Bilkis Bano Case Convicts: दो बार के भाजपा सांसद और पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री जसवंतसिंह भाभोर ने अपने विधायक भाई शैलेश भाभोर के साथ गुजरात के चर्चित 2002 बिलकिस बानो रेप मामले में रिहा किए गए दोषियों में से एक शैलेश चिमनलाल भट्ट के साथ मंच साझा किया। दाहोद जिले के करमाड़ी गांव में 25 मार्च को सामूहिक जलापूर्ति योजना से जुड़े कार्यक्रम की तस्वीर सामने आने के बाद गुजरात की राजनीति में सरगर्मी बढ़ गई है। वहीं, जानकारों ने इसके पुराने कनेक्शन की तलाश भी तेज कर दी।
1995 से दाहोद की राजनीति में स्थापित हैं जसवंत सिंह
जसवंतसिंह भाभोर के विधायक भाई शैलेश भाभोर ने हाल ही में गुजरात के आदिवासी जिले दाहोद में अपने महत्वपूर्ण चुनावी रिकॉर्ड के लिए भाजपा में अपनी खास जगह बनाई। वहीं, स्थानीय भाजपा नेताओं ने याद किया कि कैसे प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक के रूप में काम करते हुए जसवंतसिंह को 1995 के विधानसभा चुनावों में रंधिकपुर से लड़ने के लिए पार्टी द्वारा अचानक चुन लिया गया था। एक ऐसी सीट जिसे पार्टी ने कभी नहीं जीता था उस पर जसवंतसिंह ने एक आश्चर्यजनक जीत हासिल की। तब से उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
जनसंघ के दौर से ही शैलेश भट्ट की जसवंतसिंह से नजदीकी
एक स्थानीय भाजपा नेता ने कहा कि जसवंतसिंह के पास फायदे की एक अतिरिक्त वजह है। उन्होंने बताया “ जसवंतसिंह भाभोर का परिवार जनसंघ में मजबूत जड़ों वाला एक परिवार है। उनके पिता सुमनभाई भी एक शिक्षक थे और दाहोद और पंचमहल के आदिवासी क्षेत्रों में जनसंघ के एक सक्रिय नेता थे।” मध्य गुजरात के एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने कहा कि शैलेश भट्ट ने न केवल जसवंतसिंह को तैयार किया, बल्कि राजनीतिक जीवन में प्रवेश करने पर उनकी मदद भी की थी।
सजा नहीं होती तो जसवंतसिंह की जगह होते शैलेश भट्ट
उन्होंने बताया, “एक ही गाँव से होने के कारण, जाहिर तौर पर उनमें निकटता थी। शैलेश भट्ट 2002 से पहले दाहोद में सिंगवाड़ के सरपंच थे और जिले में एक बहुत ही शक्तिशाली भाजपा नेता थे। दरअसल, अगर उसे (बिलकिस मामले में) दोषी नहीं ठहराया गया होता तो वह जसवंत सिंह भाभोर के स्थान पर एक निर्वाचित प्रतिनिधि होता। उसके साथ मंच साझा करने से पहले भी भट्ट के पैरोल के दिनों में जसवंतसिंह सार्वजनिक कार्यक्रमों में उनके साथ रहे हैं।”
भाजपा के लिए काफी महत्वपूर्ण आदिवासी जिला है दाहोद
भाजपा नेता ने कहा, ‘भाजपा के लिए दाहोद एक महत्वपूर्ण आदिवासी जिला है। भाजपा ने हाल ही में वहां आधार बनाया है। वहीं एक प्रभावशाली नेता हैं। इसलिए कोई भी सार्वजनिक रूप से उन्हें डांटेगा नहीं, लेकिन यह भी झूठ है कि पार्टी उन्हें कार्यक्रमों में भट्ट को साथ ले जाने के लिए कह रही है…’ शैले भट्ट के अलावा उनके भाई मितेश भी 2002 के मामले के उन दोषियों में शामिल हैं जो अब अपनी सजा में छूट के बाद अब बाहर हैं। सूची में रमेश चंदना भी शामिल हैं, जो तब जसवंतसिंह के सहायक के रूप में काम करते थे।
मुस्लिम समुदाय के लोगों ने दी कैसी प्रतिक्रिया
