Bihar Politics: बिहार विधानसभा चुनाव इसी साल की आखिरी तिमाही में होने हैं। चुनाव से पहले हाल ही में जिस तरह से हत्या और अलग-अलग तरीके के अपराध के मामले में बढ़े हैं, उसके चलते राजनीतिक विवाद बढ़ गया है। वहीं कानून व्यवस्था को लेकर सभी के निशाने पर सीएम नीतीश कुमार हैं। सबसे ताज़ा घटना गुरुवार को हुई जब पांच बंदूकधारियों ने पैरोल पर छूटे एक कुख्यात अपराधी की पटना के एक निजी अस्पताल में गोली मारकर हत्या कर दी।
विपक्ष लंबे समय से नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार पर हमला बोल रहा है। राजद नेता तेजस्वी यादव ने दावा किया है कि एक “अचेत मुख्यमंत्री” के नेतृत्व में बिहार “अराजकता” में डूब गया है। दिलचस्प बात यह भी है कि लोकजनशक्ति पार्टी रामविलास के प्रमुख और एनडीए के साथी चिराग पासवान ने भी कानून व्यवस्था पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि हालिया हत्याएं बिहार में कानून-व्यवस्था के पूरी तरह से ध्वस्त होने को दर्शाती हैं।
आंकड़ों में बढ़ता अपराध बना नीतीश की चुनौती
राज्य के सीएम नीतीश कुमार को बिहार में जंगल राज के खात्मे का क्रेडिट दिया जाता है, लेकिन पिछले एक दशक में उनके शासन काल में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो एनसीआरबी और बिहार पुलिस के आंकड़े बता रहे हैं कि राज्य में अपराध काफी तेजी से बढ़ा है जो कि नीतीश कुमार की सुशासन बाबू वाली छवि के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण है।
पिछले दस साल में खूब बढ़ा अपराध
राज्य अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो यानी SCRB के आंकड़ों के अनुसार, 2015 से 2024 तक बिहार में कुल अपराधों की संख्या में 80.2% की वृद्धि हुई है। इसके विपरीत, नवीनतम उपलब्ध राष्ट्रीय स्तर के आंकड़ों के अनुसार, 2015 से 2022 तक भारत में कुल अपराधों में 23.7% की वृद्धि देखी गई है। 2015 से बिहार में अपराधों की संख्या हर साल बढ़ी है। कोरोना काल के दौरान 2020 और 2024 को छोड़कर हर साल अपराध बढ़ा ही है। साल-दर-साल सबसे ज़्यादा वृद्धि 2017 में दर्ज की गई थी, जब अपराध में 24.4% की वृद्धि हुई थी।
2022 में बिहार में 3.5 लाख अपराध हुए, जो पिछले वर्ष की तुलना में 23.3% अधिक है। इसके विपरीत, राष्ट्रीय स्तर पर अपराध में गिरावट आई है 2022 में 4.5% और 2021 में 7.7% रहा। एससीआरबी के नवीनतम आंकड़ों से पता चलता है कि 2023 में अपराधों की संख्या बढ़कर 3.54 लाख हो गई, जो 2024 में मामूली रूप से घटकर 3.52 लाख रह गई। जून 2025 तक बिहार में 1.91 लाख अपराध हुए हैं, जो 2024 में दर्ज किए गए आधे से भी ज़्यादा हैं।
10 सबसे ज्यादा खराब राज्यों में शामिल बिहार
2015 से बिहार कुल अपराध मामलों के मामले में 10 सबसे खराब राज्यों में से एक रहा है। हालांकि, जनसंख्या के हिसाब से समायोजित बिहार में प्रति लाख लोगों पर अपराध की दर राष्ट्रीय औसत से काफी कम रही है। 2022 में बिहार में प्रति लाख जनसंख्या पर 277 मामलों की दर से अपराध की सातवीं सबसे अधिक संख्या दर्ज की गई। हालांकि, भारत में प्रति लाख जनसंख्या पर 422 मामलों की कुल अपराध दर दर्ज की गई। वास्तव में 2015 के बाद, दिल्ली में पांच वर्षों तक सबसे अधिक अपराध दर दर्ज की गई जबकि केरल तीन वर्षों तक सबसे खराब स्थिति में रहा। हालांकि, यह मामलों के पंजीकरण का भी एक कारक है जो दिल्ली और केरल में निवासियों की आर्थिक और शैक्षिक स्थिति के कारण अधिक हो सकता है।
हत्या के मामलों में कैसा रहा ग्राफ?
