Bihar Assembly Elections 2025: बिहार में विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुटे दल हर तरह के हथकंडे अपनाने में लगे हैं। इसमें खास ये है कि संख्या बल में अधिक गैर सवर्ण बिरादरी के मतदाताओं पर सबका ध्यान है। हर दल लगभग 84% वाले गैर अगड़ी जाति के मतदाताओं को लुभाने की कोशिश में हैं। करीब 16% वाले सवर्ण मतदाताओं को सियासी अभियान में शामिल नहीं करना राजनीतिक दलों की मजबूरी जैसा प्रतीत हो रहा है। डर है कि सवर्णों को साथ जोड़ने से अन्य बिरादरी के मतदाता छिटक न जाएं।
सबसे पहले बात केंद्र और बिहार में NDA की। बिहार में राजग में भाजपा, जदयू, लोजपा (रा), रालोमो और हम पार्टी हैं। सरकार की कमान जदयू के प्रमुख नीतीश कुमार के हाथों में है। NDA के घटक दलों में यदि भाजपा को छोड़ दें तो जदयू, लोजपा (रा), रालोमो और हम पार्टी का आधार वोट ही गैर सवर्ण है। हालांकि दिखावे के तौर पर इन दलों ने सवर्ण चेहरों को आगे कर रखा है।
उदाहरण के तौर पर कुर्मी-कोइरी आधार मतों वाली पार्टी के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा हैं। दलितों के मतों पर राजनीति करने वाली लोजपा (रा) के बिहार प्रदेश अध्यक्ष राजू तिवारी हैं। इसी तरह रालोमो और हम पार्टी की कार्यसमिति में सवर्णों की अच्छी संख्या है।
गैर अगड़ी जाति के मतदाताओं को लुभाने पर क्या कहते हैंं NDA के दल?
दिलचस्प ये कि अधिक संख्या वाले गैर अगड़ी मतदाताओं को लुभाने के लिए इन दलों द्वारा लगातार अभियान चलाया जा रहा है। हालांकि जदयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजीव रंजन प्रसाद अगड़ी जाति को अनदेखी करने की बात को यह कहते हुए खारिज करते हैं कि बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने देश में पहली बार उच्च जाति के लोगों के विकास के लिए आयोग का गठन किया था।
उन्होंने कहा कि सरकार सबको साथ लेकर चल रही है। प्रसाद का मानना है कि जदयू में हर जाति-धर्म के लोगों की बराबर की हिस्सेदारी है। उन्होंने कहा कि राजग के अन्य घटक दलों भाजपा, लोजपा (रा), रालोमो व हम पार्टी में भी हर जाति-बिरादरी के लोगों को बराबर का महत्त्व दिया जा रहा है।
भाजपा के बिहार प्रदेश प्रवक्ता मनोज शर्मा ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समाज को सिर्फ चार वर्गों में विभक्त किया है- किसान, नारी, युवा और गरीब। भाजपा की अवधारणा सिर्फ यही है। भाजपा सर्वजन की पार्टी है। सबको साथ लेकर चलती है।
इंडिया गठबंधन का ध्यान गैर सवर्णों पर
अब बात करते हैं इंडिया गठबंधन की। बिहार में इंडिया गठबंधन में राजद, कांग्रेस, भाकपा, माकपा, भाकपा (माले) और वीआइपी हैं। यहां भी कमोबेश NDA वाली स्थिति ही है। राजद ने बिहार में हाल ही में अति पिछड़ी जाति के बुजुर्ग नेता मंगनीलाल मंडल को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। बिहार में कांग्रेस की कमान भी दलित नेता व विधायक राजेश कुमार राम के हाथों में है। वाम दलों के बारे में सबको पता है कि उनका ध्यान गैर सवर्णों पर ही ज्यादा रहता है। मुकेश सहनी वाली वीआइपी भी पूरी तरह से गैर अगड़ी की ही राजनीति करती है।
इंडिया गठबंधन के घटक दलों के नेता लगातार बिहार में चुनावी अभियान को अंजाम दे रहे हैं। इस अभियान को यदि आप बारीकी से देखेंगे तो इसमें गैर अगड़ी जाति की प्रमुखता की झलक दिख जाएगी। नब्बे के दशक के बाद बिहार में लालू प्रसाद के सामाजिक न्याय क्रांति के प्रादुर्भाव का असर तो हुआ है, लेकिन अब भी राज्य की सामाजिक संरचना वैसी नहीं है कि सवर्णों को नजरअंदाज किया जा सके। राज्य के अधिकांश इलाकों में यह देखने को मिलता है कि जिधर अगड़ी जाति के लोग जाते हैं, उनके पीछे ही अन्य बिरादरी के लोग चलते हैं।
इंडिया गठबंधन में अगड़ी जाति की कथित उपेक्षा की बात पर राजद के राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रोफेसर नवल किशोर कहते हैं कि पार्टी प्रमुख लालू प्रसाद सामाजिक न्याय के पुरोधा हैं, इसमें कोई शक नहीं। पर, इसका मतलब यही नहीं अन्य वर्ग की उपेक्षा हो। उन्होंने कहा कि इंडिया गठबंधन के सभी घटक दलों में हर जाति-बिरादरी के लोगों की पर्याप्त संख्या है। किसी को यह शिकायत का मौका नहीं है कि उसकी जाति के लोगों की संख्या कम है। उन्होंने कहा कि राजद और इंडिया गठबंधन की रीति-नीति सबको साथ लेकर चलने की रही है। गठबंधन उसी पर कायम है।
वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के बिहार प्रदेश अध्यक्ष राजेश कुमार राम ने कहा कि इतिहास गवाह है कि कांग्रेस ने हमेशा से सबके लिए काम किया है। कांग्रेस की राजनीति में भेदभाव जैसा कोई शब्द ही नहीं है। पार्टी के नेता, कार्यकर्ता और पदाधिकारी जात-पात की बात नहीं करते। कांग्रेस का तो पुराना नारा रहा है-‘जात पर न पात पर, मुहर लगेगा हाथ पर।’ राजेश राम ने कहा कि बिहार में पार्टी के कार्यकर्ता सभी को साथ लेकर चल रहे हैं और सबको बराबर की जिम्मेदारी दी जा रही है। कांग्रेस से किसी भी जाति-बिरादरी के लोगों की शिकायत नहीं है।
बिहार में अगड़ी जाति की तादाद 16%
बिहार में अगड़ी जाति की तादाद लगभग 16% है। इनमें भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण और कायस्थ शामिल हैं। हालांकि पिछड़े-अति पिछड़े और दलित वोट बैंक की तुलना में बिहार में अगड़ी जाति की संख्या काफी कम है लेकिन समाज में इनका दबदबा है, जिस वजह से राजनीतिक तौर पर सवर्ण बेहद प्रभावशाली वोट बैंक है।
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