Bihar Political Crisis: तीन दशक से अधिक वक्त से बिहार की राजनीति नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव के इर्द-गिर्द घूमती रही है। 1974 के बिहार छात्र आंदोलन के दौरान इन दोनों नेताओं की राजनीति में एंट्री हुई।

आरजेडी चीफ लालू प्रसाद यादव 1977 संसद सदस्य बन गए थे, लेकिन नीतीश कुमार को विधानसभा पहुंचने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ा था। नीतीश 1985 में पहली बार विधायक बने थे। लेकिन, बिहार की राजनीति में नीतीश की पकड़ मजबूत रही।

माना ऐसा भी जाता है कि 1990 में लालू प्रसाद यादव जब पहली बार मुख्यमंत्री बने थे। उस दौरान नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद यादव को मुख्यमंत्री बनाने में मदद की थी। हालांकि, इसके बाद दोनों नेताओं के रिश्ते बनते-बिगड़ते रहे हैं। कई मौके ऐसे भी आए जब दोनों नेता एक-दूसरे का अपना भाई भी बता चुके हैं।

साल 1990 में राम सुंदर दास को पछाड़कर लालू प्रसाद यादव बिहार के पहली बार मुख्यमंत्री बने थे। कहा जाता है कि लालू की इस कामयाबी के पीछे नीतीश कुमार का हाथ था। हालांकि, बाद के दिनों में नीतीश-लालू के रिश्ते में तल्खी आती चली गई।

नीतीश ने लालू पर उपेक्षा का आरोप लगाया। इसके बाद साल 1994 में नीतीश ने पटना के गांधी मैदान में ‘कुर्मी अधिकार रैली’ का आयोजन किया। इसके कुछ दिन बाद वो तत्कालीन जनता दल से अलग हो गए।

साल 1994 में ही नीतीश ने समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडीस, ललन सिंह के साथ मिलकर समता पार्टी का गठन किया। 1995 के चुनाव में उन्होंने वामदलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ा, लेकिन उन्हें कोई खास सफलता नहीं मिली। इसके बाद नीतीश ने सीपीआई से गठबंधन तोड़ दिया और एनडीए का हिस्सा बन गए।

लोकसभा चुनाव 1996 से कुछ वक्त पहले नीतीश कुमार एनडीए का हिस्सा बन गए। बीजेपी के साथ उनका यह राजनीतिक संबंध 2010 के बिहार विधानसभा चुनाव तक चलता रहा। एनडीए को इस चुनाव में बड़ी जीत हासिल हुई।

इसी दौरान राजनीतिक घटनाक्रम तेजी से बदल रहा था। यह बात साल 2012 की जब बीजेपी में नरेंद्र मोदी का कद बढ़ने लगा था। मोदी के बढ़ते हुए कद को देखकर नीतीश कुमार एनडीए के अंदर असहज महसूस करने लगे। यही वजह रही कि 2014 के लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार ने अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया।

इस लोकसभा चुनाव का यह परिणाम हुआ कि नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। क्योंकि जेडीयू को केवल दो सीट ही हासिल हुई थी। इसके बाद नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद यादव के साथ मिलकर महागठबंधन बनाया और 2015 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले मुख्यमंत्री बने। विधानसभा चुनाव में इस गठबंधन को बड़ी जीत हासिल हुई।

करीब ढाई साल बाद 2017 में नीतीश कुमार ने फिर से चौंकाया। कुमार को महागठबंधन में ही खामी दिखने लगी। डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव का IRCTC घोटाले में नाम आया। इस घटना के बाद नीतीश कुमार ‘अंतरआत्मा’ की आवाज सुनते हुए महागठबंधन समाप्त कर दिया और मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। सीएम पद छोड़ने के तुरंत बाद वो भाजपा में शामिल हो गए। साथ ही गठबंधन करके सरकार बना ली।

इसके बाद 2020 में बिहार में विधानसभा चुनाव हुए। नीतीश कुमार ने भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और जीत भी हासिल की। इस चुनाव में नीतीश की पार्टी जेडीयू को सिर्फ 43 सीटें हासिल हुईं। भाजपा को 74 और आरजेडी को 75 सीटें हासिल हुईं, लेकिन इन सबके बावजूद मुख्यमंत्री के सिंहासन पर नीतीश कुमार ही विराजमान हुए।

इसके दो साल बाद 2022 में नीतीश कुमार ने एक बार फिर पलटी मारी। नीतीश को अब बीजेपी से दिक्कत होने लगी थी। नीतीश कुमार ने कई कारण बताते हुए मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया साथ ही भाजपा से अपना रिश्ता खत्म कर लिया। इसके साथ नीतीश कुमार ने आरजेडी, कांग्रेस और लेफ्ट के साथ मिलकर सरकार बना ली और राज्य का डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव को बनाया।