ध्यान देने वाली बात यह भी है कि 2015 के बाद से बिहार की समग्र अपराध दर किसी भी वर्ष राष्ट्रीय औसत से अधिक नहीं रही है। एनसीआरबी के आँकड़े दर्शाते हैं कि बिहार की कानून-व्यवस्था की समस्याएं राष्ट्रीय औसत से लगातार अधिक हिंसक अपराधों के कारण उत्पन्न होती हैं। उदाहरण के तौर पर हत्या को देखें तो कुल हत्या के मामले 2015 में 3,178 से घटकर 2022 में 2,930 हो गए हैं, फिर भी 2015 से हर साल होने वाली हत्याओं की संख्या के मामले में बिहार देश में दूसरे स्थान पर है और केवल अधिक आबादी वाले उत्तर प्रदेश से पीछे है। बिहार में हत्या के प्रयास की संख्या 2015 में 5,981 से बढ़कर 2022 में 8,667 हो गई है, जिससे यह राज्य उत्तर प्रदेश के बाद दूसरे स्थान पर है।
द इंडियन एक्सप्रेस द्वारा प्राप्त नवीनतम एससीआरबी आंकड़ों के अनुसार बिहार में जून 2025 तक 1,379 हत्याएं दर्ज की गईं जबकि 2024 में कुल 2,786 और 2023 में 2,863 हत्याए दर्ज की गईं। उदाहरण के लिए, जनसंख्या के हिसाब से समायोजित 2022 में बिहार में प्रति लाख जनसंख्या पर 2.3 हत्याएं और 6.9 हत्या के प्रयास दर्ज किए गए। ये राष्ट्रीय औसत क्रमशः 2.1 और 4.1 से अधिक है। पिछले एक दशक में जहाँ 2015 में बिहार की हत्या दर 3.1 के उच्चतम स्तर पर पहुँच गई थी, वहीं 2017 में हत्या के प्रयास की दर 9.1 के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई।
प्रापर्टी से लेकर बदले की भावना से बढ़े हत्या के मामले
अपनी बड़ी आबादी के कारण बिहार में हत्या और हत्या के प्रयास की दर इसे मध्यम श्रेणी का राज्य बनाती है। यह केवल 2017 में हत्या के मामले में शीर्ष 10 राज्यों में शामिल था और 2022 में हत्या की दर के मामले में 12वें स्थान पर था। हालांकि, 2015 से 2022 तक हर साल हत्या के प्रयासों की दर के मामले में राज्य शीर्ष पांच में रहा है, जो एक सतत समस्या का संकेत देता है। 2017 में बिहार में हत्या के प्रयासों की दर दूसरी सबसे ज्यादा थी।
बिहार में हत्या का सबसे आम कारण लगातार संपत्ति विवाद रहा है, जो 2015 से 2022 तक एक वर्ष को छोड़कर, अन्य सभी वर्षों में सबसे अहम कारण बना था। 2018 में, संपत्ति विवादों से जुड़ी 1,016 हत्याएं हुईं, जो इस पूरे कालखंड में सबसे ज्यादा थी। सभी हत्याओं में संपत्ति से जुड़े मामलों की संख्या 2017 में 36.7% के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई। 2022 में, व्यक्तिगत प्रतिशोध हत्या का सबसे आम कारण था, जिसके 804 मामले थे, जो कुल हत्याओं का 27.4% था।
आर्म्स एक्ट के ज्यादा मामले
बिहार में 2015 से 2022 तक हर साल संपत्ति विवाद से जुड़ी हत्याओं की सबसे ज़्यादा घटनाएं हुईं। 2018 से 2022 तक यह इस मामले में पहले स्थान पर रहा है। बिहार पुलिस द्वारा साझा किए गए आंकड़ों से पता चला है कि 2025 में सबसे बड़ा कारण व्यक्तिगत प्रतिशोध था, जिसमें 513 मामले थे जो कुल हत्याओं का 37.8% था। संपत्ति विवाद, 139 मामलों के साथ, 10.2% हत्याओं के लिए ज़िम्मेदार थे।
बिहार में हत्या की बढ़ती घटनाओं के पीछे आर्म एक्ट, 1959 का उल्लंघन है। बिहार पुलिस ने इस साल की शुरुआत में प्रकाशित एक रिपोर्ट में पिछले एक दशक में बढ़ते हिंसक अपराधों के पीछे फर्जी शस्त्र लाइसेंस, अवैध आग्नेयास्त्रों और गोला-बारूद की अनधिकृत बिक्री को प्रमुख कारण बताया है। 2015 से 2022 तक शस्त्र अधिनियम के उल्लंघनों की संख्या 1,846 से बढ़कर 3,549 हो गई।
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