रंधिकपुर में मुस्लिम समुदाय के सदस्यों का कहना है कि वे अपने स्थानीय विधायक और सांसद द्वारा भट्ट के साथ मंच साझा करने से हैरान होने से ज्यादा आहत हैं। 2002 के मामले में रंधिकपुर के एक गवाह ने कहा, “यह पहली बार नहीं है जब हम भट्ट को जसवंतसिंह के साथ देख रहे हैं… यहां तक कि 2015 और 2017 के बीच जब भट्ट कई बार पैरोल पर थे तब उन्होंने भाजपा के सार्वजनिक कार्यक्रमों में भाग लिया और मंच पर जसवंतसिंह के बगल में देखे गए। हमने पुलिस अधिकारियों और गृह विभाग को पत्रों में इसकी ओर इशारा किया, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई।”
इस बार शैलेश भट्ट की मौजूदगी में नया क्या था
गवाह कहते हैं कि इस बार नया क्या था। इस बार नया यह है कि जिस कार्यक्रम में भट्ट शामिल हुए वह एक सरकारी विभाग द्वारा आयोजित किया गया समारोह था। 25 मार्च के कार्यक्रम ने दाहोद जिले के करमाडी गांव में गुजरात जल आपूर्ति और सीवरेज बोर्ड (GWSSB) परियोजना के ग्राउंड ब्रेकिंग समारोह की तस्वीरें दाहोद सूचना विभाग द्वारा मीडियाकर्मियों को भेजी गईं। भट्ट की उपस्थिति पर विवाद के बाद अधिकारियों ने आमंत्रितों की सूची से खुद को दूर कर लिया। जसवंतसिंह टिप्पणी के लिए उपलब्ध नहीं थे। वहीं, शैलेश ने कहा कि वह “बहुत व्यस्त” थे। इसलिए यह नोटिस करने के लिए कि मंच पर और कौन था, उनके पास समय नहीं था। शैलेश भट्ट ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि वह वहां “एक सार्वजनिक कार्यक्रम” में शामिल हुए थे।
BJP नेताओं के साथ Bilkis Bano के 11 दोषियों की रिहाई को तीन कसौटियों पर परखेगा Supreme Court | Video
बढ़ता गया जसवंत सिंह भाभोर का राजनीतिक कद
1995 में अपनी पहली चुनावी जीत के बाद जसवंतसिंह ने 2012 में सीट भंग होने तक रंधिकपुर पर कब्जा कायम रखा था। उस वर्ष के चुनाव में लिमखेड़ा विधानसभा क्षेत्र बन गया। 56 वर्षीय जसवंतसिंह भाभोर फिर से जीत गए थे। 2014 में पार्टी ने दाहोद लोकसभा सीट के लिए जसवंतसिंह को चुना और उन्होंने इसे भी जीता। 2019 में भी उन्होंने यही दोहराया। जुलाई 2016 और मई 2019 के बीच जसवंतसिंह ने जनजातीय मामलों के लिए केंद्रीय राज्य मंत्री (MoS) के रूप में कार्य किया।
दाहोद में भाभोर परिवार में ही रही लिमखेड़ा विधानसभा सीट
इसके पहले जसवंतसिंह भाभोर ने 1998 और 1999 के बीच राज्य आदिवासी विकास निगम के अध्यक्ष और तीन अवसरों पर गुजरात विधान सभा की अनुसूचित जनजातियों की समिति के अध्यक्ष के पद भी संभाले। इस बीच जसवंतसिंह द्वारा खाली की गई लिमखेड़ा विधानसभा सीट के लिए 2014 में हुए उपचुनाव के लिए परिवार के बाहर से किसी को चुनने के बाद भाजपा भाभोरों में लौट आई। 2017 और 2022 के विधानसभा चुनाव में जसवंतसिंह के छोटे भाई 43 वर्षीय शैलेश भाभोर इस सीट से विधायक चुने गए थे।
क्या है बिलकिस बानो रेप केस के दोषियों की रिहाई का मामला
दूसरी ओर, बिलकिस बानो के शौहर याकूब रसूल ने कहा कि वह हैरान नहीं हैं। उन्होंने कहा कि इससे पहले भी इन दोषियों को रिहा किए जाने पर जेल के बाहर सम्मानित किया गया था। हमें सिर्फ सुप्रीम कोर्ट से ही उम्मीद है। बिलकिस बानो गैंगरेप के दोषियों को रिहा करने के गुजरात सरकार के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। गुजरात सरकार ने पिछले साल 15 अगस्त यानी स्वतंत्रता दिवस पर बिलकिस बानो गैंगरेप केस के 11 दोषियों को समय से पहले रिहा कर दिया था। विपक्षी दलों और कुछ गैर सरकारी संगठनों (NGOs) की ओर से राज्य सरकार के इस फैसले का विरोध भी हुआ।