राजस्थान में बदलाव का ट्रेंड इस बार भी बरकरार रहा, लेकिन छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के नतीजे पूरी तरह भाजपा को चौंकाने वाले हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ का नारा पूरी तरह उल्टा पड़ गया। विश्लेषकों का कहना है कि जनता की नाराजगी को भांपने में पार्टी पूरी तरह विफल रही। लोग सरकार से नाराज थे। ऐसे में उन्होंने भाजपा को वोट देने की जगह किसी दूसरे विकल्प को चुनना ज्यादा बेहतर समझा। इन तीनों राज्यों में हर बार अन्य दलों को 4-5 सीटें मिलती हैं, लेकिन इस बार आंकड़ा 15 तक पहुंच गया।

जोगी-बसपा गठबंधन ने भाजपा के वोट काटे
छत्तीसगढ़ में चुनाव से पहले माना जा रहा था कि जोगी और बसपा का गठबंधन कांग्रेस के परंपरागत वोट काटेगा। हालांकि, ऐसा नहीं हुआ। भाजपा ने इस गठबंधन को हल्के में लेने की भूल की, जो उन्हें भारी पड़ गया। लोग सरकार से काफी ज्यादा नाराज थे। इसी वजह से छत्तीसगढ़ में जोगी-बसपा, मध्यप्रदेश में बीएसपी और राजस्थान में अन्य को वोट दे दिया, लेकिन भाजपा को नहीं। बीजेपी को लगा था कि छत्तीसगढ़ में बना थर्ड फ्रंट कांग्रेस का वोट काटेगा लेकिन वोट कट गया बीजेपी का।

इन मुद्दों ने भाजपा को मध्यप्रदेश में दी मात
मध्यप्रदेश में भाजपा को सबसे ज्यादा धक्का मालवा-निमाड़ में लगा। यहां किसानों का असंतोष और ग्वालियर-चंबल में एट्रोसिटी एक्ट ने पार्टी के जनाधार को खत्म कर दिया। इसके अलावा आदिवासी क्षेत्र की कई सीटें भी चली गईं, जिन्हें संघ ने कई वर्षों की मेहनत से तपाया था। किसान, दलित-सवर्ण मुद्दे समेत अन्य समस्याओं का समाधान न होने का फायदा कांग्रेस को मिला। ग्वालियर-चंबल ने भाजपा को तगड़ा झटका दिया। यहां की 27 सीटों में से 21 कांग्रेस के खाते में गईं। वहीं, दलित आंदोलन ने भाजपा को ऐसा झुलसाया कि भिंड व मुरैना में इतिहास में पहली बार भाजपा एक भी सीट नहीं जीत पाई।

 

राजस्थान में हार के ये कारण
राजस्थान में भाजपा की हार की सबसे वजह वसुंधरा राजे खुद हैं। उन्होंने पांच साल तक ‘महारानी स्टाइल’ में सरकार चलाई। तमाम ऐसे मौकों पर जब मुख्यमंत्री को लोगों के बीच जाना चाहिए, वे मंत्री और विधायकों को भेज देती थीं। बताया जाता है कि 2013 में चुनाव जीतने के बाद से वसुंधरा पार्टी के कार्यकर्ताओं से भी कट गईं। इसके अलावा ‘बागियों’ की नाराजगी भी बीजेपी को भारी पड़ी। चुनाव से ठीक पहले वसुंधरा ने अपने कैबिनेट के चार मंत्रियों सहित 11 वरिष्ठ नेताओं को निलंबित कर दिया था। वहीं, राजस्थान में मॉब लिंचिंग की घटनाओं ने कानून व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े किए। इससे सरकार की साख पर काफी बुरा असर पड़ा। साथ ही, राजस्थान के जातीय समीकरण को सुलझाने में भाजपा पूरी तरह नाकाम रही। मानवेन्द्र सिंह के कांग्रेस में जाने से बीजेपी से राजपूत वोट छिटका। वहीं, करणी सेना की नाराजगी का भी असर दिखा। सचिन पायलट की वजह से गुर्जर समुदाय का वोट भी कांग्रेस के पाले में चला गया।