असम विधानसभा के चुनाव मार्च और अप्रैल में होने जा रहे हैं। इस बार एक ओर सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाला मोर्चा है। उसे कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व वाला गठबंधन चुनौती दे रहा है। तीसरी ताकत के तौर रायजोर दल (आरडी) और असम जातीय परिषद (एजेपी) का गठबंधन मैदान में है। ये दोनों पार्टियां 2019 के नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिकता पंजी (एनआरसी) के विरोध प्रदर्शन के दौरान खड़ी हुईं। असम में 27 मार्च, एक अप्रैल और छह अप्रैल को चुनाव होने वाले हैं।

वर्ष 2016 में भाजपा ने राज्य की कुल 126 सीटों में से 60 पर जीत हासिल की थी। उसके सहयोगी दल – असम गण परिषद (एजीपी) ने 14 पर कब्जा किया, जबकि बीपीएफ ने 12 पर जीत हासिल की। दूसरी ओर, कांग्रेस ने 26 सीटों पर जीत दर्ज की, एआइयूडीएफ ने 13, और एक सीट निर्दलीय के खाते में गई थी।

असम में भाजपा की अगुआई वाले गठबंधन में क्षेत्रीय असम गण परिषद (एजीपी) और यूनाइटेड पीपल्स पार्टी लिबरल (यूपीपीएल) शामिल हैं। कांग्रेस पार्टी के महागठबंधन में मुसलिम मतदाताओं की पार्टी के तौर पर उभरी आॅल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआइयूडीएफ), बोडोलैंड पीपल्स फ्रंट (बीपीएफ), आंचलिक गण मोर्चा, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) शामिल हैं।

बोडोलैंड पीपल्स फ्रंट (बीपीएफ) हाल ही में भाजपा पर साझेदारों के साथ सही बर्ताव नहीं करने का आरोप लगाते हुए कांग्रेस के पाले में आई है। इस चुनाव में तीसरी शक्ति के तौर रायजोर दल (आरडी) और असम जातीय परिषद (एजेपी) का गठबंधन मैदान में है। ये दोनों पार्टियां 2019 के नागरिकता संशोधन कानून के विरोध प्रदर्शन के दौरान उभरी हैं। यह कानून बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से भारत आने वाले गैर-मुसलमानों को नागरिकता देने संबंधी कानून है।

असम में कानून का विरोध प्रदर्शन करने वाले किसी भी बाहरी व्यक्ति को राज्य में बसाने का विरोध कर रहे थे- असम में आधिकारिक तौर पर करीब 19 लाख विदेशी लोग बसे हुए हैं, जिनमें से अधिकांश बांग्लादेश से आए हुए हैं। भाजपा वहां सरकार की वापसी की कवायद में जुटी है। कांग्रेस को उम्मीद है कि इस बार एआइयूडीएफ के साथ उसका गठबंधन भाजपा को चुनौती देगा। हालांकि, भाजपा इसे सांप्रदायिक और हिंदू विरोधी बताकर राजनीतिक लाभ उठाने के प्रयास में है। भाजपा के इस दांव को राज्य में नागरिकता संशोधन विधेयक के विरोध के खड़े हुए दो नए राज्य स्तरीय दल आरडी और एजेपी ने पलीता लगाना शुरू किया है। इन दोनों दलों का गठबंधन राज्य की राजनीति में नयापन का वादा करना शुरू किया है। कांग्रेस गठबंधन भी एनआरसी और सीएए के विरोध में बोल रहा है।

असम में 2019 के आखिरी महीनों से 2020 की शुरुआत तक नागरिकता संशोधन कानून के कारण भाजपा के खिलाफ काफी विरोध प्रदर्शन देखने को मिले थे। विपक्ष के दोनों गठबंधन नागरिकता संशोधन कानून को लेकर भाजपा के खिलाफ आम लोगों के गुस्से को भुनाने की लगातार कोशिश कर रहे हैं। कांग्रेस पार्टी ने पूरे राज्य में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ अभियान छेड़ा है। वहां छत्तीसगढ़ की तर्ज पर कांग्रेसी कार्यकर्ता आक्रामक अंदाज में हैं।

हालांकि, भाजपा आइटी सेल के राज्य प्रमुख और पार्टी के चुनाव प्रबंधन समिति के संयोजक पबित्रा मार्गेहेरिता का कहना है कि एनआरसी और सीएए का असर नहीं है। दूसरी ओर, कांग्रेस नेता देवव्रत सैकिया का कहना है कि नागरिकता के मुद्दे के अलावा विभिन्न परियोजना में गड़बड़ी हुई है। प्रदेश पर कर्ज बढ़ा है। कांग्रेस ने आरडी-एजेपी को गठबंधन में शामिल होने का न्योता दिया है। दोनों नई पार्टियों को एआइडीयूएफ से कुछ खतरा महसूस हो रहा है।

असम में भाजपा पूरे दम खम के साथ मैदान में है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई बार असम का दौरा कर चुके है। असम उत्तर-पूर्वी राज्यों में भाजपा का वर्चस्व स्थापित कराता है। मिजोरम के अलावा पूर्वोत्तर के अन्य छह राज्यों में भाजपा या भाजपा समर्थित राज्य सरकारें हैं। असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, त्रिपुरा में भाजपा की सरकार है, वहीं मेघालय और नगालैंड में भी भाजपा सत्तारूढ़ गठबंधन में है।