बिहार में सरकार बदल चुकी है लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही हैं। बिहार में अब आरजेडी-जेडीयू गठबंधन की सरकार है। नीतीश कुमार नालंदा जिले के कल्याण बिगहा गांव के रहने वाले हैं और वहीं उनका पुश्तैनी घर है। नीतीश कुमार के घर तक जाने वाली कंक्रीट गली पर एक बोर्ड लगा है जिसमें लिखा है, “कल्याण बिगहा के लाल, आपने कर दिया कमाल। आप ही विकास पुरुष, आप ही नीतीश कुमार।”

वहीं नीतीश कुमार के गांव के लोग उनको लेकर अलग-अलग मत रखते हैं। हालांकि गांव के लोगों में उनके मुख्यमंत्री बने रहने को लेकर एक गर्व महसूस होता है। 60 वर्षीय सुवेंद्र सिंह कुर्मी समुदाय के किसान हैं, जो नीतीश कुमार भी हैं। उन्होंने कहा, “नीतीश जी जो कुछ भी करते हैं, उस पर हमें भरोसा है। ऐसा ही कुछ महाराष्ट्र में भी हुआ। यहाँ क्या गलत है?” सुवेंद्र महाराष्ट्र में शिवसेना के अधिकांश विधायकों के भाजपा के साथ चले जाने की बात कर रहे थे।

एक अन्य कुर्मी किसान 50 वर्षीय बृजेश कुमार ने कहा, “नीतीश-जी एक थाली का बैगन (चंचल दिमाग) बन गए हैं। उस पर भरोसा करना मुश्किल होता जा रहा है। ऐसा लगता है बाराती कोई भी हो, दुल्हा एक ही रहेगा। मुझे नहीं लगता कि यह गठबंधन लंबे समय तक चलेगा।” एससी की उप-जाति डोम समुदाय से आने वाले 27 वर्षीय राजा मलिक ने कहा, “इस गांव में और यहां तक ​​कि इस क्षेत्र में हर कोई नीतीश कुमार का समर्थन करता है। लेकिन लोगों को लगता है कि उन्हें बीजेपी से गठबंधन नहीं तोड़ना चाहिए था।” इस बात पर उनके आस-पास के लगभग सभी लोगों ने सहमति में सिर हिलाया।

राजद के साथ नीतीश कुमार के गठबंधन के साथ बेचैनी का एक हिस्सा इस डर से उपजा है कि यादव, एक प्रमुख ओबीसी जाति, अब खुद को और अधिक आक्रामक रूप से पेश करना शुरू कर सकती है।

कल्याण बिगहा से कुछ किलोमीटर दूर हरनौत बाजार में एक मोटरबाइक मैकेनिक धर्मवीर पासवान ने कहा, “मेरे यादव दोस्तों में से एक, जिसने कार ऋण लिया है और अब वसूली एजेंटों द्वारा परेशान किया जा रहा है, कल मुस्करा रहा था। उन्होंने कहा कि अगर एजेंट अब उनसे संपर्क करते हैं, तो वह अपनी कार चढ़ा देगा। वह ऐसा नहीं कर सकते हैं। लेकिन अगर राजद (सत्तारूढ़) गठबंधन का हिस्सा नहीं होता, तो उन्हें इस दण्ड से मुक्ति की भावना महसूस नहीं होती।”

बख्तियारपुर के पास खारुआरा गांव के लड्डू सिंह ने भी यादव वाली बात को “चुनौती” के रूप में स्वीकार किया। कुर्मी जाति से ताल्लुक रखने वाले लड्डू सिंह ने कहा, “अगर कोई पेड़ फलों से लदा है, तो उसे लचीला रहना चाहिए। नहीं तो हवा के पहले झोंके से ही टूट जाएगा। ऐसे में चुनौती होगी यादवों पर काबू पाने की। मैं अपने गाँव के कुछ यादवों से कह रहा था कि ऊँची उड़ान न शुरू करो, नहीं तो यह प्रयोग भी विफल हो जाएगा।”

दो साल पहले महागठबंधन के शासन की याद दिलाते हुए धर्मवीर पासवान ने कहा, “नीतीश जी तब बराबर के भागीदार थे। वह अब जूनियर (पार्टनर) हैं।” पासवान के पड़ोसी बसंत प्रसाद यादव ने कहा, “नीतीश कुमार खत्म हो गए हैं। ‘पलटू राम’ से वह ‘भटकू राम’ बन गए हैं। उन्हें डिप्टी सीएम बनना चाहिए था और तेजस्वी यादव को सीएम बनने देना चाहिए था।आपको अपनी ताकत को जानना चाहिए और उसी के अनुसार एक पद की मांग करनी चाहिए। उन्हें पिछले गठबंधन (भाजपा के साथ) में भी डिप्टी सीएम होना चाहिए था।

75 वर्षीय रामस्नेही सिंह ने कहा, “नीतीश भले ही पीएम बनना चाहते हों, लेकिन वह पीएम मैटेरियल नहीं हैं। वह कभी नहीं बनेंगे। नरेंद्र मोदी को देखो, दुनिया के नेता उनसे मिलने आते हैं, उन्हें बहुत सम्मान देते हैं। क्या नीतीश के पास वह कद है? अगर वह इतने लोकप्रिय होते तो उन्हें गठबंधन की जरूरत नहीं पड़ती।”

खरुआरा के लड्डू सिंह विपक्ष की ताकत बढ़ने से उत्साहित हैं, लेकिन अपनी संभावनाओं को लेकर आश्वस्त नहीं हैं। उन्होंने कहा, “हर किसी की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएं होती हैं। वह 15 साल से सीएम हैं, अब वह कुछ बड़ा करने की कोशिश करना चाहते हैं। यह अच्छा है, वह जीतेंगे या नहीं, हम नहीं जानते। लेकिन अगर उन्होंने चुनौती भी नहीं दी तो जाहिर तौर पर मोदी की हार नहीं होगी।”