बिहार में कोरोनावायरस संक्रमण की जांच के लिए ब्लैकलिस्टेड कंपनी को ठेका दिए जाने के मामले पर सीएम नीतीश कुमार की सरकार घिरती नजर आ रही है। दरअसल, कंपनी को आरटीपीसीआर टेस्ट्स करने के लिए सरकार की तरफ से 29 करोड़ रुपए में ठेका मिला है। इसके बावजूद मोबाइल वैन्स के जरिए टेस्टिंग न बढ़ा पाने के कारण कंपनी पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं। अब सामने आया है कि टेस्ट्स का टारगेट पूरा करने के लिए सरकार अपने ही कर्मचारियों की जबरन जांच करा रही है।

बताया गया है कि कंपनी का टारगेट पूरा कराने के लिए सरकार भी मदद कर रही है। भागलपुर समेत कई जिलों में तो स्वास्थ्य विभाग इकट्ठा किए हुए सैंपल्स को कंपनी की मोबाइल वैन्स को सौंप रहा है, ताकि उनका प्रतिदिन का 900 से 1000 टेस्ट्स का लक्ष्य पूरा हो सके। इतना ही नहीं पटना में तो सरकारी अफसर अपने विभाग के कर्मचारियों के लिए मोबाइल वैन्स से टेस्टिंग कराने के आदेश निकाल रहे हैं।

दैनिक भास्कर की खबर के मुताबिक, बिक्रम के बीईओ ने एक चिट्ठी जारी कर कहा कि वे सभी मातहतों (हेडमास्टर, शिक्षा सेवक, टीचर्स, तालिमी मरकज और रसोइयों) के लिए आरटीपीसीआर की जांच तय कराएंगे। बताया गया है कि इसके लिए उन्हें पहले ही पीएचसी बिक्रम के चिकित्सा पदाधिकारी से टेस्टिंग वैन प्राखंड में पहुंचने की जानकारी मिल चुकी थी। इसमें कहा गया था कि 900 जांच करने का जो टारगेट दिया गया है, उसे पूरा करने के लिए सभी शिक्षकों और अन्य कर्मियों का सहयोग अपेक्षित है।

चिकित्सा अधिकारी की तरफ से बीईओ को दी गई चिट्ठी के बाद शिक्षकों के लिए जांच अनिवार्य कर दी गई। जानकारी के मुताबिक, इस आदेश के बाद शिक्षक और स्कूलों में काम करने वाले स्टाफ सदस्य भी भारी संख्या में जांच कराने पहुंचे। हालांकि, इस पूरे मामले में पटना डीएम का भी बयान आया है। उन्होंने कहा कि जबरन कोरोना जांच कराना पूरी तरह गलत है। इस संबंध में जिला प्रशासन की ओर से कोई आदेश जारी नहीं किया गया है। यह लोगों के स्वेच्छा पर निर्भर है कि वे जांच कराएंगे या नहीं। लोगों को जागरूक कर टीकाकरण बढ़ाने के लिए निर्देश दिया गया है न कि आरटी-पीसीआर के लिए।