंत्रालय मिलेगा, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। स्वामी भाजपा के साथ बने रहे और अपना काम करते रहे। इस दौरान स्वामी सरकार की वित्त नीतियों के लेकर सुझाव भी देते रहे।
हालांकि हाल के कुछ महीनों से ऐसा लगने लगा है कि स्वामी और बीजेपी के बीच सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। स्वामी विदेश नीति से लेकर वित्त नीति तक पर सरकार की अब तीव्र आलोचना कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर बीजेपी युवा मोर्चा के नेशनल सेक्रेटरी तेजिंदर पाल सिंह बग्गा ने स्वामी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। दोनों के बीच जमकर आरोप-प्रत्यारोप चल रहे हैं। स्वामी ने इस मामले को लेकर पार्टी से कार्रवाई की भी मांग की थी, जिसपर अभी तक कोई अधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है।